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अगस्त, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

दाज्यू

दाज्यू घर के सबसे बड़े बेटे थे, चार भाईयों में सबसे बड़े , घर की आर्थिक स्तिथि कुछ ठीक नही थी, तो पिता ने स्कूल भी नही भेजा , इस तरह दाज्यू अनपढ़ ही रह गये, ये बात दाज्यू को कटोचती थी की, उनके सारे साथी स्कूल गये ,ओर वो पढ़ भी नही सके। वक़्त बीतने के साथ दाज्यू जितने बड़े होते जा रहे थे, उनके ऊपर घर का भार ,उतना ही बढता जा रहा था, पिता कब तक अकेले घर को चलाते, इसलिए अब दाज्यू भी काम धाम करने लगे थे, कभी किसी का खेत जोत देते तो, कभी किसी की लकड़ी फाड़ देते, इस तरह के छोटे मोटे काम करके, दाज्यू अपने पिता की ,घर चलाने में मदद की। सौम्य व हँसमुख स्वभाव के स्वामी दाज्यू को देखने पर कोई ये अंदाजा नही लगा सकता था की, दाज्यू ने कभी स्कूल नही देखा था, जिंदगी की ठोकरें खाते खाते काफी ज्ञान अर्जित किया था उन्होनें। दाज्यू खुद स्कूल भले ही नही जा सके हों, पर उन्होनें अपने सारे छोटे भाईयों को स्कूल में डलवाया ताकि वो उनकी तरह अनपढ़ ना रह जायें। दाज्यू भाईयों को कहते भी थे, पढ़ लिख लो, मुझे तो मौका नही मिला, तुमको मिला है तो इसका फायदा उठा लो, कल कुछ बन जाओगे तो सुख पाओगे। दाज्यू उनको

जिद्द - Stubbornness

कमला ब्या होने के बाद ससुराल आ गई, पति शहर में नौकरी करता था,तो कमला को भी लगता था की, अब वो भी शहर जा सकेगी, आजकल की चेली बटियों का मोह , शहर से कुछ ज्यादा भी रहता है, ऐसा ही कमला के साथ भी था, कुछ महीनों बाद जब उसका पति घर आया तो, उसने पति से उसे भी शहर साथ ले जाने को कहा, पर उसके पति ने, इस बार की जगह अगली बार शहर ले जाने को कहा। कमला ने मन मार कर किसी तरह खुद को समझा लिया, इस बीच दो साल तक उसका पति घर ही नही आया,वो बस हर महीने वहीं से पैसें भेज देता था, पति के दो साल से घर ना आने वजह से कमला नाराज थी ,इस कारण कमला अब चिडचिडी भी हो गई थी, उसे लगता था की उसका पति उसे शहर ही नही ले जाना चाहता ओर इसीलिए दो साल से घर ही नही आ रहा, बची खुची कसर गाँव की कुछ महिलाओं ने कमला को भड़का कर पूरी कर दी। कमला की चिढन अब उसके ससुराल वालों पर,निकल रही थी, वो सास ससुर, ननद व देवर की उपेक्षा करने लगी थी, इस कारण घर का माहौल खराब होता जा रहा था। कमला के ससुराल वाले भले लोग थे, वो कमला की उपेक्षा सह कर भी चुप थे,कमला की सास ने कमला की ननद को कह दिया था, तेर बौजी जो कों कोण दिये,

कर्ज मुक्ति

कर्ज  मुक्ति दिलीप को अपनी सौतेली ईजा ( माँ ) के अत्याचारों से तंग आकर, घर छोड़ कर भागना पड़ा, ओर वो इधर उधर भटकता हुआ दिल्ली जा पहुँचा।  दिलीप के लिये दिल्ली बिल्कुल नई जगह थी, कोई जानकार भी नही था शहर में, ना ही जेब में पैंसे थे, वह काफी दिनों से भूखा भी था ,अब दिल्ली जैसी जगह में बिन पैंसों के खाना कौन खिलाये। भूख से जब दिलीप से चला फिरा नही गया तो , वो एक पुलिया के नीचे निढाल होकर सो गया गया ,ये देख कर उसके पास बैठा एक व्यक्ति ,उसके पास आया ओर उसे पानी पिलाने लगा, ओर फिर उससे पूछा की कहाँ से आया है, दिलीप ने सारी कहानी उसे बताई, उस व्यक्ति का दिल पसीज गया, ओर उसने सामने के ढाबे से खाना मँगवा कर दलीप को खिलाया। खाना खाकर दिलीप के शरीर में थोड़ी जान आई, ओर वो पहले से ठीक महसूस करने लगा, उसने उस व्यक्ति को धन्यवाद दिया, ओर कहीं काम दिलवाने की गुजारिश की,उस व्यक्ति ने दिलीप से कहा, हंडे उठाने का काम है, कर सके तो बात करूँ, मैं भी वही करता हूँ,रात में काम करेंगे ओर दिन में इस पुलिया के नीचे सो जायेंगे, दिलीप को काम की सख्त जरूरत थी, इसलिए उसने तुरंत हाँ

