दल्लू बचपन से ही बड़ा उद्ण्डी ठहरा , शरारत तो उसके जैसे रोम रोम में भरी थी , गाँव के लोग उसकी शरारत से दुखी रहते थे , ओर उसकी शिकायत उसकी ईजा से करते , फिर ईजा ग़ुस्से में आकर खूब थेच ( मार ) देती थी , ओर फिर रो जाती थी। तब दल्लू बोलता.. ईजा ( माँ ) इतना थेचती ( मारती ) ही क्यों है , जो बाद में तुझे डाँड़ (रोना ) मारनी पड़ती है , कम थेचा (मारा ) कर , ताकि तुझे डाँड़ (रोना ) ना मारनी पड़े , ये सुन कर उसकी ईजा लकड़ी लेकर उसके पीछे भागती , ओर दल्लू दौड़ काट देता था। दल्लू था दुबला पतला पर था पर दौड़ भाग में था बड़ा तेज , कुल मिला कर कहा जाये तो उत्पाति (ऊधमी ) ठहरा , पर ठहरा गाँव का सबसे एक्टिव बच्चा , चंचल होने के कारण खेलकूद में ज्यादा ध्यान ठहरा , ओर पढाई कम ही करता , पर पास हो जाता था। उसकी ईजा उससे कहती भी थी... थोडा ओर पढ़ लीने ( लेता ) तो भल ( अच्छे ) नंबर आ जान ( जाते ) , पर ईजा की सुनता कहाँ था दल्लू , वो तो अपने मन की करता था। उम्र बढ़ने के साथ उसमें थोड़ी समझदारी दिखाई देने लगी थी , वो अब अपनी ईजा से कहता था... ईजा तू चिंता मत कर मेरी बिल्कुल भी , देख...
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