बहुत दिनों से देखने में आ रहा था की कुँवरी का अनमने से दिख रहे थे ,खुद में खोये हुये ,खुद से बातें करते हुये ,जबकि उनका स्वभाव वैसा बिल्कुल नही था ,हँसमुख ओर मिलनसार थे वो ,पता नही अचानक उनके अंदर ऐसा बदलाव कैसे आ गया था, समझ नही आ रहा था के आखिर हुआ क्या।
कुंवरी का किस कदर जिंदादिल थे ये किसी से छुपा नही ठहरा ,उदास वो किसी को देख नही सकते थे ,कोई उदास या परेशान दिखा नही के कुंवरी का उसके पास पहुँचे नही ,जब तक जाते ,जब तक सामने वाला परेशानी से उबर नही जाता था ,अब ऐसे जिंदादिल इंसान को जब उदास परेशान होते देखा तो ,सबका परेशान होना लाजमी था ,पर कुँवरी का थे के ,किसी को कुछ बता नही रहे थे ,बस क्या नहा क्या नहा कह कर कारण से बचने की कोशिश कर रहे थे ,अब तो सुबह ही घर से बकरियों को लेकर जंगल की तरफ निकल पड़ते ओर साँझ ढलने पर ही लौटते ,ताकि कोई उनसे कुछ ना पूछ पाये ,पता नही क्या हो गया था उन्हें ,गाँव में भी उनका किसी से झगड़ा नही हुआ था ,ओर घर में कोई लड़ने वाला हुआ नही ,काखी के जाने के बाद अकेले ही रह गये थे ,एक बेटा था बस ,जो शहर में नौकरी करता था ,उसके बच्चे भी उसी के साथ रहते थे, अजीब पहेली बन गई थी कुँवरी का की उदासी ,किसी को समझ ही नही आ रही ठहरी।
ज्यों ज्यों दिन बीतते जा रहे थे ,कुँवरी का की उदासी ओर बढ़ती जा रही थी ,गाँव के लोग पूछते पूछते थक गये थे ,पर कुँवरी का जो कारण बता देते ,पता नही क्या ऐसी बात थी की ,जिसे वो बताना ही नही चाहते थे ,अब तो कुँवरी का चिढ़ने तक लग गये थे ,कारण पूछने वालों से ,इसके चलते वो गाँव छोड़ कर ऊपर जंगलों में छानी बना कर रहने लग गये ,उन्होंने गाँव से रिश्ता लगभग खत्म सा कर लिया ठहरा, अब वो बहुत जरूरी काम होने पर ही गाँव की तरफ आते ,ओर काम पूरा होने पर बिना किसी से बात किये लौट जाते ,उनको लेकर गाँव में तरह तरह की बातें होने लगी थी ,कोई देवी देवताओं का चक्कर बताता तो ,कोई भूत प्रेत का साया ,पर किसी को असल कारण नही पता था।
कुँवरी का को हो क्या गया था ये समझ से परे था ,इतना खुशमिजाज ओर जिंदादिल इंसान अचानक से इतना एकाकी हो उठा की उसने गाँव तक छोड़ दिया ,ये बात किसी को भी हजम नही हो पा रही थी ,गाँव वालों ने ना जाने कितने जतन कर लिये ये जानने के लिये की आखिर बात क्या है पर उन्हें पता नही लगा कारण का ,उधर कुँवरी का ने मानो ये ठान लिया था की ,उन्हें इस दुनियाँ से ही कोई वास्ता नही ,ना अब वो लोगों से बात करते ना ही उनसे मिलते ना किसी के भले में जाते ओर ना ही किसी के बुरे में ,उन्होंने एक तरह से अपने आपको लोगों से काट सा लिया था।
समझ से परे था के उन्हें हो क्या गया था ,गाँव में से तो किसी ने भी उनसे कुछ कहा नही था ,फिर कौन था जिसने कुछ ऐसा कहा के , जिसके कारण कुँवरी का की ऐसी हालत हो गई ,फिर ध्यान में आया के कुछ महीने पहले वो अपने बेटे के वहाँ गये थे ,जब उसके बच्चे का नामकरण संस्कार था ,ओर जबसे वहाँ से लौटे उसके बाद से ही उनका व्यवहार बदल गया था ,हो ना हो बेटे के घर कुछ ऐसा हुआ जिसके कारण कुँवरी का की ऐसी हालत हुई।
तय किया की कुँवरी का के पास जाकर कारण पूछा जाये ,ओर इसी के चलते हम उनकी छानी की तरफ चल दिये ,वहाँ जाकर जो देखा वो अचंभित कर देने वाला था ,कुँवरी का छानी के अंदर जोर जोर से ये कहते हुये रो रहे थे की हे भगवान की करूँ मैं तू ही बता ,जब च्याल ब्वारी कें ,मैं कें देख बेर शरम ओं तो कथकें जाँ अब मैं ,च्याल कें बाप कौण में शरम ओं ओर ब्वारी कें सौर कौण में ,जन आया करो कै दे मैं कें ,इज्जत खराब हैं जाँ बल हमरि ,नाति कें लै देखण न दी ,कौ हौल मेर जस अभागी ,कुँवरी का बस रोए जा रहे थे खुद कौ कोसते हुये ,बेटे बहू का व्यवहार उन्हें अंदर तक तोड़ गया था शायद ,इसलिये ही शायद उन्होंने अपने आपको लोगों से काट लिया था।
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