सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

पहाडी चिडिया - Mountain Bird


रेबा ,गाँव में उसे सब इसी नाम से पुकारते थे, वैसे उसका नाम ठहरा रेवती।

किशन दा की चैली रेबा को पहाड़ से बड़ा लगाव था,जब उसके साथ की लड़कियाँ हल्द्वानी शहर की खूबियों का बखान करती तो, रेबा बोल उठती, छी कतुक भीड़ भाड़ छ वाँ, नान नान मकान छ्न, गरम देखो ओरी बात, मैं कें तो बिल्कुल भल न लागण वाँ,मैं कें तो पहाड भल लागु, ठंडी हौ, ठंडो पाणी, न गाडियों क ध्वा, ना शोर शराब ,पत्त न की भल लागु तुमुके हल्द्वानी, मैं कें तो प्लेन्स बिल्कुल भल न लागण।
रेबा पहाड़ की वो चिडिया थी, जिसकी जान पहाड़ में बसती थी, उसके लिये पहाड़ से अच्छी जगह कोई नही थी, रेबा सुबह जल्दी उठ कर ,सबके लिये चाय बनाती फिर स्कूल जाती, वहाँ से आकर घर का छोटा मोटा काम निपटाती, ओर फिर पढ़ने बैठ जाती,ये रेबा की दिनचर्या का हिस्सा था।
रेबा अब इन्टर कर चुकी थी, किसन दा अब उसके लिये लड़का ढूँढने लग गये थे, ताकि समय पर उसके हाथ पीले हो सके।पर रेबा चाहती थी की उसकी शादी पहाड़ में ही कहीं हो, उसने अपनी ईजा को भी बोल दिया था की ,तू बाबू थें कै दिये मेर ब्या पहाड़ में ही करिया, भ्यार जण दिया।

इधर किसन दा रेबा के लिये कोई ऐसा लड़का तलाश रहे थे जो अच्छी नौकरी करता हो, अंत में उन्हें एक लड़का मिला, पर वो बाहर नौकरी करता था, जबकि रेबा बाहर रहने वाले के साथ ब्याह नही करना चाहती थी, किसन दा पशोपेश में थे की क्या करूँ, ओर कोई ढँग का लड़का भी नही मिल पा रहा था,अंत में किसन दा ने तय किया की, लड़का कमाने खाने वाला होना चाहिये, इसलिए इस लड़के के साथ ही रेबा का रिश्ता ठीक है, ओर वो अपनी तरफ से हामी भी भर आये थे।

इधर रेबा ने सुना तो वो उदास हो गई, क्योकिं वो पहाड़ छोड़ कर नही जाना चाहती थी, पर अपने बाबू के दिये गये वचन के खातिर वो चुप रही।

जबसे रेबा की शादी तय हुईं, तबसे रेबा उदास रहने लगी, उसे लग रहा था की, अब उसका प्यारा पहाड़ उससे छूटने वाला है, पता नही कब आना होगा उसका यहाँ, आयेगी भी तो कितने दिन के लिये, शायद वैसे ही जैसे कोई टूरिस्ट आता है इन पहाडों में।

जैसे जैसे शादी के दिन नजदीक आते जा रहे थे, रेबा की उदासी बढ़ती जा रही थी,कभी कभी उसका मन कर रहा था की, शादी के लिये इंकार कर दूँ, पर बाबू का मान उसके लिये पहाड़ से भी ज्यादा था, बस इसी मान के लिये वो पहाड से दूर होने को भी तैयार थी।

रेबा के घर में मेहमानों के आने का सिलसिला चालू हो चुका था, गाँव की महिलाएं मँगल गान गाते हुये सुआल पथाई कर रही थी, उधर रेबा ये सोच कर उदास थी की, उसे पहाड छोड़ कर जाना पड़ रहा था।
बारात आँगन में आ चुकी थी, रेबा के फेरे भी हो लिये थे, विदाई का वक़्त आ गया था, ओर अब तक चुप बैठी रेबा, अपने बाबू के गले से लिपट कर रोते हुये बोली, बाबू तुमुली मैं कें आज तक खूब प्यार दे पर आज पहाड बैठि दूर कर दे,ओर फिर फफक कर रोने लगी, उसे देख कर किसन दा भी रो दिये।
स्वरचित लघु कथा 

सर्वाधिकार सुरक्षित

हिंदी अनुवाद 

पहाडी चिडिया
रेबा गाँव में उसे सब इसी नाम से पुकारते थे, वैसे उसका नाम था रेवती।

किशन दा की बेटी रेबा को पहाड़ से बड़ा लगाव था,जब उसके साथ की लड़कियाँ हल्द्वानी शहर की खूबियों का बखान करती तो, रेबा बोल उठती, छी कितनी भीड़ भाड़ है वहाँ , छोटे छोटे मकान हैं, गर्मी की तो पूछो मत, मुझे तो मैं बिल्कुल अच्छा नही लगता वहाँ,मुझे मैं तो पहाड अच्छा लगता है, ठंडी हवा, ठंडा पानी, न गाडियों का धुआँ , ना शोर शराबा ,पता नही क्या अच्छा लगता है तुम लोगों को हल्द्वानी, मुझे तो प्लेन्स बिल्कुल अच्छा नही लगता।

