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शहद बेचने वाला लड़का - Honey seller boy


उसकी उम्र ज्यादा नही थी, बामुश्किल 12- 13 साल का होगा, मौ ली लियो, बिल्कुल शुद्ध  मौ ली लियो की आवाज लगाता हुआ ,वो हर दो चार दिन मे भीमताल की बाजार में दिख जाता था।

मैनें इस दौरान देखा की उसके खरीददार ,उसका बहुत सा शहद तो चखने के नाम पर खा जाते थे ,जि़ससे उसको उसकी मेहनत का पूरा फायदा नही मिल पाता होगा,पर वो किसी को चखने से मना नही करता था।

मैनें उससे पूछा की, क्या तुम मधुमक्खी पालते हो तो वो बोला ना हो सैप, उक थें बक्स चाणी ओर बक्स लीजी पैंस, मेर पास क्या नहा, तब उसे टोकते हुये मैनें पूछा फिर तुम ये शहद कहाँ से लाते हो, तब उसने बताया की जंगव में बैठि लों, अब जंगव ले कम है गी तो मौ ले कम मिलूँ ।

घर में कौन कौन है पूछने पर उसने बताया की ईजा है बस, बौज्यू शराब पी छी, एक दिन लड़ा है पड़ी ईज बौज्यू बीच तो उ हमुके छोड़ बेर लह गी,खेतीबाड़ी छ नहा, एक टुट्टी कुड़ी छ उ में ही रोणू।

कितनी कमाई हो जाती है पूछने पर उसने बताया की, कमाईक की बतों सैप, बस गुजार हैं जाँ जस्ये तस्यै, मौ मिल जाँ तो पुर महण खा लीणु भैली कें, न मिलण तो आदुक पेट खा लीणु।

वो जिस तरह से अपने बारे में बता रहा था, उससे उसकी परिपक्वता झलक रही थी की, उसने कितनी शिद्दत से जिंदगी को करीब से देखा है, इस उम्र के बच्चों में ऐसी परिपक्वता दूर दूर तक देखने में नही मिलती।

जंगल से शहद इकट्ठा करने में कोई दिक्कत नही आती पूछने पर उसने बताया की, कई बार मौनों ली बुका दी, मेर पास बचण लीजी, ना जाई वाई टोपी भै ना तल्ली पहण वाव कपड, पर मौ चाँ तो मौनों छत्त तक जाने  पड़ोल न।
जब उस बच्चे से पूछा की ये काम सिखाया किसने तुम्हें तो वो बोला, बौज्यू निकाव छी पैलि उनर दिगाड कई बार गयों, तब सीख ले देख देख बेर, जब उ हमुके छोड़ बेर लह गी तो मजबूरी में यौ काम करण पड़ो, अब तो आदत है गे, मौन बुकोनी पर अब फर्क न पड़न।

जब मैनें उससे कहा की लोग लेते कम ओर चख ज्यादा जाते हैं तो वो बोला, गरीब कें सब ठगनी हो सैप, दुकान में जाणी तो खुद ठगी जाणी,पर की करि जाओ मौ बेचण छ तो यौ सब सहन करण पडौल,ग्राहक कें खुश रौण चाँ।

उससे बात करके मैं ये सोचने को मजबूर हो गया की ,कोई  इतना संतुष्ट कैसे हो सकता है, उसे पता है की लोग उसका शहद चख कर नुकसान पहुँचा रहे हैं फिर भी उसे लेशमात्र दुख नही, मुझे लगा कहीं वो मिलावटी शहद तो नही बेच रहा,जब उससे ये सवाल पूछा तो वो दुखी मन से बोला,सैप मिलावट कस्ये हूँ यौ मै न जाणनी, न मिलावट करनेक टाइम छ, जंगव जाबेर मौ निकाव छू ओर दौड़ बेर बजार आ जाँछू, ताकि जल्दी मौ बिचा जाओ ओर मै घरे लीजी सामान खरीद ल्यों, घर चलोण लायक पैंस मिल जाओ यौई बहुत छ, मिलावट कर बेर कतुक पैंस मिल जाल उस्ये, बदनामी हौली उ अलग, जब ईमानदारी ली मिल जाणी तो क्याही करी जाओ बेईमानी बल।साथ ही वो बोला की आपुले चाख लियो थोड़ा मौ, भल लागले तो ली लिया ,पहाड़ोंक मौ क तो बाते अलग हूँ, उ बात अलग छ की हम जस नान लोगों पर लोग  भरोस न करण, जबकि चमक दमक दिखा बेर बेचण वाव ठुल लोगों कं मौ तुरंत खरीद लीणी।

