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गाँव की जिंदगी - Life in village


आगे की पढ़ाई करने बड़े दाज्यू के साथ लखनऊ चले गये थे कुँवर सिंह जी, बड़े दाज्यू डाक विभाग में काम करते थे ,इन्टर  पास करने के बाद उन्हें भी पी डब्लू डी में क्लर्क की नौकरी में लगवा दिया उनके दाज्यू ने।

कुँवर सिंह जी कई सालों तक लखनऊ में ही नौकरी करी, बच्चे भी पढ़ लिख कर लखनऊ में ही नौकरी लग गये, इसके चलते कुँवर सिंह जी एक तरह से लखनऊ के ही होकर रह गये ,पर दिल के किसी कोने में पहाड़ बसा था, जो कुँवर सिंह जी को बहुत याद आता था।
कुँवर सिंह जी का मन करता की उस पहाड में जाकर फिर से रहा जाये, जहाँ कभी वो खूब खेला कूदा करते थे, स्कूल जाया करते थे, जहाँ उनकी ईजा उनके रोने पर घुघूती बासूति गा कर उन्हें मनाती थी ,पर नौकरी के चलते ये संभव नही हो पा रहा था।
कुछ सालों बाद कुँवर सिंह जी रिटायर हो गये, पर परिवारिक मोह के चलते शहर में ही रहे, अब उनके पास कोई काम नही था आराम करने के सिवा, सुबह शाम पार्क में चले जाते ओर दिन में सो जाते, इसके चलते वो बोर होने लगे थे,हाथ पाँवों में भी दर्द होना शुरू हो चला था, डाक्टर को दिखाया तो उसने घूमने फिरने ओर हल्का व्यायाम करने की सलाह दे डाली, कुँवर सिंह जी ने कुछ समय तो डाक्टर की सलाह पर अमल किया, पर उस पर लगातार अमल नही कर पाये, एक पुराने मित्र ने सलाह दी के ,आप तो पहाड़ के हो ,कम से कम गर्मी गर्मी वहाँ रहा करो, सारी बीमारी ठीक हो जायेगी।

कुँवर सिंह जी को भी मित्र की सलाह जम गई, क्योकिं पहाड़ की आबोहवा ओर वहाँ के ऊँचे नीचे रास्ते किसी व्यायामशाला ( जिम ) से कम नही थे, ऊपर से शुद्ध ओर जैविक खानपान इस उम्र के लिये किसी वरदान पाने जैसा था।

कुँवर सिंह जी ने मानस बना लिया की अब कम से कम गर्मियों में वो गाँव जाकर रहेंगें, ओर जैसे ही गर्मी का मौसम आया, कुँवर सिंह जी निकल लिये पहाड़ की ओर, पत्नी को भी चलने के लिये बोला ,पर पत्नी नाती पोतों के मोह चलते नही गई, कुँवर सिंह जी तो ठान चुके थे की जाना है, सो अकेले ही चल दिये, काफी सालों बाद गाँव पहुँचे तो, पाया की गाँव काफी बदल चुका है, गाँव के लोग शहरों की ओर निकल गये थे, गाँव खाली खाली सा लग रहा था,  घर जाते समय रास्ते में पड़ने वाला वो नौला भी उजाड़ सा हो चुका था, जहाँ बचपन में वो अपनी ईजा के साथ पानी भरने आया करते थे, ओर उनकी ईजा उन्हें पकड़ कर नहला भी दिया करती थी,घर पहुँचे तो देखा की उनकी कुड़ी भी कहीं कहीं से टूट फूट चुकी थी, पर रहने लायक थी।
कुँवर सिंह जी ने कुड़ी का दरवाजा खोला, अंदर धूल भरी पड़ी थी, थोडा़ सुस्ताने के बाद, उन्होने पड़ौस के घर से झाड़ू माँगी ओर सफाई में जुट गये,सफाई खत्म होने तक करते कुँवर सिंह जी ,पसीने में तरबतर हो चुके थे, इतने में पड़ौस के घर से चाय बनकर आ गई थी,आँगन में बैठकर उनके साथ चाय पी गई, पड़ौसी बोले आज ख़ाण याँई खाला, दिन के भोजन में भट्ट की चूड़कानी ओर भात खाया ओर तन्न सो गये, थकान के मारे कब नींद आई पता ही नही लगा, शाम की चाय लेकर आये पड़ौसी ने उन्हें जगाया।

दूसरे दिन कुँवर सिंह जी की नींद जल्दी खुल गई, इतने में पड़ौसी के वहाँ से फिर चाय आ गई, आज भी उनका खाना वहीं था, दिन का भोजन करके पड़ौसी के साथ पास के कस्बे तक गये ओर जरुरी सामान खरीद कर लौटे, ओर जुट गये अपनी गृहस्थी को सजाने में, अब अकेलापन उन्हें खल नही रहा था, बल्कि उन्हें ऐसा महसूस हो रहा था की, जिंदगी की नई शुरुआत सी हो रही थी।

दूसरे दिन कुँवर सिंह जी की नींद जल्दी खुल गई, इतने में पड़ौसी के वहाँ से फिर चाय आ गई, आज भी उनका खाना वहीं था, दिन का भोजन करके पड़ौसी के साथ पास के कस्बे तक गये ओर जरुरी सामान खरीद कर लौटे, ओर जुट गये अपनी गृहस्थी को सजाने में, आज अकेलापन उन्हें खल नही रहा था, बल्कि उन्हें ऐसा महसूस हो रहा था की, जिंदगी की नई शुरुआत सी हो रही थी।