रेबा पहाड़ की वो चिडिया थी, जिसकी जान पहाड़ में बसती थी, उसके लिये पहाड़ से अच्छी जगह कोई नही थी, रेबा सुबह जल्दी उठ कर ,सबके लिये चाय बनाती फिर स्कूल जाती, वहाँ से आकर घर का छोटा मोटा काम निपटाती, ओर फिर पढ़ने बैठ जाती,ये रेबा की दिनचर्या का हिस्सा था।

रेबा अब बारहवी कर चुकी थी, किसन दा अब उसके लिये लड़का ढूँढने लग गये थे, ताकि समय पर उसके हाथ पीले हो सके।पर रेबा चाहती थी की उसकी शादी पहाड़ में ही कहीं हो, उसने अपनी माँ को भी बोल दिया था की ,तू पापा से कह देना की,मेरी शादी पहाड़ में ही करना। 

इधर किसन दा रेबा के लिये कोई ऐसा लड़का तलाश रहे थे जो अच्छी नौकरी करता हो, अंत में उन्हें एक लड़का मिला, पर वो बाहर नौकरी करता था, जबकि रेबा बाहर रहने वाले के साथ ब्याह नही करना चाहती थी, किसन दा पशोपेश में थे की क्या करूँ, ओर कोई ढँग का लड़का भी नही मिल पा रहा था,अंत में किसन दा ने तय किया की, लड़का अच्छा कमाने वाला होना चाहिये, इसलिए इस लड़के के साथ ही रेबा का रिश्ता ठीक है, ओर वो अपनी तरफ से हामी भी भर आये थे।

इधर रेबा ने सुना तो वो उदास हो गई, क्योकिं वो पहाड़ छोड़ कर नही जाना चाहती थी, पर अपने पिता के दिये गये वचन के खातिर वो चुप रही।

जबसे रेबा की शादी तय हुईं, तबसे रेबा उदास रहने लगी, उसे लग रहा था की, अब उसका प्यारा पहाड़ उससे छूटने वाला है, पता नही कब आना होगा उसका यहाँ, आयेगी भी तो कितने दिन के लिये, शायद वैसे ही जैसे कोई टूरिस्ट आता है इन पहाडों में।

जैसे जैसे शादी के दिन नजदीक आते जा रहे थे, रेबा की उदासी बढ़ती जा रही थी,कभी कभी उसका मन कर रहा था की, शादी के लिये इंकार कर दूँ, पर पिता का सम्मान उसके लिये पहाड़ से भी ज्यादा था, बस इसी सम्मान के लिये वो पहाड से दूर होने को भी तैयार थी।

रेबा के घर में मेहमानों के आने का सिलसिला चालू हो चुका था, गाँव की महिलाएं मँगल गान गाते हुये सुआल पथाई कर रही थी, उधर रेबा ये सोच कर उदास थी की, उसे पहाड छोड़ कर जाना पड़ रहा था।

बारात आँगन में आ चुकी थी, रेबा के फेरे भी हो लिये थे, विदाई का वक़्त आ गया था, ओर अब तक चुप बैठी रेबा, अपने बाबू के गले से लिपट कर रोते हुये बोली, पापा आपने मुझे आज तक बहुत प्यार दिया ,पर आज मुझे अपने पहाड से दूर कर दिया,ओर फिर रेबा फफक कर रो पड़ी, उसकी ये बात सुनकर रेबा के पापा भी रो पड़े।

स्वरचित लघु कथा 

सर्वाधिकार सुरक्षित

English version 

Mountain Bird
 Everyone in the village used to call her by this name, although her name was Revati.

 Kishan da's daughter Reba was very fond of the mountain, when the girls with her used to tell about the merits of Haldwani city, Reba would say, how crowded is there, there are small houses, don't ask me about the heat.  I do not like there at all, I like mountains, cold air, cold water, no car smoke, no noise, I don't know what you like, Haldwani, I don't like planes at all.

 Reba was that bird of the mountain, whose life used to live in the mountain, there was no better place for him than the mountain, Reba would wake up early in the morning, make tea for everyone, then go to school, come from there and do the small work of the house, and then  Sitting down to study, it was part of Reba's daily routine.

 Reba was now twelfth, Kisan Da was now looking for a boy for her, so that her hands could turn yellow in time. But Reba wanted her to be married somewhere in the mountain, she had also told her mother that,  Tell your father to marry me in the mountain.

