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संदेश

शंकर

शंकर पढ़ने के लिये पाटी ( लकड़ी की बनी स्लेट ) ओर कमेट की शीशी लेकर जाया करता था , ओर जब बारिश होती तो जूट के कट्टे की घोघी बनाकर उसे ओढ़ कर स्कूल जाता था ,इस तरह से पढ़ाई हुईं ठहरी शंकर की,घर की स्तिथि ठीक नही थी, बस किसी तरह दिन बीत रहे थे। शंकर के बौज्यू ( पिता ) शंकर को कहते थे, मन लगा बेर पढ़ाई करिए, भली के पढ़ ले ले तो, भोव भैली के खाले। शंकर हाँ में सिर हिला कर सहमति देता हुआ, स्कूल को निकल लेता, उसने शायद ही कभी स्कूल की छुट्टी की हो, रोजाना सुबह उठ कर नहाता ओर एक रोटी खा कर स्कूल को निकल पड़ता। शंकर को रोज स्कूल में मौजूद देख कर तेज सिंह मास साब ( मास्टर साहब ) स्कूल के अन्य बच्चों को कहते भी थे , ये कें देखो ,रोज स्कूल ओं,एक लै छुट्टी न करण, एक तुम छा छुट्टी करते फिर छा, शंकर जस बनो, देखिया तुम लोग, यो शंकर एक दिन ठुल आदिम ( आदमी ) बनोल। तेज सिंह मास साब ( मास्टर साहब ) खुद गरीबी से उठ कर इस मुकाम तक पहुँचे थे, इसके चलते उनकी शंकर के प्रति विशेष सहानुभूति भी रहती थी, वो जितना बन पड़ता उतना सहयोग करते थे शंकर का। शंकर की मेहनत ओर तेज सिंह मास साहब (...

रधुली

रधुली के जीवन में सुख नाम की कोई चीज नही थी, बचपन में माँ मर गई ओर बौज्यू दूसरी शादी कर लाये, जो नई ईजा आई उसने कभी रधुली को चैन से नही रहने दिया। रधुली जब बड़ी हुईं तो उसका विवाह कर दिया गया एक विधुर के साथ ,जो बिन दहेज के रधुली को ले जाने के लिये राजी था, इस तरह फेरों के साथ ही रधुली अपने पति के पहले से मौजूद दो बच्चों की माँ बनकर ससुराल आ गई , यहाँ भी सौतेली माँ के तानों की तरह, आते ही सास के तानों से सामना करना पड़ा। रधुली को इस तरह के व्यवहार की आदत हो चुकी थी, ओर उसने इस तरह के व्यवहार को सहने के लिये ,चुप्पी को अपना कर, एक ढाल का सा निर्माण कर लिया था, जो उसे ताने सुन कर भी, सहज बनाये रखने में मदद करता था। चुपचाप अपना काम करना, ओर तानों से बचने के लिये ओढ़ी चुप्पी में रधुली का पूरा दिन बीत जाता, सुबह जल्दी उठ कर घर के सारे काम निपटाना ओर फिर खेतों में जाकर काम करना, वहाँ से आकर दिन का भोजन बनाना, फिर बर्तन धोना, कुल मिलाकर एक मशीन की भाँति रधुली चलती सी दिखती। जरा सी गलती हो जाये तो सास तब तक सुनाना चालू कर देती ,जब तक उसका गला सूख नह...

भुवन

कहते हैं ना की अगर कुछ कर गुजरने की तमन्ना हो तो, व्यक्ति विषम परिस्तिथियों के बावजूद सफलता प्राप्त कर सकता है, कुछ ऐसा ही कर दिखाया भुवन ने। भुवन ने विषम परिस्तिथियों से मुकाबला करते हुये ना केवल खुद को स्थापित किया, अपितु उन लोगों के लिये उदहारण बन गया, जो पहाड़ को किसी काम का ना मानकर पलायन कर रहे हैं। भुवन ने अपना पूरा बचपन गरीबी में जिया, गरीबी भी ऐसी के ,कई बार तो भूखे ही सोना पड़ता था, बौज्यू ( पिता ) की शराब की लत के कारण, उसके परिवार को जिसमें उसकी ईजा ( माँ ) ओर एक छोटा भाई था, को फाँकाकशी का जीवन व्यतीत करना पड़ रहा था। भुवन ने बचपन से ही अपनी ईजा को, आर्थिक हालातों से लड़ते देखा था, बौज्यू ( पिता ) को घर से कोई सरोकार नही था, वो हमेशा शराब के नशे में धुत्त रहते, ओर अगर भुवन की ईजा ( माँ ) कुछ कहती तो, मार पीट पर उतारू हो जाते। इन हालातों को देखते हुये भुवन वक़्त से पहले समझदार हो गया था, वो जंगल जाकर लकडियाँ लाता, ओर गाँव में जिसे भी लकड़ी की जरूरत होती उन्हें बेच देता, भुवन साथ ही अपनी ईजा ( माँ ) की घास काटने में भी मदद करता, इस तरह से थोड़ा बहुत पैसा या जरूरत का साम...

