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नवंबर, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

गुड्डी

गुड्डी के ब्याह का न्यौता भी आ पहुँचा था, घर से किसी को तो न्यौता निभाने जाना ही था तो मैं चला गया पहाड़। जयपुर से रानीखेत एक्सप्रेस में दिन के 3 बजे बैठा ओर दूसरे दिन सुबह 4 बजे हल्द्वानी रेलवे स्टेशन पर उतरा, बाहर नवीन गाडी लेकर खड़ा मिल गया, उसे मैनें पहले ही फोन पर आने की सूचना दें दी थी, जो शादी का सामान खरीदने हल्द्वानी आया ठहरा। नवीन के साथ गाँव की ओर को निकल पड़े, पाँच घन्टे के थकान भरे सफर के बाद पहुँच ही गए आखिर गाँव,गाडी से सामान उतार कर मैं चल दिया थकान मिटाने मेरे उसी कमरे में, जहाँ मैं गाँव आने पर ठहरा करता था। कल गुड्डी की बारात आनी थी, हमारी गुड्डी अब शादी लायक हो गई थी, कल तक जो हमें छोटी नटखट गुड्डी लगती थी, आज अपने नये जीवन में प्रवेश करने जा रही थी, मैनें गुड्डी को बुलवाया ओर उसे अपनी ओर से लाये लहंगा चुनरी का सैट दिया, गुड्डी का फोन आया था ,की दद्दा वहाँ से लहंगा चुनरी जरूर लाना, कलर भी गुड्डी के पसंद का ही था। रात को खा पी कर जल्दी सो गए थे सब,क्योकिं कल सबको जो जागना था। सुबह होते ही चाय लेकर आई बोजी ने जगा दिया ओर चाय पी कर नहा धो कर तैयार हो जाने को कह

जानकी दीदी

जानकी दीदी को हम बचपन से देखते आ रहे थे, जब बहुत छोटी सी थी,तब उन पर से ईजा ( माँ ) का साया उठ गया था, नरी बू ने दूसरी ब्याह नहीं किया, वो ही उसके ईजा बौज्यू ( माँ बाप ) बन गए थे। बिन माँ की बच्ची को नरी बू ने पालपोस कर बड़ा कर दिया, अब जानकी दीदी स्कूल जाने लगी थी, तब उस इलाके में बहुत कम लड़कियाँ स्कूल जाया करती थी, खासतौर पर ठाकुर परिवार की लड़कियाँ ,जानकी दीदी तब  इकलौती लड़की थी जो ठाकुर थी, अन्य एक दो लड़कियाँ ब्रहांम्ण थी। जानकी दीदी पढ़ने में होशियार थी उसने गाँव के इन्टर काँलेज में बारहवीं पास की, तब उसके बौज्यू ने उनको अल्मोड़ा भेज दिया पढ़ने के लिए। जानकी दीदी ने वहाँ मन लगाकर पढ़ाई करी ओर प्रथम श्रेणी से परीक्षा पास कर ली। इसी दौरान उनके बौज्यू ने उसकी शादी तय कर दी ओर जानकी दीदी की शादी हो गई थी। कुछ सालों बाद पता चला की जानकी दीदी का टीचर पद पर सलेक्शन हो गया था ओर उनकी पहली पोस्टिंग उसी स्कूल में हुई, जहाँ वो पढ़ती थी। जानकी दीदी ने आते ही, घर घर जाकर लोगों को समझाया की बालिकाओं को स्कूल भेंजें, उन्होंने अपना उदाहरण लोगों के सामने रखा। लोगों को भी उनकी बात