कुँवर सिंह जी को अब गाँव में रहकर आनंद आने लगा था,यहाँ सारे जरुरी काम भी खुद ही कर रहे थे, ओर शहर जैसी थकान भी महसूस नही हो रही थी, कुछ दिनों में ही पाँवों में रहने वाला दर्द भी गायब हो चला था, ज्यादा काम तो था नही, इसलिए रास्ते में पड़ने वाले नौले की साफ सफाई में जुट गये, दो चार दिन में नौला बिल्कुल साफ कर दिया, वो नौला जहाँ कभी वो अपनी ईजा के साथ पानी भरने आया करते थे।
कुँवर सिंह जी को गाँव में जहाँ कहीं भी गंदगी दिखती, वो साफ सफाई में जुट जाते, कुछ दिनों में ही उन्होनें गाँव को एकदम साफ सुथरा कर दिया, लोगों को भी इस बात की आदत डाल दी की वो भी गाँव में साफ सफाई रखे,रोज शाम को अपने आँगन में गाँव के लोगों की महफिल सजाते ओर गाँव को आदर्श गाँव बनाने की बात करते, बढ़िया ओर व्यस्त जिंदगी काट रहे थे अब कुँवर सिंह जी, ओर साथ में ये संदेश दे रहे थे की, जवानी में ना सही, कम से कम बुढ़ापे को तो पहाड़ में बिताओ ओर निरोगी जीवन पाओ।

स्वरचित लघु कथा 

सर्वाधिकार सुरक्षित

English version

Village life
 Kunwar Singh ji had gone to Lucknow with his elder brother to study further, elder brother used to work in the postal department, after passing 12th, he was also put in the job of clerk in PWD by his brother.

 Kunwar Singh ji did a job in Lucknow for many years, children also got a job in Lucknow after studying and writing, due to this Kunwar Singh ji remained in a way of Lucknow, but in some corner of the heart there was a mountain, which  Kunwar Singh ji was remembered very much.
 Kunwar Singh ji wanted to go and live again in that mountain, where he used to play a lot, used to go to school, where his mother used to celebrate him by singing Ghughuti Basuti on his cry, but due to his job it is possible.
 After a few years, Kunwar Singh ji retired, but due to family attachment, he remained in the city, now he had no work except to rest, he used to go to the park in the morning and sleep during the day, due to this he started getting bored.  There was pain in the hands and feet too, when he showed the doctor, he advised him to move around and do light exercise, Kunwar Singh ji followed the doctor's advice for some time, but did not follow it continuously.  Found, an old friend advised that you belong to the mountain, at least stay in the summer heat, all the disease will be cured.

 Kunwar Singh ji also got the advice of a friend, because the climate of the mountain and the high and low roads there were no less than a gym, pure and organic food from above was like getting a boon for this age.

 Kunwar Singh ji made up his mind that now he would go to the village at least in summer, and as soon as the summer season came, Kunwar Singh ji went out towards the mountain, asked his wife to walk too, but the wife was infatuated with Grant Son.  Did not go, Kunwar Singh ji was determined to go, so he left alone, after reaching the village after many years, he found that the village had changed a lot, the people of the village had left for the cities, the village was empty.  It seemed that on the way home, the water flowing on the way had also become desolate, when he reached home, he saw that his house was also broken from somewhere, but it was worth living.
 Kunwar Singh ji opened the door of the house, it was dusty inside, after a little rest, he asked for a broom from the neighboring house and started cleaning, Kunwar Singh ji did it till the cleaning was over, he was drenched in sweat, so much  I had come in the form of tea from the neighboring house, sat in the courtyard and drank tea with them, the neighbor said, eat food here today, ate black beans pulses and rice in the day's meal and slept, I know when I got sleep due to fatigue.  Didn't think, the neighbor who came with evening tea woke him up.

 On the second day, Kunwar Singh ji woke up early, so tea came again from the neighbor's there, even today his food was there, after having dinner, went to the nearby town with the neighbor and returned after buying the necessary items, and got busy.  When he went to decorate his house, now he was not feeling lonely, but he felt that a new beginning of life was coming.

 On the second day, Kunwar Singh ji woke up early, so tea came again from the neighbor's there, even today his food was there, after having dinner, went to the nearby town with the neighbor and returned after buying the necessary items, and got busy.  Going to decorate his house, today loneliness was not bothering him, but he felt that a new beginning of life was happening.

 Kunwar Singh ji was now enjoying living in the village, he was doing all the necessary work here himself, and was not even feeling tired like the city, within a few days the pain in the feet had also disappeared,  There was not much work, so they got involved in cleaning the drain falling on the way, in two to four days, completely cleaned the Naula, the Naula where once he used to come to fill water with his prayer.
 Wherever Kunwar Singh ji saw the dirt in the village, he would get involved in cleaning, within a few days he made the village very clean, people also made it a habit to keep cleanliness in the village,  Every evening, while decorating the gathering of the people of the village in his courtyard and talking about making the village an ideal village, Kunwar Singh ji was leading a good and busy life, and together he was giving this message that, not in youth, at least  Spend less old age in the mountain and get a healthy life.

 composed short story

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