अभिशप्त - Crused

अभिशप्त - C ursed गाँव के गधेरे के पार, एक कुड़ी ( घर ) हमेशा मेरा ध्यान खींचती थी, अकेली कुड़ी (घर )पेडों के झुरमुटों के बीच अजीब सी दिखाई देती थी, कई बार मन किया की जाकर देखूँ, आखिर वहाँ रहता कौन है, क्योकिं रात के समय अक्सर आग जलती दिखाई देती थी, कुड़ी के आसपास पेडों का इतना झुरमुट था की ,वहाँ होने वाली कोई हलचल भी दिखाई नही देती थी। जब भी गाँव जाता, उस कुड़ी को देखने की जिज्ञासा होती, पर जिस किसी से कुछ पूछता तो,वो गोलमोल जवाब में बस इतना ही कहते की वाँ न जान ( वहाँ नही जाते ) पर क्यों नही जाते ये कोई नही बताता था। जब तक छोटा था तब तक ,कभी हिम्मत भी नही हुईं की, वहाँ अकेला जाया जाये ,गाँव के कोई साथी भी जाने को तैयार नही होते थे, एक बार गाँव के गोपाल को बडी मुश्किल से ,ये कहकर तैयार किया की दूर से देख आयेंगे, पर वो प्लान भी फेल हो पड़ा, पता नही कहाँ से उसके बौज्यू ने देख लिया, ओर फिर उसे सिकडाते हुये घर तक लाये, मेरी आमा को शिकायत कर,मुझे एक चाँटा खिलवा दिया,तबसे तो वहाँ जाने की तमन्ना ओर दब गई। मेरी आमा ने मुझे उस दिन के अलावा कभी नही मारा था, पर उस दिन की चटाक ने मुझे ये अ

बिल्लू

बिल्लू  बिल्लू कुकुर को ठुल ईजा ने तब से पाला ठहरा, जब उसकी आँखें भी नही खुली ठहरी, बिल्लू को जन्म देने के बाद ही उसकी माँ को गुलदार ले गया था,इस कारण बिल्लू ओर बिल्लू के पाँच भाई बहिन अनाथ हो गये, गाँव के लोग एक एक बच्चा ले गये, लास्ट में बच गया था बिल्लू, सबसे कमजोर ठहरा, शायद इसीलिए कोई नही ले गया। ठुल ईजा को दया आई, ओर वो बिल्लू को उठा लाई, ये सोच कर की, यहाँ तो मर ही जायेगा ,पाल लूँगी तो क्या पता बच जाये। इस तरह बिल्लू को घर मिल गया, दुबला पतला बिल्लू, घर के एक कोने में चुपचाप पड़ा रहता, ठुल ईजा उसे टाइम टाइम पर दूध पिला देती, कुछ दिनों बाद बिल्लू की आँखें भी खुल गई, वो अब थोडा़ थोडा़ इधर उधर जाने लगा। ठुल ईजा ने बिल्कुल बच्चे की तरह पाल कर बिल्लू को बड़ा किया ठहरा, इसके चलते दोनों के बीच गहरा लगाव था। बिल्लू का नाम बिल्लू कैसे रखा ठुल ईजा ने ,इसकी भी कहानी है, बिल्लू जब छोटा था तो, ठुल ईजा की पाली बिल्ली से बहुत डरता था, ओर ठुल ईजा बोलती बिराऊ दगड़ डरनी वाव बिल्लू, बस बाद में बिल्लू इसी नाम से बुलाया जाने लगा। बिल्लू दिन भर ठुल ईजा के इर्द गिर्द मंडराता रहता

नान्नी गुड्डी - Little Guddi

गुड्डी की उम्र होगी ज्यादा से ज्यादा 10 साल, पर काम की भूत ठहरी, ओर ये शौक लगा ठहरा उसे अपनी आमा से। गुड्डी की आमा बड़ी सफाई पसंद ओर काम की चटपट थी, इस उम्र में भी घर के सारे काम जब तक खुद ना कर ले उसे चैन नही आता था, इसके चलते वो सुबह जल्दी उठ कर घर के सारे काम निपटा देती थी, ओर उन्हें काम करता देख नान्नी गुड्डी भी ये सब सीख गई। गुड्डी जब थोडा़ थोडा़ चलने लगी तभी से वो अपनी आमा के काम की नकल करने लग गई थी, आमा झाड़ू लगाती तो, वो भी झाड़ू पकड़ कर, झाड़ू लगाने लगती, आमा घर की लिपाई करती तो, वो भी लीपने लगती। गुड्डी पूरी तरह से आमा बनने की कोशिश करती , आमा गुड्डी को डांटती भी रहती के सार काम बिगाड़ हालो ये खड़ियोन हानी ली, मेर लिपी बिगाड़ हालो,पर गुड्डी को कोई फर्क नही पड़ता, वो तो बस आमा की नकल करती हुईं, वही काम करती जो उसकी आमा कर रही होती। आमा पोती की ये जोड़ी दिनभर यों ही घर के काम काज में जुटे रहते, आमा काम करती ओर गुड्डी उसी काम की नकल करती हुईं, काम को अपने हिसाब से करती हुईं, अक्सर काम को बिगाड़ देती,ये देख आमा गुस्सा भी होती, पर नन्ही गुड्डी मुस्कुरा कर उसका गुस्सा