सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

भुवन


कहते हैं ना की अगर कुछ कर गुजरने की तमन्ना हो तो, व्यक्ति विषम परिस्तिथियों के बावजूद सफलता प्राप्त कर सकता है, कुछ ऐसा ही कर दिखाया भुवन ने।

भुवन ने विषम परिस्तिथियों से मुकाबला करते हुये ना केवल खुद को स्थापित किया, अपितु उन लोगों के लिये उदहारण बन गया, जो पहाड़ को किसी काम का ना मानकर पलायन कर रहे हैं।

भुवन ने अपना पूरा बचपन गरीबी में जिया, गरीबी भी ऐसी के ,कई बार तो भूखे ही सोना पड़ता था, बौज्यू ( पिता ) की शराब की लत के कारण, उसके परिवार को जिसमें उसकी ईजा ( माँ ) ओर एक छोटा भाई था, को फाँकाकशी का जीवन व्यतीत करना पड़ रहा था।

भुवन ने बचपन से ही अपनी ईजा को, आर्थिक हालातों से लड़ते देखा था, बौज्यू ( पिता ) को घर से कोई सरोकार नही था, वो हमेशा शराब के नशे में धुत्त रहते, ओर अगर भुवन की ईजा ( माँ ) कुछ कहती तो, मार पीट पर उतारू हो जाते।

इन हालातों को देखते हुये भुवन वक़्त से पहले समझदार हो गया था, वो जंगल जाकर लकडियाँ लाता, ओर गाँव में जिसे भी लकड़ी की जरूरत होती उन्हें बेच देता, भुवन साथ ही अपनी ईजा ( माँ ) की घास काटने में भी मदद करता, इस तरह से थोड़ा बहुत पैसा या जरूरत का सामान उन्हें मिल जाता।

जैसे जैसे भुवन बड़ा होने लगा, उसे लगाने लगा की इस तरह का काम करने से कब तक उसके घर का गुजारा चल पायेगा, इसके चलते उसके मन में कई बार ये विचार भी आया की, वो बाहर जाकर कोई नौकरी कर ले, पर वो जब अपनी ईजा ( माँ ) के बारे में सोच कर रुक जाता,उसे लगाता की अगर वो बाहर चला गया तो , उसके बौज्यू ( पिता ) ईजा ( माँ ) के साथ जब मार पीट करेंगे तो ईजा ( माँ ) को कौन बचायेगा, बस यही सोच कर भुवन ने पलायन नही किया।

भुवन गाँव में रहकर ही कुछ ऐसा करना चाह रहा था, जिससे उसकी आर्थिक स्तिथि भी सुधर जाये ओर उसे घर से भी दूर ना जाना पड़े,इसी दौरान उसे अपने एक रिश्तेदार का पता लगा, जो की पास के गाँव में बकरी पालन का काम कर के अच्छा खासा कमा रहा था, बस फिर क्या था, भुवन उस रिश्तेदार के वहाँ गया ओर उसके काम करने के तरीके को देखा, ओर समझ कर, खुद के काम की शुरुआत कर डाली।
भुवन ने शुरुआत में तीन चार बकरी से काम की शुरुआत की, खुद ही बकरी चराने जाता ओर धीरे धीरे अपने काम को बढ़ाता हुआ, अच्छी खासी संख्या में बकरियाँ पालनी शुरू कर दी।
भुवन ने सरकार द्वारा दी गई जाने वाली बकरी पालन ट्रेनिग कैंप में भाग लेकर, इस काम की बारीकियाँ सीखी ओर उस पर अमल करता हुआ, अपने काम को बढ़ाता चला गया।

आज भुवन आसपास के इलाके का काफी बड़ा सप्लायर है, अब उसके पास सब सुविधा उपलब्ध है, उसने अपने टूटे फूटे मकान को नया बनवा लिया, साथ ही बकरियों की सप्लाई के लिये एक पिकअप भी खरीद ली ,साथ ही उसने गाँव के कुछ लड़कों को अपने वहाँ रोजगार भी प्रदान किया है।
भुवन की ईजा ( माँ ) भी ये देख कर खुश है की, क्योकिं उसका उसका भुवन आज ना सिर्फ अच्छा कमाने लग गया, बल्कि आज इलाके में उसका नाम भी है, ओर सबसे खास बात ये की, अब भुवन के बौज्यू ( पिता ) ने भी शराब पीनी छोड़ दी।

