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दाज्यू

दाज्यू घर के सबसे बड़े बेटे थे, चार भाईयों में सबसे बड़े , घर की आर्थिक स्तिथि कुछ ठीक नही थी, तो पिता ने स्कूल भी नही भेजा , इस तरह दाज्यू अनपढ़ ही रह गये, ये बात दाज्यू को कटोचती थी की, उनके सारे साथी स्कूल गये ,ओर वो पढ़ भी नही सके।

वक़्त बीतने के साथ दाज्यू जितने बड़े होते जा रहे थे, उनके ऊपर घर का भार ,उतना ही बढता जा रहा था, पिता कब तक अकेले घर को चलाते, इसलिए अब दाज्यू भी काम धाम करने लगे थे, कभी किसी का खेत जोत देते तो, कभी किसी की लकड़ी फाड़ देते, इस तरह के छोटे मोटे काम करके, दाज्यू अपने पिता की ,घर चलाने में मदद की।

सौम्य व हँसमुख स्वभाव के स्वामी दाज्यू को देखने पर कोई ये अंदाजा नही लगा सकता था की, दाज्यू ने कभी स्कूल नही देखा था, जिंदगी की ठोकरें खाते खाते काफी ज्ञान अर्जित किया था उन्होनें।

दाज्यू खुद स्कूल भले ही नही जा सके हों, पर उन्होनें अपने सारे छोटे भाईयों को स्कूल में डलवाया ताकि वो उनकी तरह अनपढ़ ना रह जायें।
दाज्यू भाईयों को कहते भी थे, पढ़ लिख लो, मुझे तो मौका नही मिला, तुमको मिला है तो इसका फायदा उठा लो, कल कुछ बन जाओगे तो सुख पाओगे।

दाज्यू उनको पढ़ाने के लिये ही छोटी सी उम्र से काम करने लगे थे, क्योकिं वो जानते थे की, पिता के बस की है नही ,ओर  अगर वो काम नही करेंगे तो, उनके भाई भी स्कूल नही जा पायेंगें उनकी तरह।

इस तरह दाज्यू ने खुद अनपढ़ रख कर अपने भाईयों को पढ़ाया , उनके सारे भाई भी पढ़ लिखकर अच्छी अच्छी नौकरी पा गये , इधर दाज्यू अपने घर की तरक्की देने में गाँव में ही रह गये।

दाज्यू ने अपने घर परिवार के लिये, अपने सारे अरमानों,सारे सपनों का त्याग कर दिया , उनका भी मन करता होगा वो भी स्कूल जायें,उनका भी दिल करता होगा की, वो भी खेलते कूदते, पर दाज्यू ने इन सब इच्छाओं को यकीनन कुचला होगा।

दाज्यू के सारे भाई अच्छी नौकरियों के चलते, अच्छे पैसे वाले थे, उनके बच्चें भी उच्च शिक्षित हो गये थे, शहर में ही मकान था, गाडी घोड़े भी ठहरे, उनके सामने दाज्यू कहीं नही टिकते थे, दाज्यू का वही पुराना पुश्तैनी मकान था, वो भी सब भाईयों का सामूहिक  ,थोड़ी खेती की जमीन थी, जिसमें दाज्यू अपने हाड़तोड़ मेहनत कर फसल लगाते थे, ताकि साल भर खाने लायक हो सके, उसमें भी भाईयों का संदेश आ जाता की, थोडा़ दाल इत्यादि भिजवा देना, दाज्यू कपड़ों की छोटी छोटी गठरी में थोडा़ थोडा़ सामान बाँध कर उन्हें भिजवा देते।
दाज्यू की हालत वही पुराने वाले दाज्यू की तरह ही थी, भाईयों से भी कुछ सहयोग नही मिलता था, ना ही दाज्यू ने अपने लिये कभी भाईयों से कुछ माँगा , खुद्दारी तो जैसे दाज्यू में कूट कूट कर भरी थी।

दाज्यू कितने खुद्दार थे, इस बात का पता इस बात से लग सकता है की, जब दाज्यू की पत्नी ने बड़े बेटे को आगे पढ़ने के लिये शहर भेजने को कहा तो, दाज्यू ने ये कहते हुये मना कर दिया की, वहाँ खर्चा बहुत होता है पढ़ने में ओर भाईयों के बच्चे भी पढ़ रहे हैं, उनके ऊपर बोझ क्यों डालूँ, अगर पढ़ने वाला होगा तो, यही पढ़ लेगा, सारे यही पढ़ कर ही तो आज अच्छी नौकरी में हैं।

दाज्यू क्यों ऐसा कहते थे, क्यों भाईयों से कोई सहयोग नही लेना चाहते थे, ये दाज्यू ही जानते थे।

