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बच्ची का - Bachi uncle

ओ बच्ची का कहाँ को भाग दौड़ हो रही है रत्ती ब्यान (सुबह सुबह ) ,बच्च दा को टोकते हुये गोपाल दा बोले, सुनते ही बच्ची का पलटे ओर बोले फाव मारने (मरने ) जा रहा हूँ , चलेगा क्या।

गोपाल दा खितखित हँसते हुये बोले, वहाँ तुम ही जाओ, पर चाय पीकर जाना आ जाओ। 

फटा जूता, सिर पर टोपी, ढीली सी पतलून ओर ऊपर फटी सी स्वेटर पहने बच्ची का ,चाय का नाम सुनते ही बड़ी ठसक से खुट में खुट (पाँव में पाँव ) रखकर आँगन में आकर बैठ गये, ओर जोर की आवाज लगा कर बोले , ओ ठुल ईजा (ताई ) गुड जरा ठुल ठुल लाये (गुड जरा बड़ा बड़ा लेकर आना ) , कम मिठ में पी जस न लागीन (कम मीठे में चाय पी जैसी नही लगती ), अक्रिम (अजीब )स्वाद हो जाता है चाय का।

बच्ची का गाँव के हर घर को अपना घर सा ही मानते थे, इसके चलते ही वो इस तरह की बात अधिकारपूर्ण बोल जाते थे।

बच्ची का जवाब देने में बड़े हाजिर  थे, लोग मजाक करते तो बच्ची का ऐसा जवाब देते की सामने वाला खिसिया कर रह जाता, वैसे बच्ची का थे सीधे व सरल इंसान ।

गाँव में बस उनकी टूटा फूटा मकान था, बाकि जमीन जायदाद तो उनके रिश्तेदार खा गये थे,जब वो बहुत छोटे थे, उनके पिता का देहांत हो गया था ओर 13 - 14 साल के होंगें तो माँ भी चल बसी ,जब सम्भालने वाला कोई नही बचा , तो रिश्तेदार ने उनकी देखभाल के नाम पर सारी संपत्ति हथिया ली थी, दोनों वक़्त खाना भी इसलिए मिल जाता था, ताकि बच्ची का को ग्वाले भेजा जा सके, स्कूल का तो मुँह ही नही देखा था की ,कैसा होता है, इतना सब कुछ होते हुये भी बच्ची का ने कभी किसी से शिकायत नही की, बहुत ही संतोषी इंसान थे बच्ची का। 

बचपन से ही बच्ची का गाय बकरियों के ग्वाले जाते , ओर जंगल में बैठ कर पहाड़ी गीत गाते, कैलि बजा मुरुली तो उनका प्रिय गीत था, अक्सर उन्हें ये गीत गाते ओर गुनगुनाते हुये देखा जा सकता था, बांसुरी भी अच्छी बजा लेते थे, एक ओर चीज बजाते थे, जिसका नाम बच्ची का वीणा या बीणा कहते थे, वो तार का बना था, बच्ची का उसे दाँतों के बीच फँसा कर बजाया करते थे।

बच्ची का को कोई गलत शौक भी नही था, ना ही वो बीड़ी पीते थे ना ही शराब , जबकि उनकी उम्र के अधिकांश लोग बीड़ी तो फूँक ही लेते थे ,बच्ची का बीड़ी फूँकने वाले साथियों को कहते भी थे, कम फूकी कर रे बिड (कम कम फूंका कर रे बीड़ी), नतर तू जल्दी फूकी जाले (नही तो तू जल्दी फूंक जायेगा जल्दी)।

बच्ची का इतने साफ दिल के इँसान थे की, किसी को कुछ कहना होता तो ,उसके मुँह पर ही बोल देते, पीठ पीछे बोलना उन्होनें जैसे सीखा ही नही था, पर बोलने से पहले वो ये डायलॉग जरूर बोला करते की, तुझे बुरा तो लगेगा पर पीठ पीछे बात करना मुझे नही आता।