शिब्बू

शिब्बू बहुत सालों बाद अपने गाँव आया था, उस गाँव में जहाँ उसने अपना बचपन बिताया था, यही के प्राइमरी स्कूल में उसने पहली बार जाना था की ,पढ़ाई क्या होती है, फिर आगे की पढ़ाई के लिये उसने , इस गाँव से 5 किलोमीटर दूर ,जी जी आई सी इन्टर कालेज तक जाने के लिये  रोजना सफर किया,उन दिनों को सोचते हुये शिब्बू उन दिनों की यादों में खो सा गया। कैसे शिब्बू के बौज्यू ने उसकी पढ़ाई के लिये दूसरों के खेतों में हल तक बाया, ताकि वो अच्छी तरह पढ़ सके। शिब्बू ने भी अपने बौज्यू को कभी निराश नही किया, वो हमेशा अच्छे नम्बरों से पास होता रहा,पर कहते हैं ना की जिंदगी इतनी आसान नही होती, उसमें लगातार रूकावटें आती रहती हैं, ओर यही हुआ शिब्बू के साथ भी। एक दिन शिब्बू के बौज्यू के हल बातें समय हल का फल पैर में घुस गया, उन्होनें इस पर ज्यादा ध्यान नही दिया, ओर इसका परिणाम ये हुआ की घाव में इंफेक्शन फैल गया, ओर उनका पैर काटना पड़ा, तब शिब्बू ने इन्टर पास करा ही था। शिब्बू के बौज्यू का पैर कटने से, उनके द्वारा किया जाने वाला काम बंद हो गया, इसके चलते आर्थिक संकट पैदा हो गया। शिब्बू क...

बहादुरी का पर्दाफाश - Bravery exposed

हम जैसे प्रवासियों को पहाड़ों में दो चीजों का डर लगने वाला हुआ ,एक तो छोव ( भूत ) का ओर दूसरा ठहरा बाघ का। भले ही हम लोग कितनी ही शेखी क्यों ना मार लें,पर अंदर ही अंदर डर तो लगने वाला ही हुआ। दिन भर चौड़ी छाती करके घूमने वाले हम जैसे लोग रात होते ही भीगी बिराऊ ( भीगी बिल्ली ) जैसे बन जाते। रात आठ बजते बजते खा पी कर टुप्प ( चुपचाप ) से बिस्तर में घुस जाते ओर फिर जब अच्छा उजाला हो जाता, तब ही बाहर को निकलते। हम से अच्छा तो वहाँ का छोटा बच्चा होता, जो लघु शंका आने पर धड़ाक से दरवाजा खोल कर बाहर निकल जाता ,हम जैसे तो सुबह होने का इंतजार करते रहते। सुबह होते ही फिर से निडर बनने का दिखावा करने लगते, मगर कभी कभी ये दिखावा भारी पड़ जाने वाला हुआ, ओर एक बार ऐसा ही हुआ। एक बार की बात है की,हम गये थे गाँव ,ओर साथ हमारे कुछ शहरी मित्र भी थे,अब जब शहरी मित्र साथ हो तो,पहाड़ी होने के नाते बहादुर दिखना तो ठहरा ही, तो उस ग्रूप में सबसे बहादुर में गिनती हुई हमारी, सारे मित्र चुपचाप हमारे कहे अनुसार रह रहे थे,बहादुर बनने के चक्कर में हमनें उन्हें ओर डरा रखा था। हमनें उनको भूत से लेकर बाघ जैसे खतर...

डरपोक रमिया

रमिया छोटेपन से ही बहुत डरता था , साँश ( शाम ) हुई नही के , वो घर के अंदर घुस जाता था , घरवाले उसकी इस हरकत से परेशान थे।  रमिया के बोज्यू तो , उसकी ईजा से इस बात पर लड़ जाते थे , की तूने छोव हौवौ ( भूत प्रेत ) की बात सुना सुना कर इसे डरपोक बना दिया बल। इस पर रमिया की ईजा बोलती , गाँव के सारे बच्चों ने भी तो सुन रखी है ये बातें , पर वो तो नही डरते बल , जरूर तुम भी ऐसे ही होंगें बल बचपन में। ये डायलॉग सुनकर रमिया के ईजा बोज्यू ओर लड़ बैठते , पर रमिया को इस लड़ाई से कोई फर्क नही पड़ता था  , वो तो घुघूत जैसा चुपचाप एक कोने में बैठा रहता था , हाँ आस पड़ौस के लोग जरूर उनकी लड़ाई से,  अपना मनोरंजन कर लेते थे।   दिन भर उछल कूद मचाने वाला रमिया , शाम होते ही इतना सीधा बन जाता था की , सीधा घर का रास्ता पकड़ लेता था , उसकी  साँस में साँस तब आती थी , जब वो देहरी के अंदर घुस जाता था।   उसके बोज्यू ( पिता ) बडे परेशान रहते ये सब देख कर , पर क्या करें ये समझ नही आता था उन्हें , वो इस बात से भी परेशान रहते थे की , बड़ा होकर भी ऐसे ही डरता रहा तो...