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देबुली की पेट पीड

देबुली की पेट पीड भी गजब थी ,हफ्ते में दो दिन तो पक्की होने वाली ठहरी।

पेट पीड भी ऐसी की ,देबुली फुराणी जाने वाली ठहरी ,उस दौरान बाख़ई में बस देबुली की ही ओ ईजा मर ग्यु ,ओ बाज्यू बचा लियो मैं कें की ,आवाज का शोर गूँजता ,बाख़ई के कुकुर भी भौंकना छोड़ देते थे ,शायद ये सोच कर की ,भौंकने की आवाज तो दब रही है ,फालतू में क्यों भौंके।

पीड उठने का भी कोई टाईम नही हुआ ,कभी भी शुरू हो जाती ,एक आध घंटे तक देबुली फुराणी रहती ओर फिर धीरे धीरे ठीक हो जाती।

देबुली के घर वाले परेशान थे ,देबुली की पेट पीड से ,डाक्टर को भी दिखा दिया ठहरा ,सारी जाँच करवा ली ठहरी ,निकला कुछ नही ,देबी देबता की पूछ भी  करवा ली ,जागा ,जागर ,पश्टन सब करवा डाला ,पर सब जगह का जवाब एक सा की ,कुछ नही है ,पर पीड क्यों हो रही है ये पकड़ में नही आया।

देबुली की सास तो देबुली की पेट पीड से, सबसे ज्यादा परेशान थी ,देबुली के पेट पीड के कारण,  उसे ही सारा काम करना पड़ता था ,ऊपर से देबुली की साज समार ओर करनी पड़ती वो अलग थी।

देबुली के घर वाले समझ नही पा रहे थे की ,आखिर देबुली को पेट पीड किस कारण हो रही है ,जबकि जाँच में ओर दयाबतों की पूछ में कुछ नही निकला ,पहाड़ों में तो इन दोनों का ही सहारा था ,या तो डाक्टर ठहरा या फिर देबता ,पर देबुली का मामला तो बड़ा विचित्र था ,पेट पीड तो थी ,पर ना डाक्टरी जाँच में कुछ निकल रहा था ,ना ही देबताओं की पूछ में कुछ पकड़ में आ रहा था।

दिन पर दिन देबुली की पेट पीड बढ़ती ही जा रही थी ,ईलाज का भी कोई फायदा नही हो रहा था ,देबुली की सास तो बहुत दुखी हो चुकी थी ,उसने अपने च्याल को कह दिया था की ,अब बस की नही है मेरे ,इसको ले जा अपण दगड ,किसी भल डाक्टर को दिखा देना शहर में ,यहाँ तो बीमारी पकड़ में नही आ रही।

देबुली की बीमारी की बात सुन, उसका पति गाँव आया ,उसने भी पूछ पाछ करवाई ,पर निकला कुछ नही ,जाँच के लिये अल्मोडा़ भी ले गया ,रिपोर्ट में कुछ नही निकला।

देबुली का पति भी ये सोच कर परेशान था की ,जब सब ठीक ठाक निकल रहा है तो ,फिर किस कारण पेट पीड हो रही है, आखिरकार उसने निर्णय लिया की एक बार देबुली को शहर ले जाकर किसी अच्छे डाक्टर को दिखा देते हैं।

देबुली के घर वाले इस निर्णय से खुश थे की ,चलो शहर के डाक्टर को दिखाने से कुछ तो पता चलेगा की देबुली को पेट पीड क्यों होती है।

देबुली का पति 15 दिन की छुट्टी आया था ,उस दौरान एक चीज देखने को मिली की ,इन 15 दिनों में ,देबुली को पेट पीड नही उठी ,नही तो इतने दिन में तो,  दो तीन बार तो पेट पीड उठ जाती थी, चलो देबुली को ओर उसके घरवालों को थोड़ी राहत तो मिली।

देबुली के पति की छुट्टियाँ खत्म होने को थी ,इसलिये वो देबुली को लेकर शहर चल दिया।

सुना है वहाँ की जाँचों में भी कुछ नही निकला ,ओर साथ ही देबुली को ,अब कोई पेट पीड भी नही उठ रही है , कहीं ये देश ( शहर ) जाने की पीड तो नही थी ,या शहर की हवा पानी ने, देबुली के पेट पीड  का ईलाज कर दिया, चलो जो भी था ठीक ही हुआ ,इससे सब शान्ति से रह रहे थे ,  देबुली की सास , उसके घर वाले ,डाक्टर , देबता ,बाख़ई के लोग के साथ साथ , वहाँ के कुकुर  तक।

स्वरचित लघु कथा 
सर्वाधिकार सुरक्षित

टिप्पणियाँ

  1. इसका वाक्य का सारा निचोड़ यह निकलता है की आज कल लड़कियां शादी के बाद गांव में रुकना पसंद नहीं करती

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