दिन भर हों हों हों करता इधर उधर घूमता रहता था , मधुली ठुल ईजा तो उसकी हों हों से बडी परेशान रहती थी।
वो झपरू के कारण वो गप्पे नही हाँक पाती थी , इसलिये दिन भर झपरू को गलियाते रहती थी।
झपरू भी मधुली ठुल ईजा के पास जाकर हों हों कर ही देता था , ओर मधुली ठुल ईजा की गाली चालू हो जाती थी बल।
त्वैक ( तेरे को ) बाघ रगोड ली जाल ( खींच कर ले जायेगा ) , त्वै ( तुझ ) में कीड़ पड़ जाल (कीड़े पड़ेंगे ) आदि आदि।
फिर लकड़ी दिखाती तो झपरू हों हों करता , उधर से दौड़ काट देता था , इस तरह मधुली ठुल ईजा ओर झपरू के बीच दिन भर द्वंद युद्ध चलता रहता था।
पर कमाल की बात ये थी की झपरू ,मधुली ठुल ईजा के पीछे पीछे ,जंगल जरूर जाता था ,ओर फिर मधुली ठुल ईजा के साथ ही वापस आता।
कभी उसके आगे आगे तो ,कभी उसके पीछे , पर तब हों हों नही करता था बिल्कुल भी।
इस बात पर हँसी भी आती थी , ओर हम कहते भी थे की , ठुल ईजा ( ताई ) यो ( ये ) झपरू याँ ( यहाँ ) तो त्वैक देख बेर ( तुझे देख के )हों हों करू ( करता है ) पर जंगव ( जंगल ) में चुपचाप तेर दगड़ ( तेरे साथ )लागी रों (रहता है ) ।
ये बात सुन कर मधुली ठुल ईजा भी खूब हँसती थी , ओर कहती भी थी के ।
यो भड़ियोंन हान ले क्याप (अजीब ) छ , याँ हों हों करते रों ओर जंगव में चुपचाप अगील पछील ( आगे पीछे ) घूमते रों।
बड़ा अनोखा लगाव था दोनों के बीच , जंगल में शाँत रहने वाला झपरू , घर में आते ही हों हों चालू कर देता था।
जैसे मधुली ठुल ईजा का गप्प मारना , उसे पसंद ना हों ओर वो हों हों करके उसे रोकने की कोशिश करता हो!
स्वरचित लघु कथा
सर्वाधिकार सुरक्षित
English Version
When Jhaperu was small, Dhar Da brought him, after eating milk curd had grown a bit.
Throughout the day, there used to be wandering here and there, Madhuli was very busy and she was very upset with her.
Due to the zap, she could not gossip, so she used to keep on rubbing the zap throughout the day.
Jhapru also used to go to Madhuli Thul Eaja while he was there, and Madhuli Thul Eaja used to get abused
Tvac (to thee) tiger ragod li trap (will take you away), Tvai (tujh), insects (insects) etc.
Then when he showed the wood, he would have to fight, there he would run the race, in this way, there was a fight throughout the day between Madhuli Thul Eja and Jhapru.
But the amazing thing was that Jhapru, Madhuli Thul Ija followed, the forest used to go, and then Madhuli would come back with Thul Eja.
Sometimes ahead of him, sometimes behind him, but he did not happen at all.
There used to be laughter on this matter, and we used to say, Thul eja (tai) yo (yeh) yaparu yaan (here), then you can see it (see you), be a berry (see you), but do I quietly live in Ter Dagad (with you).
Madhuli Thul Eja used to laugh a lot after hearing this, and used to say that.
Yo bhadin han le kyap (strange), ya ho ho ho, and roam agile silently (back and forth) in the forest.
There was a very special attachment between the two, Shantu, who was still in the forest, used to start as soon as he came home.
Like Madhuli Thul Eja's gossip, she does not like him and tries to stop him by being him!
Scripted short story
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एक वफादार प्राणी (झपरु) और उसके मालकिन की अनकही नोंकझोंक की अति सुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया बिष्ट जी, इसी प्रकार हमें अपने ब्लॉग्स के माध्यम से उत्तराखंड की यादें ताजा करते रहें।
धन्यवाद
जी बिल्कुल , पढ़ने के लिये आभार आपका भंडारी जी।
हटाएंlajabab ji
जवाब देंहटाएंपढ़ने के लिये आभार 🙏
हटाएंPahadi log aadhe hai japru ke bina
जवाब देंहटाएंजी , आपने बिल्कुल सही कहा
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