सैप आजकल पैली तो मौन न मिलण ओर मिल ले जाँ तो मौ  निकावन में मेहनत लागे, एक आद किलो मिल जाओ तो मान लियो की दिन ठीक छ आजक,उ में ले चाखण में लह जाँ, जो बचों उक जो मिल जाओ उवील घरक थोड़ा खर्च निकव जाँ, जस्ये तस्यै पेट भर जाँ ,बस कैके अगील हाथ पसारने जरूरत न पड़न ,मै तो येतुक में खुश छू।
उस लड़के की बात सुनकर में उसकी ईमानदारी ओर उसकी मेहनत का कायल था, उसकी बातें बता रही थी की, वो जो कह रहा है उसकी हर बात में सचाई थी, बिल्कुल उसके मौ ( शहद ) की तरह।

स्व रचित संस्मरण 
सर्वाधिकार सुरक्षित


हिंदी अनुवाद 

शहद बेचने वाला बच्चा 

उसकी उम्र ज्यादा नही थी, बामुश्किल 12- 13 साल का होगा, शहद ले लो, बिल्कुल शुद्ध  शहद ले लो की आवाज लगाता हुआ ,वो हर दो चार दिन में भीमताल की बाजार में दिख जाता था।

मैनें इस दौरान देखा की उसके खरीददार ,उसका बहुत सा शहद तो चखने के नाम पर खा जाते थे ,जि़ससे उसको उसकी मेहनत का पूरा फायदा नही मिल पाता होगा,ओर वो था की किसी को चखने से मना नही करता था।

मैनें उससे पूछा की, क्या तुम मधुमक्खी पालते हो तो वो बोला नही सर , उसके लिये लकड़ी के बक्से चाहिये ओर बक्से के लिये पैसे चाहिये, मेर पास दोनों ही नही हैं, तब उसे टोकते हुये मैनें पूछा फिर तुम ये शहद कहाँ से लाते हो, तब उसने बताया की जंगल से लाता हूँ, अब जंगल कम हो गये तो शहद कम ही मिल पाता है।

घर में कौन कौन है पूछने पर उसने बताया की माँ है बस, पिता शराब पीते थे , एक दिन दोनों में लड़ाई हो तो पिता हमको छोड़ कर चले गये,खेती की जमीन है नही, बस एक टूटा फूटा सा मकान है उसी में रहते हैं।

कितनी कमाई हो जाती है पूछने पर उसने बताया की, कमाई का क्या बताऊँ सर , बस गुजारा चल रहा है जैसे तैसे, शहद ज्यादा मिल जाता है तो महने भर खा लेते हैं, ओर नही मिलता है तो, आधा पेट खा लेते हैं।

वो जिस तरह से अपने बारे में बता रहा था, उससे उसकी परिपक्वता झलक रही थी की, उसने कितनी शिद्दत से जिंदगी को करीब से देखा है, इस उम्र के बच्चों में ऐसी परिपक्वता दूर दूर तक देखने में नही मिलती।

जंगल से शहद इकट्ठा करने में कोई दिक्कत नही आती पूछने पर उसने बताया की, कई बार मधुमक्खियाँ काट लेती हैं, मेरे  पास बचने के लिये, ना जालीदार टोपी है ओर ना पहनने वाले  कपडे, पर शहद चाहिये तो छत्तों तक जाना ही पडेगा ना।

जब उस बच्चे से पूछा की ये काम किसने सिखाया तुम्हें तो वो बोला, पिता निकालते थे पहले, तब उनके साथ कई बार जाता था , उनको देख कर निकालना सीखा था, जब वो हमें छोड़ कर चले गये तो मजबूरी में यही काम करना पडा, अब तो आदत हो गई  है, मधुमक्खियां काटती हैं पर अब फर्क न पड़ता।

जब मैनें उससे कहा की लोग लेते कम ओर चख ज्यादा जाते हैं तो वो बोला, गरीब को सब ठगते हैं सर , दुकान में जाते हैं तो खुद ठगे जाते हैं, शहद बेचना है तो ये सब सहन करना पडेगा,ग्राहक का खुश रहना जरुरी है।

