बी एस एफ ( बार्डर सिक्योरिटी फोर्स ) में 60 साल की नौकरी पूरी करने के बाद करम सिंह ठुल बोज्यू ( करम सिंह ताऊ जी ) ने रिटायरमेंट के बाद गाँव में ही बसने का फैसला किया।
जहाँ उनके साथियों ने हल्द्वानी शहर में प्लाट लेकर मकान लगा लिये, वहीं ठुल बोज्यू ( ताऊ जी ) ने अपने पुराने मकान को ही ठीक करवा कर बढ़िया बना लिया था।
उनके हल्द्वानी बसे साथी उनसे तब कहते भी थे की , करमू तू जिंदगी भर फौज की नौकरी के चलते जंगलो में रहा ,ओर आज भी जंगलों में रहने की सोच कर खुद को पक्का जंगली साबित कर रहा है।
तब करमू ठुल बोज्यू ( ताऊजी ) उन्हें जवाब देते हुये कहते थे की, ओन दियो वक़्त ( आने दो वक़्त ) पत्त लाग जाल ( पता लग जायेगा ) को जंगली छ ओर को समझदार ( कौन जंगली है ओर कौन समझदार )।
खाली ना बैठने वाले करमू ठुल बोज्यू ( ताऊजी ) ने एक छोटा सा जमीन का टुकड़ा गाँव की सड़क किनारे भी ले लिया था ओर उसमें छोटी सी दुकान सी बना ली, जिसमें उन्होनें खाने पीने का ढाबा खोल लिया था।
ठुल बोज्यू ( ताऊजी ) चूँकि खुद अच्छा खाना बनाते थे इसलिए ढाबे में भी खुद ही सब बनाते, गाँव के इन्टर काँलेज के कुछ शिक्षक व छात्र उनके डेली के ग्राहक थे, ओर गाँव से होकर गुजरने वाली गाडियाँ भी रुक कर उनकी अच्छी कमाई करवा जाती थी ,कुल मिलाकर बढ़िया दिन कट रहे थे उनके।
ठुल बोज्यू ( ताऊ जी ) का खर्चा दुकान से ही निकल जाता था ,इसलिए अपनी पेंशन को तो हाथ ही नही लगाते थे।
गाँव में रहने ओर दुकान में खुद काम करने के कारण, वो बिल्कुल फिट थे सो अलग,,इसके चलते हारी बीमारी का खर्चा नही था सो अलग ।
वहीं उनके हल्द्वानी वाले साथियों के साथ बिल्कुल उल्टा हो गया था, जमा पूँजी प्लाट व मकान बनाने में लग गई , ओर खराब खानपान व आबोहवा के चलते बीमारियाँ लग गई सो अलग इससे उनकी जमापूंजी भी इलाज आदि में खर्च हो जाती थी।
ठुल बोज्यू ( ताऊजी ) के साथी ठुल बोज्यू ( ताऊजी ) के सामने जहाँ बूढ़े लगते वही बीमार भी।
ठुल बोज्यू ( ताऊजी ) का काम ओर पहाड़ का खानपान व आबोहवा ठुल बोज्यू ( ताऊजी ) को चुस्त दुरुस्त बनायें हुये था।
जब भी ठुल बोज्यू ( ताऊजी ) के साथी गाँव आते तो ठुल बोज्यू ( ताऊजी ) उनसे मजाक करते हुये बोलते बूडी गो छे रे तू ( बूढ़ा हो गया रे तू ) आजी जा सड़ी हल्द्वानी ( ओर जा सड़ी हल्द्वानी में ) मैं कें देख कतुक फिट छू ( मुझे देख कितना फिट हूँ )।
वो अपने साथियों को सलाह देते हुये कहते भी थे की, अब ले क्या न बिगड़ रो ( अब भी कुछ नही बिगड़ा है ) याँई आजा भल है जाले ( यही आजा ठीक हो जायेगा )।
उनकी सलाह मान कर उनके एक साथी जो शुगर के मरीज भी थे, आबोहवा परिवर्तन के लिये गाँव आ गये थे, ओर तीन चार महीने में ही उनकी दवाईयाँ छूट गई थी, अब वो ठुल बोज्यू का हाथ बंटाते हैं उनके काम में ओर बिल्कुल स्वस्थ थे।
ठुल बोज्यू के ढाबे में दिन भर उनकी कसरत हो जाती थी ओर उसकी एवज में उन्हें बना बनाया पौष्टिक भोजन खाने को मिल जाता था साथ में आने जाने वालों से बातें हो जाने से मन भी प्रफुल्लित रहता था।
वास्तव में सही कहते थे ठुल बोज्यू ( ताऊजी ) , पहाड़ की आबोहवा की बात ही निराली है, तभी यहाँ रहने वाला आपको जहाँ चुस्त दुरुस्त दिखेगा वहीं गंभीर बीमारियों से दूर रहेगा, 80 - 90 साल के बुजुर्ग यहाँ आपको रोजमर्रा के दैनिक कार्य करते हुये दिख जाएँगे, सच में यहाँ का खानपान ओर, यहाँ की जलवायु में आदमी फिट रहता है।
स्वरचित लघु कथा
सर्वाधिकार सुरक्षित
English Version
Mountain glory
Karam Singh Thul Boju (Karam Singh Tau ji) after completing 60 years of job in BSF (Border Security Force) decided to settle in the village after retirement.