ऐसा नही था की दाज्यू ने कभी अपने भाईयों से सहयोग की इच्छा नही रखी हो, एक बार दाज्यू ने  घर की छत ठीक करवाने के लिये अपने भाईयों से बात करी थी, जब वो लोग पूजा में गाँव आये थे।
पुश्तैनी मकान की छत  चूने लगी  था ,ओर इसके चलते अंदर की लकड़ियाँ खराब हो रही थी,उसे ठीक कराने के लिये दाज्यू भाईयों से बोले थे, भाई लोग सहयोग करते या ना करते, इससे पहले दाज्यू के कानों ने ऐसी बात सुनी की, उन्होनें मकान की छत ठीक कराने का इरादा ही त्याग दिया, हुआ यों की रात को दाज्यू के सारे भाई एक जगह बैठ कर पाख ठीक कराने की बात कर रहे थे, तब उनकी पत्नियाँ बीच में बोल उठी की, हम थोड़ी ना रहते हैं इस मकान में, कभी कभार ही तो आते हैं, फिर क्यों हम पैसें लगाये, बस ये बात सुनकर दाज्यू का दिल खट्टा हो गया।

दाज्यू ने दूसरे दिन सारे भाईयों को बुलाया ओर कह दिया की, अभी टाइम भी नही है मेरे पास, इसलिए बाद में ठीक करवायेंगे मकान को , ऐसा कह कर दाज्यू ने उनके इंकार को स्वीकार कर लिया था, वो दिन था ओर आज का दिन है, दाज्यू ने फिर कभी कुछ नही माँगा भाईयों से। 

स्वरचित लघु कथा 

सर्वाधिकार सुरक्षित

English Version

Dajyu
 Daju was the eldest son of the house, the eldest of four brothers, the financial condition of the house was not good, so the father did not even send him to school, thus Daju remained illiterate, this thing used to hurt Daju, all his companions  Went to school, and he could not even read.

 With the passage of time, as the Dajus were getting bigger, the burden of the house was increasing on them, how long did the father run the house alone, so now the Dajus also started doing work, sometimes they would plow someone's field.  , Sometimes tearing someone's wood, by doing such small tasks, Daju helped his father in running the house.

 On seeing Daju, a gentle and cheerful nature, no one could have guessed that Daju had never seen school, he had acquired a lot of knowledge by eating life's stumbling blocks.

 Daju himself may not have gone to school, but he got all his younger brothers to attend school so that they would not remain illiterate like him.
 Daju used to tell brothers, read and write, I did not get a chance, if you have got it, then take advantage of it, if you become something tomorrow, you will get happiness.

 Daju started working from a young age , because he knew that his father's not able to work alon, and if he does not work, his brothers will also not be able to go to school like him.

 In this way, Daju educated his brothers by keeping himself illiterate, all his brothers also got a good job by reading and writing, here Daju remained in the village to give progress to his house.

 Daju gave up all his dreams, all his dreams for the sake of his family.  Will happen.

 All the brothers of Daju were well-paid, because of good jobs, their children had also become highly educated, there was a house in the city itself, the carriage cars also stayed, Daju did not stay in front of them, Daju had the same old ancestral house,  That too was the collective of all the brothers, a little agricultural land, in which the Dajus used to plant crops with their hard work, so that it could be eaten throughout the year, in that also the message of the brothers would come, send some pulses etc., small clothes of Daju  They would tie little things in small bales and send them.
 Daju's condition was the same as that of the old Daju, there was no cooperation from the brothers, nor did Daju ever ask for anything from the brothers for himself, as if Daju was filled with code.

 It can be ascertained from the fact that when Daju's wife asked to send the elder son to the city for further studies, Daju refused saying that there is a lot of expenditure.  Children of brothers are also studying in studies, why should I put a burden on them, if there is a reader, then he will study, all of them are in a good job today only after studying this.

 Why Dajyu used to say this, why Dajyu did not want to take any cooperation from brothers, only Dajyu knew.

 It was not that Daju had never desired the cooperation of his brothers, once Daju had talked to his brothers to get the roof of the house repaired, when those people had come to the village for worship.
 The roof of the ancestral house was starting to limp, and due to this the wood inside was getting damaged, Daju had spoken to the brothers to get it repaired, whether the brothers cooperate or not, before that Daju's ears heard such a thing, they  He gave up the intention of getting the roof of the house repaired, on the night of this night, all the brothers of Daju were talking about getting the roof repaired, then their wives said in the middle that we don't live in this house for a while.  we comes only rarely, then why should we invest money, just hearing this, Daju's heart became sour.

 Daju called all the brothers the next day and said that I do not even have time, so I will get the house repaired later, saying this, Daju accepted his refusal, that was the day and today is the day.  Daju never again asked for anything from the brothers.

 composed short story

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