शंकर पढ़ने के लिये पाटी ( लकड़ी की बनी स्लेट ) ओर कमेट की शीशी लेकर जाया करता था , ओर जब बारिश होती तो जूट के कट्टे की घोघी बनाकर उसे ओढ़ कर स्कूल जाता था ,इस तरह से पढ़ाई हुईं ठहरी शंकर की,घर की स्तिथि ठीक नही थी, बस किसी तरह दिन बीत रहे थे। शंकर के बौज्यू ( पिता ) शंकर को कहते थे, मन लगा बेर पढ़ाई करिए, भली के पढ़ ले ले तो, भोव भैली के खाले। शंकर हाँ में सिर हिला कर सहमति देता हुआ, स्कूल को निकल लेता, उसने शायद ही कभी स्कूल की छुट्टी की हो, रोजाना सुबह उठ कर नहाता ओर एक रोटी खा कर स्कूल को निकल पड़ता। शंकर को रोज स्कूल में मौजूद देख कर तेज सिंह मास साब ( मास्टर साहब ) स्कूल के अन्य बच्चों को कहते भी थे , ये कें देखो ,रोज स्कूल ओं,एक लै छुट्टी न करण, एक तुम छा छुट्टी करते फिर छा, शंकर जस बनो, देखिया तुम लोग, यो शंकर एक दिन ठुल आदिम ( आदमी ) बनोल। तेज सिंह मास साब ( मास्टर साहब ) खुद गरीबी से उठ कर इस मुकाम तक पहुँचे थे, इसके चलते उनकी शंकर के प्रति विशेष सहानुभूति भी रहती थी, वो जितना बन पड़ता उतना सहयोग करते थे शंकर का। शंकर की मेहनत ओर तेज सिंह मास साहब (...
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