लच्छ दा ने बरसों तक दिल्ली में गाड़ी चलाई ठहरी , जब तक युवा थे , दिल्ली बढ़िया लगी ठहरी उनको। पर उम्र बढ़ने के साथ ही पहाड़ उन्हें अपनी तरफ खीचने लगा था , फिर एक दिन तय कर लिया की अब पहाड़ जाना है , तो सारा जरूरी सामान समेट कर पहाड़ आ गये। कुछ दिन तो गाँव में खाली रहे , फिर कोई काम करने की सोची , पर उन्हें तो सिर्फ गाड़ी चलानी ही आती थी , तो इसी को रोजगार बनाने का निश्चय किया , गाँव से रोज जाने वाले यात्रियों की संख्या पता की। जब लगा के इसमें दर गुजर चल जायेगी तो , तय कर लिया की एक सवारी गाड़ी निकलवा लेता हूँ , ओर गाँव से हल्द्वानी तक चला लूँगा। गाडी के लिये बैंक से लोन लिया ओर एक गाड़ी निकलवा ली , ओर इस तरह शुरू हुआ नया काम पहाड़ में आकर। हँसमुख व मजाकिया स्वभाव के लच्छ दा , लोगों को बहुत भाते थे , इसलिये हमेशा उनकी गाड़ी भरी रहती थी। गाड़ी चलाते हुये सवारियों से हँसी मजाक करते रहते , इसके चलते लोगों को पता ही नही चलता की कब सफर पूरा हो गया। लच्छ दा की एक खास बात ओर थी , जो उन्हें अन्य गाड़ी वालों से अलग करती थी , वो थी सफर करते वक़्त अ...
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