उससे बात करके मैं ये सोचने को मजबूर हो गया की ,कोई  इतना संतुष्ट कैसे हो सकता है, उसे पता है की लोग उसका शहद चख कर नुकसान पहुँचा रहे हैं फिर भी उसे लेशमात्र दुख नही, मुझे लगा कहीं वो मिलावटी शहद तो नही बेच रहा,जब उससे ये सवाल पूछा तो वो दुखी मन से बोला,सर  मिलावट कैसे होती है ये मैं नही जानता, न मिलावट करने का टाइम है, जंगल जाकर शहद निकालता हूँ ओर दौड़ कर बाजार आ जाता हूँ, ताकि जल्दी शहद बिके ओर मैं घर के लिये सामान खरीद लूँ , घर चलाने  लायक पैंसे मिल जायें यही बहुत है, मिलावट करके कितने ज्यादा  मिल जायेंगे , बदनामी होगी सो अलग, जब ईमानदारी से मिल जाते हैं तो क्यों बेईमानी करी जाये ,फिर वो बोला की आप भी  चख लो थोड़ा शहद ,अच्छा लगेगा तो ले जाना  ,पहाड़ के शहद की तो बात ही अलग होती है , वो बात अलग है की हम जैसे छोटे लोगों पर लोग भरोसा नही करते, जबकि चमक दमक दिखा कर बेचने वालों का शहद लोग तुरंत खरीद लेते हैं।

सर आजकल पहले तो शहद नही मिलता ओर मिल भी जाता है तो शहद निकालने में मेहनत लगती है, ओर एक आधा किलो मिल जाये तो, समझ लो की दिन ठीक है आज का,उसमें भी चखने में चला जाता है, ओर जो बचता है उससे घर का खर्च निकल जाता है जैसे तैसे ,बस किसी के आगे हाथ पसारने जरूरत नही पड़ती,मैं तो इसी में खुश हूँ।

उस लड़के की बात सुनकर में उसकी ईमानदारी ओर उसकी मेहनत का कायल था, उसकी बातें बता रही थी की, वो जो कह रहा है उसकी हर बात में सचाई थी, बिल्कुल उसके शहद की तरह।

स्व रचित संस्मरण 

सर्वाधिकार सुरक्षित

English Version

Honey seller boy
 His age was not much, he would be hardly 12- 13 years old, take honey, take pure honey, making the sound of taking honey, he used to appear in Bhimtal's market every two to four days.

 During this time I saw that his buyers used to eat a lot of his honey in the name of tasting it, so that he would not get the full benefit of his hard work, and he did not refuse to taste anyone.

 I asked him, do you keep bees, then he did not say sir, he needs wooden boxes and money for the boxes, I do not have both, then interrupting him I asked, then from where do you get this honey  , then he told that I bring it from the forest, now if the forest becomes less, then honey is rarely available.

 On asking who is in the house, he told that mother is just, father used to drink alcohol, one day if there is a fight between both of them, father left us, there is no agricultural land, only a broken house lives in it.  .

 On asking how much he earns, he told that, what should I tell about the earnings, sir, just living is going on like this, if honey is available, then they eat for a month, and if they do not get it, they eat half the stomach.

 The way he was telling about himself, his maturity was visible, how closely he has looked at life, such maturity is not seen far and wide in children of this age.

 There is no problem in collecting honey from the forest, when asked, he told that many times bees bite, I have no mesh hat or clothes to wear, but if I want honey, I will have to go to the hives.
 When asked that child who taught you this work, he said, father used to take out first, then used to go with him many times, learned to remove after seeing him, when he left us and left, then he had to do the same thing in compulsion,  Now it has become a habit, bees bite, but now it doesn't matter.

 When I told him that people take less and taste more, then he said, everyone cheats the poor, sir, if they go to the shop, they themselves are cheated, if you want to sell honey then you will have to bear all this, it is important for the customer to be happy.  .

 After talking to him I was compelled to think that, how can someone be so satisfied, he knows that people are harming him by tasting his honey, yet he is not hurt at all, I thought that he is not selling adulterated honey.  When asked this question to him, he said with a sad heart, Sir, I do not know how adulteration takes place, there is no time to adulterate, I go to the forest to extract honey and run to the market, so that soon honey is sold and I can go home.  I should buy goods for it, get the money to run the house, this is enough, how much more will you get by adulteration, there will be defamation, so different, when you get honesty then why should you be dishonest, then he said that you also taste some honey  If you like it, take it, it is a different matter of mountain honey, it is a different thing that people do not trust small people like us, while people who sell by showing shine, people buy honey immediately.

 Sir nowadays, honey is not available at first and even if it is found, it takes hard work to extract honey, and if you get one and a half kilograms, then understand that the day is fine today, it also goes into tasting, and from what remains.  The cost of the house goes away, just like that, there is no need to spread hands in front of anyone, I am happy in this.
 Listening to that boy, I was convinced of his honesty and his hard work, telling his words that everything he was saying was true, just like his honey.

 self composed memoirs

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