कुल मिलाकर ये की भुवन की लगन ने उसे व उसके परिवार को ना केवल गरीबी की गर्त से उबारा, साथ ही उसने ये सिद्ध कर दिया की, पलायन करे बिना भी ,गाँव में ही रोजगार किया जा सकता ,ओर सफल हुआ जा सकता है।

स्वरचित लघु कथा 

सर्वाधिकार सुरक्षित

English Version

Bhuvan
It is said that if there is a desire to do something, then a person can achieve success despite odd circumstances, Bhuvan has done something similar.

 Bhuvan not only established himself while facing the odd circumstances, but became an example for those people who are fleeing the mountain as no use.

 Bhuvan lived his entire childhood in poverty, poverty also like this, sometimes he had to sleep hungry, due to the alcohol addiction of father, his family which had his mother and a younger brother, to  Had to live a life of fanaticism.

 Bhuvan had seen his mother since childhood, fighting with financial conditions, father was not concerned with the house, he would always be intoxicated by alcohol, and if Bhuvan's mother would say something, beat him. 

 In view of these circumstances, Bhuvan had become wise ahead of time, he would go to the forest and bring wood, and sell whatever wood was needed in the village, Bhuvan would also help his mother to cut the grass, in this  In a way, they would have got a little bit of money or the goods they needed.

 As Bhuvan started growing up, he began to think that by doing this kind of work, how long would he be able to support his household, due to this many times the thought also came in his mind that he should go out and do some job, but when he  He would stop thinking about his mother, would make him think that if he goes out, when his father beats up with mother, who will save mother, thinking this Bhuvan did not migrate.

 Bhuvan was trying to do something by staying in the village, so that his financial condition would also improve and he would not have to go far from home, during this time he came to know about a relative, who was working as a goat rearing in a nearby village, he was earning a lot, what was it then, Bhuvan went to that relative's there and saw his way of working, and after understanding, started his own work.
 Bhuvan started the work with three to four goats in the beginning, and gradually increasing his work, started raising a large number of goats.
 Bhuvan took part in the goat rearing training camp given by the government, learned the nuances of this work and went on increasing his work by implementing it.

 Today Bhuvan is a very big supplier of the surrounding area, now he has all the facilities available, he got his broken house made new, as well as bought a pickup to supply goats, as well as he gave some boys of the village  You have also provided employment there.
 Bhuvan's mother is also happy to see that, because his Bhuvan has not only started earning well today, but today his name is also in the area, and the most important thing is, now Bhuvan's father has  Quit drinking alcohol too.

 Overall, Bhuvan's dedication not only brought him and his family out of the pit of poverty, but he also proved that even without migrating, employment can be done in the village itself, and can be successful.

 composed short story

 All rights reserved

टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें

Please give your compliments in comment box

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

पीड ( दर्द ) Pain

बहुत दिनों से देखने में आ रहा था की कुँवरी का अनमने से दिख रहे थे ,खुद में खोये हुये ,खुद से बातें करते हुये ,जबकि उनका स्वभाव वैसा बिल्कुल नही था ,हँसमुख ओर मिलनसार थे वो ,पता नही अचानक उनके अंदर ऐसा बदलाव कैसे आ गया था, समझ नही आ रहा था के आखिर हुआ क्या।  कुंवरी का किस कदर जिंदादिल थे ये किसी से छुपा नही ठहरा ,उदास वो किसी को देख नही सकते थे ,कोई उदास या परेशान दिखा नही के कुंवरी का उसके पास पहुँचे नही ,जब तक जाते ,जब तक सामने वाला परेशानी से उबर नही जाता था ,अब ऐसे जिंदादिल इंसान को जब उदास परेशान होते देखा तो ,सबका परेशान होना लाजमी था ,पर कुँवरी का थे के ,किसी को कुछ बता नही रहे थे ,बस क्या नहा क्या नहा कह कर कारण से बचने की कोशिश कर रहे थे ,अब तो सुबह ही घर से बकरियों को लेकर जंगल की तरफ निकल पड़ते ओर साँझ ढलने पर ही लौटते ,ताकि कोई उनसे कुछ ना पूछ पाये ,पता नही क्या हो गया था उन्हें ,गाँव में भी उनका किसी से झगड़ा नही हुआ था ,ओर घर में कोई लड़ने वाला हुआ नही ,काखी के जाने के बाद अकेले ही रह गये थे ,एक बेटा था बस ,जो शहर में नौकरी करता था ,उसके बच्चे भी उसी के साथ रहते थ

