सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

किस्मत - Luck

किस्मत
ओ परताप उठ रे, नौव जाबेर पाणी भर बेर ला, काम की तेर बाप करोल बोलते हुये ,प्रताप की काखी ने सोते हुये प्रताप को उठाया।

प्रताप हड़बड़ा के उठा, हालाँकि बाहर अभी अँधेरा ही था,बाहर निकलने में प्रताप को डर भी लग रहा था, पर अपनी काखी से डरने वाले  प्रताप का ,ये डर कम ही था, उसने तुरंत फौव उठाया ओर चल दिया नौले की तरफ।

प्रताप के माँ बाप बचपन में ही मर गये थे ,तो उसके चाचा ने ही उसे पाला ठहरा , पर एक घरेलू नौकर के तौर पर, उससे ही सारे काम करवाए जाते, दिन भर प्रताप प्रताप की आवाजें आती रहती, पानी भरने से लेकर, घास काटने व गाय बकरियों को चराने का जिम्मा उसी का था, जिसके बदले उसे झिड़कियों के तड़के लगा रूखा सूखा भोजन मिल जाता, पहली नजर में देखने से ये लगता ही नही था की प्रताप इनका इतना सगा रिश्तेदार भी था, बल्कि वो इनका नौकर सा लगता था।

प्रताप भी न जाने कैसे सह लेता था ये सब, कोई ओर होता तो कब का भाग चुका होता, पता नही क्या सोच कर रुका हुआ था प्रताप।
प्रताप के कितने काम करने के बावजूद, उसकी काखी को उसकी कमी ही नजर आती थी, ओर वो उसे दिनरात कोसती रहती थी, उसे देख कर चाची के बच्चे भी प्रताप को उल्टा सीधा बोलते रहते थे,उसकी हमउम्र का मन्नू तो उसे कुछ समझता था, जब देखो झगड़ा करने को उतारू रहता था, उसके बावजूद दिन भर चक्की की तरह घूमता हुआ प्रताप, चुपचाप सबके काम करता रहता, तब भी उसे खरी खोटी सुनने को मिलती थी।

गाँव के लोगों को भी उस पर दया आती होगी ,पर घर का आपसी मामला मान कर शायद वो भी दखल नही देते थे, ओर इस कारण प्रताप अत्याचार सहता रहा।

प्रताप को उसके घर वालों ने एक तरह जौत्या बल्द जैसा बना रखा था, जैसे खेत जोतने के बाद भी बैल एक आद सिकड खा ही लेता था, ठीक उसी तरह प्रताप भी सारे काम करने के बावजूद झिडकियाँ खाता था।
इतने कष्ट सहने के बाद भी  किसी भी गाँव वालों ने उसे रोता नही देखा था, हालाँकि उसके चेहरे पर हमेशा उदासी दिखाई देती थी,पर एक दिन गाँव के में आने वाले एक साधु ने प्रताप को जंगल में रोते हुये देख लिया ,वो साधु गाँव आते रहते थे ओर प्रताप को जानते थे, जब उन्होने प्रताप से रोने की वजह पूछी तो, प्रताप बिलख कर रोते हुये बोलने लगा की , आज काखिक ( चाची ) घ्यौ डाब काई दिने ली जाण छी, खूट रड पड़ो ओर डाब तल्ली भेव में घुरि गो, अब घर जा छू तो काखी मारेली।
साधु को उस पर दया आ गई, वो उसे समझने लगे की, तू डर मत मेरे साथ चल, मैं तेरे घर वालों से बात करता हूँ, ओर वो प्रताप को समझा कर उसके घर ले आये ओर आकर प्रताप के चाचा को डाँटा की, एक अनाथ बच्चे के साथ अन्याय कर रहे हो, कैसे भला होगा तुम्हारा, साधु की बात सुनकर प्रताप के चाचा तो कुछ नही बोले, पर उसकी काखी भड़कते हुये बोली,, हम तो जस्ये पाल्णी उस्ये पालूण, तुमुकें ज्यादा दया औने तो पाल्ल लियो ये कें ,इस पर साधु बोले ठीक है आज से मैं ही इसको पालूँगा ओर उन्होने गाँव वालों के सामने प्रताप को पालने की इच्छा प्रगट की ओर वो प्रताप को अपने साथ लेकर चल दिये।
प्रताप भी घर वालों से दुखी तो था ही, इसलिए वो भी खुशी खुशी साधु के साथ चला गया, साधु महाराज ने उसे पढ़ाया ओर साथ ही धार्मिक शिक्षा भी प्रदान करी, कुछ सालों बाद पता लगा की वो प्रताप जाना माना भागवत कथा वाचक बन गया था।

