कर्ज मुक्ति
दिलीप को अपनी सौतेली ईजा ( माँ ) के अत्याचारों से तंग आकर, घर छोड़ कर भागना पड़ा, ओर वो इधर उधर भटकता हुआ दिल्ली जा पहुँचा।
दिलीप के लिये दिल्ली बिल्कुल नई जगह थी, कोई जानकार भी नही था शहर में, ना ही जेब में पैंसे थे, वह काफी दिनों से भूखा भी था ,अब दिल्ली जैसी जगह में बिन पैंसों के खाना कौन खिलाये।
भूख से जब दिलीप से चला फिरा नही गया तो , वो एक पुलिया के नीचे निढाल होकर सो गया गया ,ये देख कर उसके पास बैठा एक व्यक्ति ,उसके पास आया ओर उसे पानी पिलाने लगा, ओर फिर उससे पूछा की कहाँ से आया है, दिलीप ने सारी कहानी उसे बताई, उस व्यक्ति का दिल पसीज गया, ओर उसने सामने के ढाबे से खाना मँगवा कर दलीप को खिलाया।
खाना खाकर दिलीप के शरीर में थोड़ी जान आई, ओर वो पहले से ठीक महसूस करने लगा, उसने उस व्यक्ति को धन्यवाद दिया, ओर कहीं काम दिलवाने की गुजारिश की,उस व्यक्ति ने दिलीप से कहा, हंडे उठाने का काम है, कर सके तो बात करूँ, मैं भी वही करता हूँ,रात में काम करेंगे ओर दिन में इस पुलिया के नीचे सो जायेंगे, दिलीप को काम की सख्त जरूरत थी, इसलिए उसने तुरंत हाँ कर दी।
दिलीप ने कई दिनों तक हंडे उठाने का काम किया, पर उसका मन इस काम में नही लगा, वो तो कोई ऐसा काम सीखना चाहता था, जिसे सीखने के बाद उसे अच्छा वेतन मिल सके ओर कोई हुनर भी आ जाये, इसलिए दिलीप हंडे उठाने का काम करता हुआ, इधर उधर कोई काम तलाशने लगा, ओर इसी दौरान उसकी मुलाकात एक पहाड़ के लड़के से हुईं, जो एक रेस्टोरेंट में चाइनीज फूड बनाता था, दिलीप ने उससे बात की ओर बतौर हैल्पर रेस्टोरेन्ट में लग गया।
दिलीप वहाँ रहकर मन लगाकर काम सीखने लगा, ओर जल्द ही सारा काम सीख लिया, रेस्टोरेन्ट के मालिक ने उसके काम को देखते हुये, उसे भी कुक बना दिया, ओर वेतन भी बढ़ा दिया।
दिलीप ने कुछ सालों तक वहाँ काम किया ओर वहाँ रहकर जितना काम सीख सकता था सीखा, अब वो खुद का काम करना चाहता था, उसने वहाँ रहकर थोड़े पैंसे भी इकट्ठा कर लिये थे, अब वो ऐसी जगह तलाशने लगा, जहाँ से वो खुद का काम खोल सके,इसी दौरान घूमते हुये उसकी मुलाकात , उसके रेस्टोरेन्ट में आने वाले भल्ला जी से हुईं, जो उसके बनाये खाने के मुरीद थे।
दिलीप ने उन्हें पहचान लिया ओर अपने दिल की बात उन्हें बताई, भल्ला जी बोले मेरी कोठी के आगे कुछ जगह खाली है ओर सामने निरूलाज का आउटलेट खुला हुआ है, हम वहाँ काम शुरू कर सकते हैं, तुम्हारे हाथ में स्वाद है, रेट कम रखेंगे ओर क्वालिटी देंगें तो चल जायेगा।
भल्ला जी ने खाली जगह में एक शैड बनवा कर दिलीप के साथ मिलकर फूड आउटलेट खोल दिया, ओर उसका नाम रखा "जायका डीबी दा", यानी जायका दिलीप भल्ला दा, दिलीप के हाथ का स्वाद ओर भल्ला जी की कोठी की शानदार लोकेशन के कारण ,काम समय में ही, उन लोगों का काम शानदार चलने लगा,अब दिलीप भी अमीर आदमी बन गया।
