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अक्तूबर, 2022 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

ग्वेल ज्यूँक कृपा

दीवाली का दिन था ,ओर गाँव का बाजार दीवाली के सामानों से सज चुका था ,लोग बाग अपनी अपनी हैसियत के अनुसार खरीददारी कर रहे थे। अगर कोई कुछ नही खरीद रहा था तो वो था दीवान दा ,काफी दिनों से लकड़ी के चिरान का काम बंद था ,इसके चलते दीवान दा बेरोजगार हो चला था। दीवान दा को समझ नही आ रहा था की आखिर वो करे तो करे क्या ,चलो राशन पानी तो उधार फिर भी मिल जायेगा ,पर बच्चों के लिये पटाखे ओर कपड़े कौन उधार देगा ,दो साल से कपड़े भी तो नही बना पाया था वो बच्चों के लिये। दीवान दा को ये दीवाली का त्यौहार जैसे काटने को आ रहा था ,घर में दिया तक जलाने को तेल नही था ,धूप बास भी कैसे उठाता ,लगडा ,पू ,बड बनता था  वैसे तो हर बार ,बच्चों को लगड व पू बड़े पसंद थे। बच्चों का चेहरा सामने आते ही ,दीवान दा का कलेजा मुँह को आ रहा था ,दिमाग काम नही कर रहा था ,ऐसी स्तिथि उसके सामने कभी नही आई ठहरी ,उसे समझ नही आ रहा था की ,कल वो दीवाली का त्यौहार मनायेगा कैसे। उसे सबसे ज्यादा ग्लानि इस बात से हो रही थी की ,कल सबके बच्चे पटाखे फोड़ेंगे ओर नये कपड़े पहनेंगे ,ओर उसके बच्चे लोगों का मुँह देखेंगे। दीवान दा कल का सोच कर ब

बैचेनी

पहाड़ घूमने का शौक मुझे बचपन से ही रहा, ओर उसमें भी इंटीरियर पहाडी क्षेत्रों का भ्रमण मुझे बेहद पसंद रहा है। पुराने गाँव ओर वहाँ बने पुराने मंदिर व पुरानी कुडियाँ ( घर ) मुझे हमेशा से आकर्षित करते रहे हैं ,इस बार भी जब एक गाँव में जाने का अवसर मिला ,ओर वहाँ जाकर पता चला की ,गाँव की ऊँची पहाड़ी पर एक पुराना थान है ,बस फिर क्या था ,उठा कर अपनी झोला झन्टी निकल पड़ा उस ओर। कुछ दूरी तय करने के बाद एक बूढ़े बूबू बकरी चराते हुये मिल गये ,उन्होंने पूछा काहीं जाण छा महाराज ( कहाँ जा रहे हो महाराज )  ,जब मैंने उन्हें मंदिर के बारे में बताया तो ,वो बोले वां जाबेर बैचैनी जस है जाँ ( वहाँ जाकर अजीब सी बैचेनी हो जाती है ) ,ये लीजी कोई वां न जाण ( इसलिये वहाँ कोई नही जाता ) ,तुम जाँण छा तो थोडा ध्यान राखिया आपण (तुम जा रहे हो तो थोड़ा ध्यान रखना अपना ) ,मेर हिसाबे ली तो न जाओ तो ठीक रौल (मेरे हिसाब से तो ना जाओ तो ठीक रहेगा ) ,पर भला जिज्ञासु कहाँ रुकता है ओर इसलिये मैं भी नही रुका ,ओर बूबू के इस सवाल को साथ लेकर ,मैं निकल लिया मंदिर की ओर। वहाँ पहुँच कर देखा की ऊँची पहाड़ी पर बने थान ( मंदिर ) में ,थान क

देबुली की पेट पीड

देबुली की पेट पीड भी गजब थी ,हफ्ते में दो दिन तो पक्की होने वाली ठहरी। पेट पीड भी ऐसी की ,देबुली फुराणी जाने वाली ठहरी ,उस दौरान बाख़ई में बस देबुली की ही ओ ईजा मर ग्यु ,ओ बाज्यू बचा लियो मैं कें की ,आवाज का शोर गूँजता ,बाख़ई के कुकुर भी भौंकना छोड़ देते थे ,शायद ये सोच कर की ,भौंकने की आवाज तो दब रही है ,फालतू में क्यों भौंके। पीड उठने का भी कोई टाईम नही हुआ ,कभी भी शुरू हो जाती ,एक आध घंटे तक देबुली फुराणी रहती ओर फिर धीरे धीरे ठीक हो जाती। देबुली के घर वाले परेशान थे ,देबुली की पेट पीड से ,डाक्टर को भी दिखा दिया ठहरा ,सारी जाँच करवा ली ठहरी ,निकला कुछ नही ,देबी देबता की पूछ भी  करवा ली ,जागा ,जागर ,पश्टन सब करवा डाला ,पर सब जगह का जवाब एक सा की ,कुछ नही है ,पर पीड क्यों हो रही है ये पकड़ में नही आया। देबुली की सास तो देबुली की पेट पीड से, सबसे ज्यादा परेशान थी ,देबुली के पेट पीड के कारण,  उसे ही सारा काम करना पड़ता था ,ऊपर से देबुली की साज समार ओर करनी पड़ती वो अलग थी। देबुली के घर वाले समझ नही पा रहे थे की ,आखिर देबुली को पेट पीड किस कारण हो रही है ,जबकि जाँच में ओर दयाबतों

हियुन का पहाड़ - सर्दी का पहाड़

हियुन ( सर्दी ) का मौसम ठहरा,  ओर मेरा जाना हुआ पहाड़ को ,गर्मियाँ तो बहुत देखी थी, पर हियुन में पहली बार गया ,बस सुना ही रखा था की ,खूब ठंड पड़ती है ,ओर कहीं कहीं तो बर्फ भी पड़ती है। बस जब हियुन ( सर्दी ) में जाने का मौका पड़ा तो ,खुद को रोक नही पाया ,रानीखेत एक्सप्रेस में टिकट बुक करवाया,  ओर निकल पड़ा पहाड़ की ओर ,एक स्लीपिंग बैग साथ रख लिया ,जो यात्रा में बहुत काम आया ,उसके अंदर घुसने के बाद पता ही नही लगा की ठंड का मौसम भी है। ठंड का पता तो लगा काठगोदाम स्टेशन पर लगा ,सुबह के 4 - 4.30 बजे का समय ,ओर हियुन ( सर्दी ) के दिन ,ओर गजब की ठंड ,शरीर के सारे अंग थरथरा गये थे। सामान समेट कर स्टेशन से बाहर आया ,ओर स्टेशन के सामने चाय की दुकान की ओर दौड़ काट दी ,एक गिलास चाय ली ओर एक बन लिया ,पर चाय कम पड गई ,एक गिलास ओर लेकर उसे हड़काया ,थोड़ी सी राहत मिली ,ऊपर पहाड़ जाने को एक गाड़ी मिल गई ,उसमें बैठ भीमताल तक चल दिया। गाड़ी के शीशे बंद होने के कारण ठंड कम हो गई ,एक घंटे के अंदर भीमताल पहुँच गया ,ओर जब उतरा तो फिर थुरुडी ( कपकंपी ) काँप उठी ,यहाँ तो काठगोदाम से भी ज्यादा ठंड थी ,नाक कान म