स्वरचित लघु कथा 

सर्वाधिकार सुरक्षित

English version

Luck
 O Pratap wakeup, go to the pond and fetch water, you still sleeping

 Pratap woke up in a panic, although it was still dark outside, Pratap was also afraid to come out, but Pratap, who was afraid of his aunt, had little fear, he immediately picked up the pot and walked towards the pond.

 Pratap's parents had died in his childhood, so his uncle had brought him up, but as a domestic servant, all the work was done by him, Pratap Pratap's voices used to come throughout the day, from filling water, grass  He had the responsibility of cutting and grazing the cows and goats, in exchange for which he had to get dry food in the early hours of the window, it was not at first sight that Pratap was such a close relative of his, but he was like their servant.  felt.

 Pratap did not even know how he used to bear all this, if someone else had been there, when would he have run away, I do not know what Pratap was stopping thinking.

 Despite Pratap's work, his aunt saw his lack, and she kept cursing him day and night, seeing him, the aunt's children also used to speak directly to Pratap, Mannu of his age understood him as something.  It was not, when look was ready to quarrel, despite that Pratap, who was spinning like a mill throughout the day, kept working quietly for everyone, even then he used to get to hear the truth.

 The people of the village would have felt pity on him, but considering it as a mutual matter of the house, he probably did not interfere, and because of this Pratap continued to suffer atrocities.

 Pratap was made by his family members like a bull plowing in a way, just like the bull used to beatten once after plowing the field, in the same way Pratap also used to scolding despite doing all the work.

 Even after suffering so much, none of the villagers saw him crying, although there was always sadness on his face, but one day a monk coming to the village saw Pratap crying in the forest, that sadhu village  Used to keep coming and knew Pratap, when he asked Pratap the reason for crying, Pratap started crying and crying, today aunt gave a box of ghee to someone, who fell in the ditch due to slipping feet  If I go home now my aunt will kill me.

 The sage took pity on him, he started understanding him, don't be afraid, walk with me, I talk to your family members, and after explaining Pratap, he brought him to his house and came and scolded Pratap's uncle.  You are doing injustice to the orphan child, how will you do well, Pratap's uncle did not say anything after listening to the sadhu, but his aunt said furiously, We will take care of you the way we are taking care of you, you are feeling more pity  If yes, then you take care of it, on this the sage said, it is okay from today onwards, and he expressed his desire to raise Pratap in front of the villagers and he took Pratap with him.

 Pratap was also unhappy with the family members, so he also happily went with the monk, monk taught him and also provided religious education, after a few years it was found that Pratap became a well-known Bhagwat story reader.

 composed short story

 All rights reserved

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

पीड ( दर्द ) Pain

बहुत दिनों से देखने में आ रहा था की कुँवरी का अनमने से दिख रहे थे ,खुद में खोये हुये ,खुद से बातें करते हुये ,जबकि उनका स्वभाव वैसा बिल्कुल नही था ,हँसमुख ओर मिलनसार थे वो ,पता नही अचानक उनके अंदर ऐसा बदलाव कैसे आ गया था, समझ नही आ रहा था के आखिर हुआ क्या।  कुंवरी का किस कदर जिंदादिल थे ये किसी से छुपा नही ठहरा ,उदास वो किसी को देख नही सकते थे ,कोई उदास या परेशान दिखा नही के कुंवरी का उसके पास पहुँचे नही ,जब तक जाते ,जब तक सामने वाला परेशानी से उबर नही जाता था ,अब ऐसे जिंदादिल इंसान को जब उदास परेशान होते देखा तो ,सबका परेशान होना लाजमी था ,पर कुँवरी का थे के ,किसी को कुछ बता नही रहे थे ,बस क्या नहा क्या नहा कह कर कारण से बचने की कोशिश कर रहे थे ,अब तो सुबह ही घर से बकरियों को लेकर जंगल की तरफ निकल पड़ते ओर साँझ ढलने पर ही लौटते ,ताकि कोई उनसे कुछ ना पूछ पाये ,पता नही क्या हो गया था उन्हें ,गाँव में भी उनका किसी से झगड़ा नही हुआ था ,ओर घर में कोई लड़ने वाला हुआ नही ,काखी के जाने के बाद अकेले ही रह गये थे ,एक बेटा था बस ,जो शहर में नौकरी करता था ,उसके बच्चे भी उसी के साथ रहते थ

