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लच्छ दा की गाड़ी


लच्छ दा ने बरसों तक दिल्ली में गाड़ी चलाई ठहरी , जब तक युवा थे , दिल्ली बढ़िया लगी ठहरी उनको। 

पर उम्र बढ़ने के साथ ही पहाड़ उन्हें अपनी तरफ खीचने लगा था , फिर एक दिन तय कर लिया की अब पहाड़ जाना है , तो सारा जरूरी सामान समेट कर पहाड़ आ गये।

कुछ दिन तो गाँव में खाली रहे , फिर कोई काम करने की सोची , पर उन्हें तो सिर्फ गाड़ी चलानी ही आती थी , तो इसी को रोजगार बनाने का निश्चय किया , गाँव से रोज जाने वाले यात्रियों की संख्या पता की। 

जब लगा के इसमें दर गुजर चल जायेगी तो , तय कर लिया की एक सवारी गाड़ी निकलवा लेता हूँ , ओर गाँव से हल्द्वानी तक चला लूँगा। 

गाडी के लिये बैंक से लोन लिया ओर एक गाड़ी निकलवा ली , ओर इस तरह शुरू हुआ नया काम पहाड़ में आकर। 
हँसमुख व मजाकिया स्वभाव के लच्छ दा , लोगों को बहुत भाते थे , इसलिये हमेशा उनकी गाड़ी भरी रहती थी। 

गाड़ी चलाते हुये सवारियों से हँसी मजाक करते रहते , इसके चलते लोगों को पता ही नही चलता की कब सफर पूरा हो गया। 

लच्छ दा की एक खास बात ओर थी , जो उन्हें अन्य गाड़ी वालों से अलग करती थी , वो थी सफर करते वक़्त अगर किसी को उल्टी  आने को होता तो वो तुरंत गाड़ी रोक कर उसे थोडी देर ठंडी हवा खाने का मौका देते। 
अब पहाडों में तो ऐसी सुविधा प्रदान कर देने वाला तो , उल्टी करने वालों के लिये भगवान तुल्य  सा हो जाता था , इसलिये उनकी गाड़ी में लोग सफर करना पसंद करते थे। 

लच्छ दा सिर्फ हँसमुख स्वभाव के ही नही थे , अपितु बडे दयावान भी थे , रास्ते में मिलने वाले बुजुर्ग व महिलाओं को वो बिना पैसे बिठा कर ले जाते थे। 
शाम को जंगलों के बीच से गुजरने वाली सड़कों पर कोई दिख जाता था तो , तुरंत गाड़ी रोकर उससे बोलते हिटना छा हो महाराज (  चल रहे हो क्या महाराज ) या बाघ दगड पार्टी छ ( या बाघ के साथ पार्टी है )।
ये सुनकर गाड़ी की सारी सवारियाँ हँसने लगती ओर सड़क पर जा रहा व्यक्ति गाड़ी में लटक जाता। 
लच्छ दा की गाडी उनके व्यवहार के कारण इलाके भर में प्रसिद्ध हो गई थी , ओर वो दिल्ली की अपेक्षा ज्यादा खुश थे पहाड़ में। 

स्वरचित लघु कथा 
सर्वाधिकार सुरक्षित

English Version 

 Lachcha Da kept driving in Delhi for years, till the time he was young, Delhi seemed to like him.


 But as the age increased, the mountain started pulling them towards it, then decided one day that now the mountain is to go, then all the necessary things were covered and the mountains came.


 For a few days, the village remained empty, then thought of doing some work, but they only knew how to drive a car, so decided to make it employment, and found out the number of daily commuters from the village.


 When I thought that the rate would pass, I decided to get a ride car, and would drive from village to Haldwani.


 Took a loan from the bank for the car and got a car out, and thus new work started after coming to the mountain.


 Lachcha Da of cheerful and witty nature was very pleasing to the people, so his car was always full.


 While driving, they used to keep joking with the passengers, because of this people do not know when the journey is complete.


 Another special thing about Lachcha Da, which separated him from the other passengers, was that if someone were to vomit while traveling, he would stop the car immediately and give him a chance to eat cold air for a while.


 Now, in the mountains, who used to provide such facilities, God used to be equal to those who vomit, so people in their car preferred to travel.


 Lachcha Da was not only of a cheerful nature, but was also very kind, he used to take the elderly and women on the way without making any money.


 In the evening, if someone was seen on the roads passing through the jungles, immediately the car stopped and spoke to him, Hitna Chha Ho Maharaj (Chalte Ho Kya Maharaj) or Bagh Dagad Party Ch (or Party with Tiger)


 Hearing this, all the passengers of the car started laughing and the person going on the road would hang in the car.

 Lachcha Da's car became famous throughout the area due to his behavior, and he was happier in the mountain than in Delhi.


 Scripted short story

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