बच्ची का, का अपना कहने को कोई नही था, इसके चलते उनका विवाह नही हो पाया, करता भी कौन उनके रिश्ते की बात , जमीन के नाम पर ना ही ,कोई खेत था ना ही कुछ ओर ,टूटा मकान था ओर उसमें खाना पकाने के लिये एक आद बर्तन थे, उसमें भी बच्ची का कभी कभार ही खाना बनाते थे, क्योकिं कोई ना कोई उनको अकेला जान कर खाना खिला ही देता था, चाय तो करीब करीब सब पिला ही देते थे, इसके चलते बच्ची का रोजाना 5 - 7 गिलास चाय तो पी ही लेते थे, बस चाय के साथ उनको गुड की बड़ी डली चाहिये होती थी, कोई छोटी डली पकड़ा दे तो बच्ची का तुरंत डायलॉग ये मार देते थे की, इतना सा गुड क्या लाया है, छाती में धर के ले जायेगा , इस डायलॉग के चलते हर कोई उन्हें बड़ा गुड ही लाकर देता था।
 
बच्ची का की कमाई का जरिया या तो लोगों के गाय बकरियों के ग्वाला ले जाना से होती थी,या लोगों के लिये लकड़ी या घास लाने से होती थी, अकेले थे खर्चे के नाम पर कुछ नही होता था तो साथी लोग मजाक में जब बच्च दा से ये पूछते की कितने पैंसे छिपा रखे हैं बच्ची का मकान के अंदर, तो वो तपाक से बोल उठते जा भीतर ओर देख आ, मिल जाये तो अपनी एक शादी ओर कर लाना।

एक बार का किस्सा है, बच्ची का कोयले के चूरे से मँजन कर रहे थे, उनके में मुँह काला लगा था ,किसी ने मजाक करते हुये ये कहाँ बच्ची का आज तो पक्क (पक्का ) गुनी (काले मुँह का बंदर ) लग रहे हो, बच्ची का ने तुरंत जवाब दिया, फिर तो तेर ( तेरा ) बाप ले ( पिता भी ) गुनी भै (काले मुँह के बंदर हुआ ) , उसने ही तो मुझे ये दिया है।

बच्ची का अपनी नाक पर सवालों मक्खी भी नही बैठने देते थे, गजब की हाजिर जवाबी थी उनमें।

गाँव में किसी के भी काम हो ,या कोई सामूहिक काम हो,तो सबसे पहले ओर सबसे ज्यादा काम करने वाले इँसान बच्ची का ही होते, लकड़ी लाना हो या कोई ओर काम बच्ची का सबसे आगे रहते, चाय बनाने की जिम्मेदारी तो उन्हें ही दी जाती थी, किसने पी किसने नही पी, बच्ची का को सबका ध्यान रहता ,ऐसी बढ़िया ओर चाय बनाते की, पीने वालों को भी आनंद आ जाता, चीनी, चायपत्ती ओर दूध का संतुलित उपयोग करना तो कोई बच्ची का से सीखता, लेकिन बच्ची का खुद की बनाई चीनी वाली चाय नही पीते थे, वहाँ भी उन्हें गुड वाली चाय चाहिये होती थी, इसके चलते वो जिसका काम हो रहा होता था, उसे बोल देते थे - देख रे मेरे लिये थोड़ा गुड ला देना, तब तेरी ये चाय अच्छी बनेगी,फिर मत कहना की ,बच्ची का कैसी  चाय बना दी, यहाँ भी वो अधिकारपूर्वक अपनी बात मनवा लेते थे।

उनके जिंदगी जीने के अंदाज से कोई नही कह सकता था की बच्ची का, का कोई नही था,क्योकिं उनके लिये तो सारा गाँव ही अपना था।

स्वरचित लघु कथा 

सर्वाधिकार सुरक्षित

English version

Bachi ka
O Bachi ka, where is the running in the morning, while interrupting the Bachi ka, Gopal da said, on hearing this, the Bachi ka is going to turn around and and said going to die, come with me.