While his colleagues took a plot in Haldwani city and set up a house, Thul Boju (Tauji) had made his old house a good one by repairing it.
His fellow residents of Haldwani used to say to him then, Karamu, you lived in the jungle due to army jobs all your life, and even today, thinking of living in the jungles, you are proving yourself to be wild.
Then Karamu Thul Boju (Tauji) used to reply to them, saying that on the time (two times), the Pat Lag Lag Jaal (will be found out) to be wild (which is wild and who is sensible).
Karamu Thul Boju (Tauji), who did not sit empty, had also taken a small piece of land on the road side of the village and built a small shop in it, in which he had opened a food stall.
Thul Bojew (Tauji) Since he used to cook good food himself, he used to make everything in the dhaba itself, some teachers and students of the village's Inter College were customers of his deli, and even the trains passing through the village would stop and make good money. It was, overall, his days were cut.
Thul boju (tau ji) used to get the expenses from the shop, so he would not touch his pension.
Due to living in the village and working in the shop himself, he was perfectly fit so different, due to this, there was no cost of losing the disease so different.
At the same time, with his Haldwani companions, it was completely upside down, the accumulated capital started to build plots and houses, and due to poor food and climate, diseases started falling apart, so it used to be spent in the treatment of their deposits.
In front of Thul Boju (Tauji), the companion of Thul Boju (Tauji), where he looks old is also ill.
The work of Thul Boju (Tauji) and the catering of the mountain and making the Thul Boju (Tauji) fit properly.
Whenever the companions of Thul Boju (Tauji) came to the village, Thul Boju (Tauji) jokingly said to them, "Buddi go chhe re tu (old age gone re tu) Aaji ja sari haldwani (and go to Haldwani), I see fit." Choo (see how fit I am).
He used to give advice to his colleagues and said, "Now take it or not it is bad (nothing is spoiled even now) or aaja bhaal hai jale"
Following his advice, one of his colleagues, who was also a patient of sugar, had come to the village for climate change, and had missed his medicines in three to four months, now he hands over the booze and was perfectly healthy in his work. .
He used to get exercised throughout the day in Thul Bojew's Dhaba, and in return he would get to eat nutritious food made by him, and the mind was also elated by talking to the visitors.
Actually Thul Bojew (Tauji) was right, the thing about the climate of the mountain is unique, only then, where you live here, you will look fit, while you will be away from serious diseases, 80-90 years old people will do their daily daily work here. Will be seen, really the catering here and here, the man is fit in the climate here.
Scripted short story
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बहुत सुंदर और सेवानिवृत्त लोगों के लिए प्रेरणा देने वाली साथ साथ अपनी जन्मभूमि के साथ जुड़ने को प्रेरित करने वाली कहानी
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