बसंती दी

बसन्ती दी जब 15 साल की थी ,तब उनका ब्या कर दिया गया ,ससुराल गई ओर 8 साल बाद एक दिन उनके ससुर उन्हें उनके मायके में छोड़ गये ,ओर फिर कोई उन्हें लेने नही आया ,बसन्ती दी के बौज्यू कई बार उनके ससुराल गये ,पर हर बार उनके ससुराल वालों ने उन्हें वापस लेने से ये कहकर  इंकार कर दिया की ,बसन्ती बाँझ है ओर  ये हमें वारिस नही दे सकती तब से बसन्ती दी अपने पीहर ही रही।  बाँझ होने का दँश झेलते हुये बसन्ती दी की उम्र अब 55 के लगभग हो चुकी थी ,उनके बौज्यू ने समझदारी दिखाते हुये 10 नाली जमीन ओर एक कुड़ी उनके नाम कर दी थी ,ताकि बाद में उनको किसी भी प्रकार से परेशानी ना हो ,ओर वो अपने बल पर अपनी जिंदगी जी सके। बसन्ती दी ने उस जमीन के कुछ हिस्से में फलों के पेड़ लगा दिये ओर बाकि की जमीन में सब्जियाँ इत्यादि लगाना शुरू किया ,अकेली प्राणी ठहरी तो गुजारा आराम से चलने लगा ,भाई बहिनों की शादियाँ हो गई ,भाई लोग बाहर नौकरी करने लगे ,वक़्त बीतता चला गया। बसन्ती दी शुरू से ही मिलनसार रही थी ,इसके चलते गाँव के लोग उनका सम्मान करते थे ,ओर खुद बसन्ती दी भी ,लोगों की अपनी हैसियत अनुसार सहायता भी कर

देवता का न्याय

थोकदार परिवारों के ना घर में ही नही ,अपितु पूरे गाँव में दहशत छाई हुई थी ,कुछ दिनों से थोकदार खानदान के सारे घरों में ,घर के सदस्यों को पागलपन के जैसे लक्षण देखने को मिल रहे थे ,यहाँ तक की गाय भैंसों ने भी दूध देना बंद कर दिया था ,किसी को समझ नही आ रहा था की आखिर ये हो क्या रहा है। पहाड़ में अगर ऐसा होना लगे तो ,लोग देवी देवताओं का प्रकोप मानने लगते हैं ,ओर उनका अंतिम सहारा होता है लोक देवताओं का आवाहन ,इसलिये थोकदार परिवारों ने भी जागर की शरण ली। खूब जागा लगाई काफी जतन किये ,पर कौन था किसके कारण ये सब हो रहा था ,पता नही लग पा रहा था ,जिसके भी आँग ( शरीर ) में अवतरित हो रहा था ,वो सिर्फ गुस्से में उबलता दिखाई दे रहा था ,पर बोल कुछ नही रहा था ,लाख जतन कर लिये थे ,पर समस्या ज्यों की त्यों थी ,गाँव वाले समझ नही पा रहे थे की आखिर थोकदार परिवार को इस तरह परेशान कौन कर रहा है ,ओर तो ओर जगरिये उससे कुछ बुलवा नही पा रहे हैं ,अंत में गाँव में आया हुआ एक मेहमान बोला मेरे गाँव में एक नौताड़ ( नया ) अवतरित हुआ है ,उसे बुला कर देखो क्या पता वो कुछ कर सके ,थोकदार परिवार ने दूसर