बसंती दी

बसन्ती दी जब 15 साल की थी ,तब उनका ब्या कर दिया गया ,ससुराल गई ओर 8 साल बाद एक दिन उनके ससुर उन्हें उनके मायके में छोड़ गये ,ओर फिर कोई उन्हें लेने नही आया ,बसन्ती दी के बौज्यू कई बार उनके ससुराल गये ,पर हर बार उनके ससुराल वालों ने उन्हें वापस लेने से ये कहकर  इंकार कर दिया की ,बसन्ती बाँझ है ओर  ये हमें वारिस नही दे सकती तब से बसन्ती दी अपने पीहर ही रही।  बाँझ होने का दँश झेलते हुये बसन्ती दी की उम्र अब 55 के लगभग हो चुकी थी ,उनके बौज्यू ने समझदारी दिखाते हुये 10 नाली जमीन ओर एक कुड़ी उनके नाम कर दी थी ,ताकि बाद में उनको किसी भी प्रकार से परेशानी ना हो ,ओर वो अपने बल पर अपनी जिंदगी जी सके। बसन्ती दी ने उस जमीन के कुछ हिस्से में फलों के पेड़ लगा दिये ओर बाकि की जमीन में सब्जियाँ इत्यादि लगाना शुरू किया ,अकेली प्राणी ठहरी तो गुजारा आराम से चलने लगा ,भाई बहिनों की शादियाँ हो गई ,भाई लोग बाहर नौकरी करने लगे ,वक़्त बीतता चला गया। बसन्ती दी शुरू से ही मिलनसार रही थी ,इसके चलते गाँव के लोग उनका सम्मान करते थे ,ओर खुद बसन्ती दी भी ,लोगों की अपनी हैसियत अनुसार सहायता भी कर

देवता का न्याय

थोकदार परिवारों के ना घर में ही नही ,अपितु पूरे गाँव में दहशत छाई हुई थी ,कुछ दिनों से थोकदार खानदान के सारे घरों में ,घर के सदस्यों को पागलपन के जैसे लक्षण देखने को मिल रहे थे ,यहाँ तक की गाय भैंसों ने भी दूध देना बंद कर दिया था ,किसी को समझ नही आ रहा था की आखिर ये हो क्या रहा है। पहाड़ में अगर ऐसा होना लगे तो ,लोग देवी देवताओं का प्रकोप मानने लगते हैं ,ओर उनका अंतिम सहारा होता है लोक देवताओं का आवाहन ,इसलिये थोकदार परिवारों ने भी जागर की शरण ली। खूब जागा लगाई काफी जतन किये ,पर कौन था किसके कारण ये सब हो रहा था ,पता नही लग पा रहा था ,जिसके भी आँग ( शरीर ) में अवतरित हो रहा था ,वो सिर्फ गुस्से में उबलता दिखाई दे रहा था ,पर बोल कुछ नही रहा था ,लाख जतन कर लिये थे ,पर समस्या ज्यों की त्यों थी ,गाँव वाले समझ नही पा रहे थे की आखिर थोकदार परिवार को इस तरह परेशान कौन कर रहा है ,ओर तो ओर जगरिये उससे कुछ बुलवा नही पा रहे हैं ,अंत में गाँव में आया हुआ एक मेहमान बोला मेरे गाँव में एक नौताड़ ( नया ) अवतरित हुआ है ,उसे बुला कर देखो क्या पता वो कुछ कर सके ,थोकदार परिवार ने दूसर