 Gopal da laughing and said, you go there, but go after drinking tea,lets come.

 Wearing a torn shoe, a cap on the head, loose trousers and a torn sweater, the Bachi ka, on hearing the name of the tea, sat down in the courtyard, keeping his feet on his feet, and said with a loud voice, O tai Bringing jaggery bigger, less sweet tea does not look like drinking, it tastes strange.

 Bachai ka considered every house of the village as his own house, due to this he used to speak such a thing as right.

 Bachi ka was very present in answering, if people used to joke, then the bachi ka would give such an answer that the person in front would have been giggled, like the bachi ka was a straight and simple person.

 There was only a broken house in the village, the rest of the property was eaten by his relatives, when he was very young, his father had died and when he would be 13-14 years old, his mother also passed away, when there was no one to take care of him.  If left, the relative had grabbed all the property in the name of their care, food was also available at both the times so that the bachi ka could be sent to the cowherd, had not even seen the face of the school, how it is, all this  Despite anything, Bachi ka never complained to anyone, Bachi ka was a very contented person.
 

 From childhood, children used to go to cow goats, and sit in the forest and sing Pahari songs, Kali Baja Muruli was his favorite song, often he could be seen singing and humming these songs, he used to play the flute also well, a  And used to play the thing, whose name the children called Veena or Bina, it was made of strings, the bachi ka used to play it by trapping it between the teeth.

 Bachi ka did not even have any wrong hobby, neither he used to drink beedi nor alcohol, while most of the people of his age used to blow beedi, the bachi ka also used to say to the companions who blow the beedi, blowing less and less beedi  , otherwise you will get blown up soon.

 Bachi ka was such a pure hearted person that if someone had to say something, he would have spoken on his face, he had not learned to speak behind his back, but before speaking, he would have said this dialogue that you would feel bad.  But I don't know how to talk behind my back.

 The bachi ka had no one to say as his own, due to this he could not get married, who would even talk about their relationship, neither in the name of the land, there was no field nor anything else, there was a broken house and for cooking in it  There was a great pot, in that too, the bachi ka rarely used to cook food, because someone or the other used to feed them knowingly alone, almost everyone used to drink tea, due to this, the bachi ka had 5-7 glasses of tea daily.  So they used to drink, just with tea they needed big nuggets of jaggery, if someone caught a small nugget, the child would immediately kill the dialogue that, what has brought so much jaggery, will carry it in the chest.  Because of the dialogues, everyone used to bring them very good.
 
 The source of income of the bachi ka was either by taking cows or goats to the cows of the people, or by bringing wood or grass to the people, there was nothing in the name of expenses, then the fellow people joked when the bachi ka was born.  If you ask him how much money is hidden inside the bachi's ka house, then he starts speaking with awe and looks inside, if you get it, then bring one more marriage of yours.

 There is an anecdote once, the bachi ka were brushing with coal powder, their face was black, someone joked, where are these bachi ka today, you are looking like a sure black-faced monkey, the bachi ka answered immediately.  Then your father should also be a black-faced monkey, he has given this to me.

 Bachi ka did not allow even a fly to sit on his nose, he had a wonderful response.

 Whether there is any work in the village, or any collective work, then the first and most working person would have been bachi ka, whether to bring wood or some other work, bachi ka would have been at the forefront, they were given the responsibility of making tea.  Used to go, who did not drink, who did not drink, the bachi ka used to take care of everyone, making such a good and tea, the drinker would also enjoy, if a bachi ka would learn from the balanced use of sugar, tea leaves and milk, but the bachi ka  They did not drink tea made of their own sugar, there they also wanted good tea, because of this, they used to tell the person whose work was being done, look, bring me some jaggery, then this tea of ​​yours will be good.  Then don't say, what kind of tea did the bachi ka make, even here he used to get his point right.

 From the way he lived his life, no one could say that the child had no one, because for him the whole village was his own.

 composed short story

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