एक दिन अचानक उसे ,अपने हंडे उठाने वाले दिन याद आ गये, हुआ यूँ की भल्ला जी की बेटी की शादी थी, दिलीप सारी व्यवस्था देख रहा था, बारात गेट से अंदर आ चुकी थी, जैसे ही दिलीप आगे की व्यवस्था देखने अंदर जाने ही लगा था की , उसे किसी ने आवाज लगाई की, बाबूजी थोड़ी सी मिठाई दे दो, मेरे बाबू को अच्छी लगती है।
दिलीप ने मुड़ कर देखा तो सामने एक हंडे उठाने वाली औरत खडी थी ,ओर उसकी गोद में एक छोटा सा बच्चा था, औरत शायद उसी के लिये मिठाई माँग रही थी, वो बच्चा भी कातर दृष्टि से दिलीप को देख रहा था, मानो कह रहा हो, एक मिठाई का टुकड़ा दे दो ना बाबूजी।
दिलीप को अपने दिन याद आ गये के, किस तरह वो भी भूखा था, ओर एक व्यक्ति ने उसे खाना खिलाया ओर उसे हंडे उठाने के काम में लगवाया था।
दिलीप ने तुरंत उस औरत से रुकने को कहा ओर वो हलवाई के पास गया, वहाँ से काफी सारी मिठाइयाँ लाकर, उस औरत को मिठाई देते हुये पूछा, इतनी ठंड में इस बच्चे को लेकर काम कर रही हो, बच्चा बीमार हो गया तो, ये सुनकर वो औरत बोली, मजबूरी है बाऊजी मर्द ( पति ) मर गया, ना ही घर है ओर ना ही कोई ओर, पुलिया के नीचे रहती हूँ, वहाँ बच्चे को अकेले कैसे छोड़ दूँ।
दिलीप का दिल पसीज गया,क्योकिं वो भी तो कभी ऐसे ही पुलिया के नीचे सोया करता था, उसने उस औरत से कहा कोई ओर काम कर लो, इस पर औरत बोली बाऊजी आपकी नजर में कोई काम हो तो लगवा देना ,मैं सामने वाली पुलिया के नीचे रहती हूँ।
दिलीप ने उसे दिलासा देते हुये कहा, चिंता मत करो जल्द ही मैं कोई व्यवस्था करवा कर तुम्हें नौकरी में लगवा दूँगा,अभी तुम जाओ।
दिलीप देर रात भल्ला जी की बेटी की शादी की जिम्मेदारी निभा कर अपने घर पहुँचा, भागदौड़ की थकान से पूरा बदन चूर चूर हो गया था,वह सोना चाहता था, पर सो नही पा रहा था, बार बार उसकी आँखों के सामने हंडे वाली औरत ओर उसके बाबू का चेहरा घूम रहा था,दिलीप को अपने बीते दिन याद आ रहे थे, किस तरह वो भी कई दिनों तक पुलिया के नीचे सोया था, काम न मिलने पर कई बार भूखा भी रहा था।
अंत में दिलीप ने तय किया की वो कल ही भल्ला जी बात करके उस औरत को अपने वहाँ काम पर रख लेगा।
दूसरे दिन सुबह होते ही वो भल्ला जी के पास गया ओर रात वाली घटना उनको बताई ओर ख्वाहिश जाहिर की के,उस महिला को अपने वहाँ काम पर रख लिया जाये, इस पर भल्ला जी की सहमति उसे मिल गई ,सहमति मिलते ही दिलीप को लगा जैसे रात वाला बोझ उतर गया हो, क्योकिं अब वो खुद को ताजा तरोजा महसूस कर रहा था।
दिलीप भल्ला जी के घर से निकल कर उस पुलिया की तरफ चल दिया, जहाँ वो औरत रहती थी, वहाँ जाकर उसने उस औरत को आज से ही काम पर लगने को कहा ओर उन्हें अपनी गाडी में बिठा कर रेस्टोरेन्ट ले आया, भल्ला जी ने अपनी कोठी के पीछे बने गैराज में उसके रहने की व्यवस्था करवा दी।
इस तरह दिलीप ने उस कर्ज को चुका दिया जो उसके ऊपर उस व्यक्ति का था, जिसने उसके बुरे वक़्त में मदद करके, आज उसे खुद मदद करने लायक बनाया था।
स्वरचित लघु कथा
सर्वाधिकार सुरक्षित
English Version
Acquittance
Dilip, fed up with the atrocities of his step-mother, had to leave the house, and he wandered here and there and reached Delhi.
