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पहाड की पीड़ा - Mountain Pain

पहाड की ईजाओं के नसीब में सिर्फ घर सम्भालना ही नही होता, बल्कि अपने नौजवान बेटों के दूर होने का दर्द भी होता है। पहाड के लिये जिसने भी ये कहावत गढ़ी है, वो कितनी सटीक है की पहाड की जवानी ओर पहाड का पानी पहाड के काम नही आता। जहाँ भी जाओ वहाँ की ईजाओं का ये दुख एक सा दिखाई देता है, अपने बेटों की चिंता करती इजाऐ आपको हर कहीं दिखाई दे ही जायेंगीं। अगर कोई उस शहर से जहाँ उसका बेटा गया है, गाँव आ जाये तो ईजाये दौड़ दौड़ कर उस शख्स से मिलने आ जाती है, मकसद होता है, अपने बेटों का हाल जानने का। मैं भले ही शहर में ही पैदा हुआ पर गाँव से निरंतर जुड़ाव रखा, इस नाते गाँव के लोग मुझे जानते हैं, मैनें तभी इस बात को प्रत्यक्ष महसूस किया है। इन ईजाओं का अपने बेटों से बिछोह का दुख देखकर अत्यंत दुख होता है, क्योकिं मुझे पता है, जब इन ईजाओं के बेटे शहरों में आते हैं तो उन्हें कितनी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, नया शहर, नया काम, ओर अनुभव की कमी उनके रास्तों की जंजीरें बन कर रास्ता रोक देती हैं, तब ईजा का वो बेटा छटपटा उठता है, भूखा प्यासा ओर बेघर वो बेटा, चिंतित हो उठता है की अब न जाने क्या होग