 Here Kisan da Reba was looking for a boy who does a good job, in the end he found a boy, but he used to work outside, while Reba did not want to marry with the one who lived outside, Kisan da was in trouble  What to do, and I was not able to find any kind of boy, in the end, Kisan Da decided that the boy should be a good earner, so Reba's relationship with this boy is fine, and he agreed on his behalf.  Had also come.

 When Reba heard here, she became sad, because she did not want to leave the mountain, but she remained silent for the promise given by her father.

 Ever since Reba's marriage was fixed, Reba started feeling sad, she was feeling that now her beloved mountain is going to leave her, I don't know when she will have to come here, even if she will come for how many days, maybe just like a tourist  Comes in these mountains.

 As the wedding day drew nearer, Reba's sadness was increasing, sometimes she felt like refusing to marry, but her father's respect was more than a mountain for her, just this respect  For that she was even ready to move away from the mountain.

 The procession of guests had started in Reba's house, the women of the village were stroking the needle while singing the Mangal anthem, while Reba was sad thinking that she had to leave the mountain.

 The procession had arrived in the courtyard, Reba's rounds had also taken place, the time had come for farewell, and till now Reba, who was sitting silently, clinging to her babu's neck, said, Papa, you have given me a lot of love till today, but  Today, I was taken away from my mountain, and then Reba cried bitterly, Reba's father also cried after hearing this.

 composed short story

 All rights reserved

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

पीड ( दर्द ) Pain

बहुत दिनों से देखने में आ रहा था की कुँवरी का अनमने से दिख रहे थे ,खुद में खोये हुये ,खुद से बातें करते हुये ,जबकि उनका स्वभाव वैसा बिल्कुल नही था ,हँसमुख ओर मिलनसार थे वो ,पता नही अचानक उनके अंदर ऐसा बदलाव कैसे आ गया था, समझ नही आ रहा था के आखिर हुआ क्या।  कुंवरी का किस कदर जिंदादिल थे ये किसी से छुपा नही ठहरा ,उदास वो किसी को देख नही सकते थे ,कोई उदास या परेशान दिखा नही के कुंवरी का उसके पास पहुँचे नही ,जब तक जाते ,जब तक सामने वाला परेशानी से उबर नही जाता था ,अब ऐसे जिंदादिल इंसान को जब उदास परेशान होते देखा तो ,सबका परेशान होना लाजमी था ,पर कुँवरी का थे के ,किसी को कुछ बता नही रहे थे ,बस क्या नहा क्या नहा कह कर कारण से बचने की कोशिश कर रहे थे ,अब तो सुबह ही घर से बकरियों को लेकर जंगल की तरफ निकल पड़ते ओर साँझ ढलने पर ही लौटते ,ताकि कोई उनसे कुछ ना पूछ पाये ,पता नही क्या हो गया था उन्हें ,गाँव में भी उनका किसी से झगड़ा नही हुआ था ,ओर घर में कोई लड़ने वाला हुआ नही ,काखी के जाने के बाद अकेले ही रह गये थे ,एक बेटा था बस ,जो शहर में नौकरी करता था ,उसके बच्चे भी उसी के साथ रह...

थान

थान - मंदिर प्रवीण के पिता को अपना गाँव ढूँढने में बडी मशक्कत लगी, क्योकिं वो खुद बचपन में एक बार अपने पिता के साथ ही आ पाये थे, उसके बाद उनका भी आ पाना संभव नही हुआ। प्रवीण के बूबू ( दादा ) को किसी जमाने में कोई अंग्रेज अपने साथ साउथ अफ्रीका ले गया था, शायद वो अंग्रेज तब इन पहाड़ों में अधिकारी रहा होगा, फिर वहाँ से साउथ अफ्रीका चल दिया होगा, तब से प्रवीण का पूरा परिवार वहीं रहा। वही पर रच बस गया था प्रवीण का परिवार, प्रवीण के पिता का जन्म भी वहीं हुआ था ओर प्रवीण तीसरी पीढ़ी का सदस्य था, जो की वहीं जन्मा,दादा शायद नौकरी करते थे, ओर पिता ने पढ़ लिख कर खुद का काम शुरू किया, कुल मिलाकर अच्छा खासा संपन्न परिवार था उन लोगों का। पर कहते हैं ना की जन्मभूमि बुलाती जरूर है, खासकर पहाड़ की तो, ऐसा ही कुछ प्रवीण के परिवार के साथ भी हुआ, ओर उन्हें भी बरसों बाद पहाड़ आना पड़ा। हुआ ये की प्रवीण के परिवार में अचानक विपत्ति आ गई, उसके पिताजी की तबीयत ना जाने क्या खराब हुईं की, लाख ईलाज करवा लिया पर बीमारी समझ नही आई डाक्टरों को, सब हताश हो गये, प्रवीण के पिता की दशा निरंतर बिगड़ती चली जा रही थी।...