Delhi was a completely new place for Dilip, there was no knowledge in the city, no money in pocket, he was also hungry for a long time, now who can feed food without any money in a place like Delhi.
When Dilip could not walk away from hunger, he fell asleep under a culvert, sat next to him, a person came to him and started giving him water, and then asked him where did he come from, Dilip asked all Told the story to him, the man was heartbroken, and he ordered food from the restorent in front and fed it to Dilip.
After eating food, Dilip's body got some energy, and he started feeling better than before, he thanked that person, and requested to get work done somewhere, that person said to Dilip, there is work to lift the decorative light lamp pot, if you can do, I do the same thing, will work at night and sleep under this culvert during the day, Dalip was in dire need of work, so he immediately said yes.
Dilip did the work of lifting the decorative light lamp for many days, but his mind was not engaged in this work, he wanted to learn such a work, after learning which he could get a good salary and also get some skill, hence the work of Dilip decorative light lamp While doing this, he started looking for some work here and there, and during this time he met a uttrakhandi boy ,who work to as a cook Chinese food in a restaurant, Dilip started talking to him and joined the restaurant as a helper.
Dilip started learning work diligently by staying there, and soon learned all the work, the owner of the restaurant, seeing his work, made him a cook, and also increased the salary.
Dalip worked there for a few years and learned as much work as he could by staying there, now he wanted to do his own work, he had also collected some money by staying there, now he started looking for a place from where he could make his own While working, he met Bhalla ji, who came to his restaurant, who was a fond of his food.
Dilip told his heart to him, Bhalla ji said there is some empty space in front of my house and Nirulaj's outlet is open in front, we can start work there, you have taste in hand, will keep the rate low and give quality.
Bhalla ji built a shed in the vacant place and opened a food outlet with Dilip, and named it "Zayka DB Da", due to the taste of Dilip's hand and the excellent location of Bhalla ji's house, the work started going well, now Dilip became rich.
One day suddenly he remembered the old days of the hand, it happened that Bhalla ji's daughter was getting married, Dilip was watching all the arrangements, the procession had come in from the gate, as soon as Dilip started going inside, someone called him. That, Sir, give me some sweets, my baby likes it.
Dilip turned and saw a woman standing in front of him ,she was decorative light pot picker and a small child in her lap, the woman was probably asking for sweets for him, that child was also looking at Dilip with a sly look, as if saying Yes, give me a piece of sweets.
Dilip remembered his days, how he too was hungry, and a man had fed him food and made him take up the task of raising decorative light lamp pot.
Dilip immediately asked the woman to stop and he went to the confectioner, brought a lot of sweets from there, while giving sweets to that woman, asked, if you are working with like this child in such cold, if the child becomes ill, then this Hearing that, the woman said that Sir my husband has died, there is no home, I live under the culvert, how should I leave the child alone there.
Dilip's heart sank, he also used to sleep under the culvert like this, he said to that woman, do some other work, on this the woman said Sir, if there is any work in your eyes, then get it installed, I am in front of the culvert. I live below
Dilip consoled him and said, don't worry, soon I will get you employed by making some arrangements, now you go.
Dilip reached his house late in the night after fulfilling the responsibility of marriage of Bhalla ji's daughter, the whole body was shattered due to the tiredness of running, he wanted to sleep, but could not sleep, the woman with the hand in front of his eyes again and again And his baby's face was spinning, Dilip was remembering his bygone days, how he too had slept under the culvert for many days, was hungry many times due to lack of work.
In the end, Dilip decided that he would talk to Bhalla ji tomorrow and hire that woman for himself.
On the next morning, he went to Bhalla ji and told him the incident of the night and expressed his desire that the woman should be hired there, on this he got Bhalla ji's consent, as soon as he got the consent, Dilip felt As if the burden of the night had been lifted, because now he was feeling himself fresh.
Dilip left Bhalla ji's house and go towards the culvert where that woman used to live, after going there he asked that woman to work from today itself and put her in his car and brought him to the restaurant, Bhalla ji took her Arrangements were made for his stay in the garage built behind the house.
In this way, Dilip paid off the debt that he owed to the person who helped him through his bad times, making him capable of helping himself today.
Composed short story
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