हमारे गाँव के ग्राम पंचायत क्षेत्र में देवी का एक छोटा सा मंदिर था, गाँव के लोग वहाँ त्यौहार या किसी के घर भैंस या गाय ब्याह जाती थी तो, उसका दूध चढ़ाने उस मंदिर जाते थे, या जब मात दी ( साध्वी ) वहाँ रुकती तब जाते।
मात दी ( महिला साध्वी ) कभी कभी हमारे घर आया करती थी, जिसे सब मात दी ( साध्वी दीदी ) कह कर बुलाया करते थे , मात ( साध्वी ) क्यों बनी कब बनी , किसी को मालूम नही था।
मात दी ( साध्वी ) का पूरा गाँव सम्मान करता था, जब भी आती हर घर उन्हें भिक्षा देता ,ओर जब भी उन्हें गाँव रुकना होता तो, गाँव के देवी मंदिर में उनका डेरा डलता, वो वहीं रुकती ,वहीं खुद के हाथ से भोजन पकाती ,ओर वहीं गाँव के लोगों के साथ भजन कीर्तन करती।
मात दी ( साध्वी ) के चेहरे पर अनुपम तेज था, चेहरे पर हरदम मुस्कान तैरती रहती थी,मानो जैसे वो सांसारिक दुखों से बहुत दूर हो, कई बार मन में ये सवाल उठता था की ,क्या उनके जीवन में कोई दुख नही था, अगर नही था तो वो साध्वी ही क्यों बनी, क्यों नही उन्होनें कोई ओर राह चुनी, जब मात दी ( साध्वी ) से उनके भूतकाल के बारे में जानने की कोशिश होती वो ,सारे सवालों को ये कह कर टाल जाती की साधु का ना भूत होता है, ना भविष्य, उसका सिर्फ वर्तमान होता है, इसलिए ये सारे सवाल मेरे लिये बेकार हैं,बस आज को अच्छे व शाँति से जिओ, कल का ईश्वर पर छोड़ दो, शाँति रहेगी तो, कल भी अच्छा ही होगा, कुल मिलाकर वो ऐसे सवालों का जवाब ही नही देना चाहती थी।
मात दी ( साध्वी ) का अधिकतर समय भ्रमण में ही बीतता था, कभी किसी तीर्थ में तो कभी कहीं ओर, हमारे गाँव के एरिये में जब भी आती तो, पास के देवी मंदिर में कुछ दिन जरूर रुकती थी, कहा करती थी की, यो जाग आ बेर बड शाँति मिले ,उन्हें कुमाऊँनी बोलता सुनकर इतना तो पता लग गया था की, वो कुमाऊँ क्षेत्र से ही कहीं की थी।
मात दी ( साध्वी ) के गाँव में आते ही सूने पड़े रहने वाले देवी मंदिर में रौनक आ जाती, सुबह शाम पूजा के दौरान पढ़ें जाने वाले मँत्रो, शंख, घन्टी की आवाजों से पूरा गाँव गुंजायमान हो जाता था,जब तक वो यहाँ रहती तब तक, पूरा गाँव भक्ति भाव से ओतप्रोत रहता।
एक बार की बात है, मात दी ( साध्वी ) लंबे अंतराल के बाद गाँव आई, उन्होने गाँव के ग्राम प्रधान को कहा, की कभी इस देवी थान में अखंड धूनी जला करती थी, जो अब जमीन में दब गई, वो आज भी अंदर प्रज्जवलित है, उसे निकालना होगा, इसके लिये गाँव वालों की सहमति व सहयोग चाहिये, ग्राम प्रधान ने सबको बुलाया ओर मात दी ( साध्वी ) को सहमति ओर सहयोग का आश्वाशन दिया, नवरात्रों के दौरान मंदिर में जागरण प्रारंभ किया गया ओर मात दी ( साध्वी ) द्वारा बताए स्थान पर खुदाई का कार्य शुरू किया गया, पाँच सात फुट खोदने के बाद धूनी प्रकट हो गई, थोडा़ ओर साफ किया तो नीचे प्रज्जवलित धूनी दिखाई दी, चारो तरफ देवी माँ के जयकारे लगने लगे, पूरा माहौल भक्तिमय हो गया था।
नवरात्रों के अंतिम दिन विशाल भंडारे का आयोजन किया गया, आसपास के गाँवो से हजारों की संख्या में लोग धूनी के दर्शन करने उमड़ पड़े थे, सूना पड़ा रहने वाला देवी थान ( मंदिर ) आस्था का केंद्र बन चुका था, ग्राम प्रधान ने तय किया की, हर वर्ष नवरात्रों में 9 दिन तक धूमधाम से मेले का आयोजन किया जायेगा,ओर जिसकी अगुवाई मात दी ( साध्वी ) करेगी, साथ ही धूनी व मंदिर की पूर्ण जिम्मेदारी भी वही सम्भालेगी।
मात दी ( साध्वी ) के यहाँ निरंतर रहने से गाँव की रौनक कुछ ओर ही हो गई थी, पहले से ज्यादा चहल पहल रहने लग गई थी, खेत की वो फसलें भी अब सुरक्षित हो चली थी,जिसे पहले जंगली सूअर व बंदर नष्ट कर देते थे, गाँव की इक्का दुक्का दुकानों का भी रोजगार बढ़ गया था, एक आद चाय पानी के होटल भी खुल गये थे, ओर सबसे बड़ी बात ये की कुछ पलायन रुका ओर गाँव वालों के जीवन स्तर में सुधार आ गया था,कारण जो भी रहा हो, पर गाँव के लोग इसे मात दी ( साध्वी ) का चमत्कार मानते थे।
स्वरचित लघु कथा
सर्वाधिकार सुरक्षित
English version
Miracle of lady saint
There was a small temple of the goddess in the gram panchayat area of our village, the people of the village used to go there for festivals or when a buffalo or a cow was married at someone's house, went to that temple to offer her milk, or when the sadhvi stayed there.
