बसन्ती दी जब 15 साल की थी ,तब उनका ब्या कर दिया गया ,ससुराल गई ओर 8 साल बाद एक दिन उनके ससुर उन्हें उनके मायके में छोड़ गये ,ओर फिर कोई उन्हें लेने नही आया ,बसन्ती दी के बौज्यू कई बार उनके ससुराल गये ,पर हर बार उनके ससुराल वालों ने उन्हें वापस लेने से ये कहकर इंकार कर दिया की ,बसन्ती बाँझ है ओर ये हमें वारिस नही दे सकती तब से बसन्ती दी अपने पीहर ही रही।
बाँझ होने का दँश झेलते हुये बसन्ती दी की उम्र अब 55 के लगभग हो चुकी थी ,उनके बौज्यू ने समझदारी दिखाते हुये 10 नाली जमीन ओर एक कुड़ी उनके नाम कर दी थी ,ताकि बाद में उनको किसी भी प्रकार से परेशानी ना हो ,ओर वो अपने बल पर अपनी जिंदगी जी सके।
बसन्ती दी ने उस जमीन के कुछ हिस्से में फलों के पेड़ लगा दिये ओर बाकि की जमीन में सब्जियाँ इत्यादि लगाना शुरू किया ,अकेली प्राणी ठहरी तो गुजारा आराम से चलने लगा ,भाई बहिनों की शादियाँ हो गई ,भाई लोग बाहर नौकरी करने लगे ,वक़्त बीतता चला गया।
बसन्ती दी शुरू से ही मिलनसार रही थी ,इसके चलते गाँव के लोग उनका सम्मान करते थे ,ओर खुद बसन्ती दी भी ,लोगों की अपनी हैसियत अनुसार सहायता भी करती थी ,गाँव के कई ऐसे भी लोग थे ,जो बाहर रहते थे ओर बहुत कम आ पाते थे ,इसकी वजह से उनकी कुडियाँ टूट चुकी थी ,वो लोग जब भी पूजापाठ के लिये गाँव आते तो उनका डेरा बसन्ती दी के होता ,जब गाँव में कोई बारात आती तो ,बसन्ती दी के घर में बारातियों के सोने का इंतजाम होता।
बसन्ती दी की कुड़ी एक तरह से गाँव के लिये धर्मशाला जैसी थी ,जो गाँव के लोगों को कई कठिनाईयों से बचाती थी ,अगर बसन्ती दी ना होती तो ,गाँव के लोगों को समस्या हो जाती।
बसन्ती दी को भले ही उनके ससुराल वालों ने छोड़ दिया था ,पर बसन्ती दी को कभी अकेलापन महसूस नही हुआ ,उनके अपने परिवार के अलावा पूरा गाँव उन्हें अपने परिवार के सदस्य की तरह मानता था।
पंचायत चुनाव में गाँव में जब भी महिला सीट आती ,तब बसन्ती दी निर्विरोध ग्राम प्रधान बनती ,ये था बसन्ती दी का रुतबा अपने गाँव में, बसन्ती दी ने गाँव का काफी विकास करा ठहरा ,कई सरकारी परियोजनाएं वो गाँव के लिये लाई ,पीने के पानी की समस्या आई तो ,गाँव से एक किलोमीटर दूर गधेरे से गूल के माध्यम से गाँव तक पानी लाई ,प्राईमरी स्कूल के लिये एक नाली जमीन दी ,जहाँ अन्य ग्राम प्रधान अपना पेट भर रहे थे ,वहीं बसन्ती दी परियोजनाओं का एक एक पैसा ,गाँव में खर्च कर रही थी ,सौर ऊर्जा वाली लाईटें अगर किसी गाँव में जगमग करती थी तो वो बसन्ती दी का गाँव था ,गाँव के लोग तो किसी अन्य को ग्राम प्रधान तक नही देखना चाहते थे।
बसन्ती दी का अपने गाँव के लिये अगर कोई सबसे बड़ा काम था तो वो था सड़क को गाँव तक लाना ,गाँव से सड़क 6 किमी दूर थी ,ओर गाँव था दुर्गम जगह पर ,जहाँ तक सड़क को लाना मुश्किल तो नही पर आसान भी नही था ,पर बसन्ती दी ने ठान लिया था की कैसे भी हो सड़क चाहिये ,इसके लिये वो सरकार से लड़ी भी ,खुद ने भी गाँव वालों को साथ लेकर सड़क निर्माण में सहयोग किया ,गाँव आने के लिये पुराने रास्ते को कुछ चौड़ा तो गाँव के लोगों ने ही कर दिया था ,बाकि के लिये सरकार का सहयोग लिया ओर सड़क गाँव तक पहुँचा दिया ,इसमें सबसे ज्यादा जमीन बसन्ती दी की गई ,10 नाली में से 4 नाली सड़क में आ गई ,बसन्ती दी ने खुशी खुशी ये जमीन सड़क के दे दी।
बसन्ती दी अपने गाँव के विकास के लिये कोई भी कुर्बानी देने को तैयार रहती थी, पर दुख इस बात का था की ,इतनी कर्तव्य परायण महिला को त्यजता का दुख झेलना पड़ा ,वो भी बाँझ का आरोप लगा कर ,जबकि लोग कहते हैं की बसन्ती दी के जिस पति ने उन्हें त्यागा था ,उसके कोई संतान नही हुई बाद में भी ,जबकि दोष बसन्ती दी के माथे मढ़ दिया गया था।
स्वरचित लघु कथा
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