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जनवरी, 2022 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

बच्ची का - Bachi uncle

ओ बच्ची का कहाँ को भाग दौड़ हो रही है रत्ती ब्यान (सुबह सुबह ) ,बच्च दा को टोकते हुये गोपाल दा बोले, सुनते ही बच्ची का पलटे ओर बोले फाव मारने (मरने ) जा रहा हूँ , चलेगा क्या। गोपाल दा खितखित हँसते हुये बोले, वहाँ तुम ही जाओ, पर चाय पीकर जाना आ जाओ।  फटा जूता, सिर पर टोपी, ढीली सी पतलून ओर ऊपर फटी सी स्वेटर पहने बच्ची का ,चाय का नाम सुनते ही बड़ी ठसक से खुट में खुट (पाँव में पाँव ) रखकर आँगन में आकर बैठ गये, ओर जोर की आवाज लगा कर बोले , ओ ठुल ईजा (ताई ) गुड जरा ठुल ठुल लाये (गुड जरा बड़ा बड़ा लेकर आना ) , कम मिठ में पी जस न लागीन (कम मीठे में चाय पी जैसी नही लगती ), अक्रिम (अजीब )स्वाद हो जाता है चाय का। बच्ची का गाँव के हर घर को अपना घर सा ही मानते थे, इसके चलते ही वो इस तरह की बात अधिकारपूर्ण बोल जाते थे। बच्ची का जवाब देने में बड़े हाजिर  थे, लोग मजाक करते तो बच्ची का ऐसा जवाब देते की सामने वाला खिसिया कर रह जाता, वैसे बच्ची का थे सीधे व सरल इंसान । गाँव में बस उनकी टूटा फूटा मकान था, बाकि जमीन जायदाद तो उनके रिश्तेदार खा गये थे,जब वो बहुत छोटे थे, उनके पिता का देहांत हो गया थ

पहाडी चिडिया - Mountain Bird

रेबा ,गाँव में उसे सब इसी नाम से पुकारते थे, वैसे उसका नाम ठहरा रेवती। किशन दा की चैली रेबा को पहाड़ से बड़ा लगाव था,जब उसके साथ की लड़कियाँ हल्द्वानी शहर की खूबियों का बखान करती तो, रेबा बोल उठती, छी कतुक भीड़ भाड़ छ वाँ, नान नान मकान छ्न, गरम देखो ओरी बात, मैं कें तो बिल्कुल भल न लागण वाँ,मैं कें तो पहाड भल लागु, ठंडी हौ, ठंडो पाणी, न गाडियों क ध्वा, ना शोर शराब ,पत्त न की भल लागु तुमुके हल्द्वानी, मैं कें तो प्लेन्स बिल्कुल भल न लागण। रेबा पहाड़ की वो चिडिया थी, जिसकी जान पहाड़ में बसती थी, उसके लिये पहाड़ से अच्छी जगह कोई नही थी, रेबा सुबह जल्दी उठ कर ,सबके लिये चाय बनाती फिर स्कूल जाती, वहाँ से आकर घर का छोटा मोटा काम निपटाती, ओर फिर पढ़ने बैठ जाती,ये रेबा की दिनचर्या का हिस्सा था। रेबा अब इन्टर कर चुकी थी, किसन दा अब उसके लिये लड़का ढूँढने लग गये थे, ताकि समय पर उसके हाथ पीले हो सके।पर रेबा चाहती थी की उसकी शादी पहाड़ में ही कहीं हो, उसने अपनी ईजा को भी बोल दिया था की ,तू बाबू थें कै दिये मेर ब्या पहाड़ में ही करिया, भ्यार जण दिया। इधर किसन दा रेबा के लिये

पश्चाताप - remorse

देबुली को अपने घर आये 6 महीने बीत गये थे, छोटी सी बात पर वो अपनी सास से झगडा कर बैठी थी, ओर अपने पीहर आ गई। कभी इस घर की लाडली देबुली को यहाँ आकर अहसास हुआ की, अब वो पहले जैसी लाडली नही रही यहाँ,अब उसके घर वालों का व्यवहार उसके प्रति रूखा रूखा सा था,पर देबुली क्या करती, उसके पास ओर कोई चारा भी नही था। अब देबुली को अपना ससुराल याद आ रहा था, कैसे वो इकलौती बहु होने के कारण पूरे घर पर राज करती थी, बस थोडा़ सास ही तो टोका टोकी करती थी, बाकी तो सब ठीक ही थे। उसे इस बात पर पछतावा हो रहा था की, छोटी सी बात पर उसने घर छोड़ने का फैसला ले लिया। देबुली अब वापस अपने घर जाना चाहती थी, वो घर जहाँ उसकी पूछ थी,पर अब जाये तो  जाये कैसे, वो ही तो घर छोड़ कर आई थी। देबुली सारे दिन यही सोचती रही की, कैसे वापस जाऊ, उसे समझ नही आ रहा था की, किस तरीके से उसकी घर वापसी हो। काफी सोचने के बाद उसने तय किया की, चाहे कुछ भी हो जाये,अब वो अपने घर वापस जायेगी। सुबह होते ही उसने पानी का बर्तन पकडा ओर पानी भरने के बहाने निकल गई ओर रास्ते से उसने अपनी सास के नंबर पर फोन किया,ये सोच कर के उनसे माफी