Female Sadhvi used to come to our house sometimes, which everyone used to call as Sadhvi Didi, no one knew why Mata Sadhvi became her.
Sadhvi was respected by the whole village, whenever she came, every house gave her alms, and whenever she had to stay in the village, she would camp in the village's Devi temple, she would stay there, cook food with her own hands. , and would do bhajan kirtan with the people of the village there.
Sadhvi had an incomparable brilliance on her face, a smile was always floating on her face, as if she was far away from worldly sorrows, many times the question arose in her mind, was there any sorrow in her life, if If not, then why did she become a sadhvi, why didn't she choose some other path, when she tried to know about her past from the defeated sadhvi, she would have avoided all the questions by saying that there is no past of a sadhu. No future, it has only present, that's why all these questions are useless for me, just live today well and peacefully, leave tomorrow on God, if there is peace, tomorrow will be good too, overall they are such questions Didn't want to answer.
Most of the time of Sadhvi was spent in excursions, sometimes in a pilgrimage, sometimes somewhere else, whenever she came to the area of our village, she used to stay for a few days in the nearby Devi temple, used to say that, I get a lot of peace by coming to this place listening to them speak Kumaoni, I came to know that she was from Kumaon region only.
As soon as Sadhvi came to the village, the deity temple, which was lying vacant, would be lit up, the whole village would resonate with the sounds of mantras, conch shells, bells recited during the morning and evening worship, as long as she stayed here. Till then, the whole village was filled with devotion.
Once upon a time, Sadhvi came to the village after a long gap, she told the village headman, that once this goddess used to burn Akhand Dhuni in the temple, which is now buried in the ground, she is today It is also lit inside, it has to be removed, for this the consent and cooperation of the villagers is needed, the village head called everyone and gave assurance of consent and cooperation to the defeated Sadhvi, during Navratras, Jagran was started in the temple and defeated The work of excavation was started at the place mentioned by Sadhvi, after digging five seven feet, the fumes appeared, cleaned a little more, then the blazing dhuni appeared below, the Mother Goddess started chanting all around, the whole atmosphere became devotional.
A huge Bhandara was organized on the last day of Navratras, thousands of people from the surrounding villages had thronged to see Dhuni, the deserted Devi temple had become the center of faith, the village head decided that Every year during Navratras, a fair will be organized for 9 days with great pomp, and which will be led by Sadhvi, as well as she will also take full responsibility of Dhuni and the temple.
Due to the constant stay of Sadhvi, the village had become a little different, there was more activity than before, the crops of the field were also now safe, which earlier would have been destroyed by wild boar and monkeys. The employment of few shops in the village had also increased, a few tea and water hotels were also opened, and the biggest thing was that some migration was stopped and the standard of living of the villagers had improved, whatever the reason was. Yes, but the people of the village used to consider it a miracle of Sadhvi.
composed short story
All rights reserved
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें
Please give your compliments in comment box