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नवंबर, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

शहद बेचने वाला लड़का - Honey seller boy

उसकी उम्र ज्यादा नही थी, बामुश्किल 12- 13 साल का होगा, मौ ली लियो, बिल्कुल शुद्ध  मौ ली लियो की आवाज लगाता हुआ ,वो हर दो चार दिन मे भीमताल की बाजार में दिख जाता था। मैनें इस दौरान देखा की उसके खरीददार ,उसका बहुत सा शहद तो चखने के नाम पर खा जाते थे ,जि़ससे उसको उसकी मेहनत का पूरा फायदा नही मिल पाता होगा,पर वो किसी को चखने से मना नही करता था। मैनें उससे पूछा की, क्या तुम मधुमक्खी पालते हो तो वो बोला ना हो सैप, उक थें बक्स चाणी ओर बक्स लीजी पैंस, मेर पास क्या नहा, तब उसे टोकते हुये मैनें पूछा फिर तुम ये शहद कहाँ से लाते हो, तब उसने बताया की जंगव में बैठि लों, अब जंगव ले कम है गी तो मौ ले कम मिलूँ । घर में कौन कौन है पूछने पर उसने बताया की ईजा है बस, बौज्यू शराब पी छी, एक दिन लड़ा है पड़ी ईज बौज्यू बीच तो उ हमुके छोड़ बेर लह गी,खेतीबाड़ी छ नहा, एक टुट्टी कुड़ी छ उ में ही रोणू। कितनी कमाई हो जाती है पूछने पर उसने बताया की, कमाईक की बतों सैप, बस गुजार हैं जाँ जस्ये तस्यै, मौ मिल जाँ तो पुर महण खा लीणु भैली कें, न मिलण तो आदुक पेट खा लीणु। वो जिस तरह से अपने बारे में बता रहा था, उससे उ

मधी बू

ताव खाती मूँछें , तना चेहरा ओर एकदम फिट लगने वाले ठहरे मधी बू।  गाँव से थोडा सा दूरी पर रहते थे एकदम अकेले , साथी कहने के नाम पर ठहरा तो एक भोटिया कुकुर , ऐसे तो गाँव में अनेक लोग अकेले रहने वाले हुये , पर मधी बू ने तो शादी ही नही की थी। कुछ वर्षों पहले तक जरूर उनकी ईजा साथ थी , पर 100 साल की उम्र में वो भी मधी बू का साथ छोड़ कर चल दी थी , तबसे पूरी तरह अकेले रह गये थे मधी बू।  70  - 75 साल की उम्र में भी जवानों जैसा काम कर लेते थे , घास पानी से लेकर लकड़ियाँ काट कर लाने का।  उनसे बात करने का बडा मन होता था , पर वो अधिकतर व्यस्त ही रहते थे , एक दिन जंगल से लौटते समय बाट में भेट  हो पड़ी उनसे ,उस दिन मौका मिल गया ठहरा की , मधी बू के बारे में जानकारी ले ली जाये। तो चलते चलते बातों का सिलसिला चालू कर दिया , इस उम्र में भी इतना काम कैसे कर लेते हो पूछ्ने पर उन्होंने बताया की।  देख पोथिया शुद्ध खाओ , खूब काम करो ओर किसी झंझट में ना पड़ो , जो है उसमें संतोष कर लो , तो बुढ़ापा महसूस नही होगा।  कह तो सही रहे थे मधी बू वैसे तो  , ये झंझटें ही तो व्यक्ति को

किस्मत - Luck

किस्मत ओ परताप उठ रे, नौव जाबेर पाणी भर बेर ला, काम की तेर बाप करोल बोलते हुये ,प्रताप की काखी ने सोते हुये प्रताप को उठाया। प्रताप हड़बड़ा के उठा, हालाँकि बाहर अभी अँधेरा ही था,बाहर निकलने में प्रताप को डर भी लग रहा था, पर अपनी काखी से डरने वाले  प्रताप का ,ये डर कम ही था, उसने तुरंत फौव उठाया ओर चल दिया नौले की तरफ। प्रताप के माँ बाप बचपन में ही मर गये थे ,तो उसके चाचा ने ही उसे पाला ठहरा , पर एक घरेलू नौकर के तौर पर, उससे ही सारे काम करवाए जाते, दिन भर प्रताप प्रताप की आवाजें आती रहती, पानी भरने से लेकर, घास काटने व गाय बकरियों को चराने का जिम्मा उसी का था, जिसके बदले उसे झिड़कियों के तड़के लगा रूखा सूखा भोजन मिल जाता, पहली नजर में देखने से ये लगता ही नही था की प्रताप इनका इतना सगा रिश्तेदार भी था, बल्कि वो इनका नौकर सा लगता था। प्रताप भी न जाने कैसे सह लेता था ये सब, कोई ओर होता तो कब का भाग चुका होता, पता नही क्या सोच कर रुका हुआ था प्रताप। प्रताप के कितने काम करने के बावजूद, उसकी काखी को उसकी कमी ही नजर आती थी, ओर वो उसे दिनरात कोसती रहती थी, उसे देख कर चाची क

भागुली आमा

भागुली आमा खाव ( आँगन ) के भिड (दीवार ) में बैठी आमा लगातार गयाने में मशगूल थी, बीच में चुप तब हो रही थी ,जब बगल में रखे गिलास से चाय पीती, उन्हें गलियाते देख लोग समझ जाते की, कोई उनकी जमीन से या तो घास काट रहा है या कोई गाय चरने आ गई। भागुली आमा का रोज का नियम था की वो खाव ( आँगन ) की भिड (दीवार ) में आकर बैठ जाती ओर, नीचे खेतों  पर नजर रखती, जमीन भी कम नही ठहरी 150 नाली का चक ठहरा पूरा ,पूरे गाँव में इतनी इकट्ठी जमीन सिर्फ भागुली आमा लोगों के पास ही थी। भागुली आमा के पति गाँव के पधान थे, उनके परिवार को पधानचारी विरासत में मिली थी, भागुली आमा के सौरज्यूँ भी पधान थे, इसलिए उन लोगों को पधानचारी की कुछ जमीन मिली थी ,ओर पुश्तैनी पैसा भी ठहरा ही , सो नीचे आसपास की सारी जमीन खरीद कर एक चक सा बना लिया था। कभी खूब अनाज होता था, इन जमीनों में, नौकर चाकर भी ठहरे, पर अब कहीं कहीं खाने लायक अनाज लगाते हैं, आमा ओर उनके पति अब अकेले रहते हैं गाँव में, छोटा मोटा काम करने के लिये रमिया है, जो बचपन से ही भागुली आमा के घर काम करता था, रमिया ओर रमिया की स्