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अकेलापन

अकेलापन 
बूबू अपने मकान के अंदर बैठे टकटकी लगाये बाहर देखते अक्सर मिल जायेंगे ,बड़े सारे मकान में अब सिर्फ बूबू ही बचे हैं ,आमा कुछ सालों पहले चल बसी ,चेलियों को बिवा ( शादी ) दिया ओर इकलौता बेटा रोजगार की तलाश में ऐसा निकला की लौट कर ही नही आया।

बूबू का भरी पूरी कुड़ी ( घर )आज बिल्कुल खाली हो चुकी है ,बस बूबू ही यहाँ रहकर, कुड़ी को ये अहसास करवाते हैं की ,मैं याँ रों छू ( मैं यहाँ रहता हूँ )।

कभी गाय बकरियों से भरा रहने वाला गोठ आज खाली पड़ा ,किलों पर बँधे ज्योड ये बतलाते हैं की कभी हम भी काम के थे।

बौनाव के पत्थर भी अब दिखने से लगे हैं ,गोबर मिट्टी की लिपाई उखड़ गईं है ,ओर अब बूबू से हो  नही हो पाती ,भीतर जरूर लिपलाप कर रहने लायक बना रखा है ,शायद इतनी ही ताकत शेष रह गईं है अब बूबू के अंदर।

कुड़ी अभी तक खड़ी व ठीकठाक है ,पाख अभी चूने नही लगा था ,चुल्यान में चूल्हा जो जलने वाला हुआ ,ओर उसके ध्वा ( धुयें ) से पाख की लकड़ियों को मजबूती मिल रही है ,कोई नही रहता तो, पाख कब की लकड़ियाँ कब की सड़ गईं होती।

बूबू अभी भी  माठू माठू ( धीरे धीरे ) ही सही अपने काम कर निपटा लेते हैं ,पुराना  खाया पिया जो काम दे रहा ठहरा ,वरना कौन आज के जमाने में 85 - 90 साल में इतना काम भी कर पाता है।

बूबू अपनी तरफ से हर वो प्रयास करते दिखते हैं ,जिससे इस आँगन को सूनापन महसूस ना हो ,पर बूबू खुद उदास से नजर आते हैं ,आखिर आये भी क्यों ना ,कभी यही आँगन कितना भरापूरा था ,आज बिल्कुल खाली है ,मनखी के नाम पर ,सिवा बूबू के कोई नही,जब कुड़ी ही उदास सी नजर आती है ,तो बूबू का उदास होना तो लाजमी है।

गनीमत है की बूबू की हाथ खूटि चल रही है इस उमर में भी अब तक  ,नही तो कितनी कुकुर गत हो जाती ,या चेलियाँ ले जाती अपने दगड ,पर इससे बूबू का वो घर छूट जाता ,जिसे कभी बूबू ने बड़े प्रेम से बनवाया था।

अब तो बूबू के गाँव में पानी के नल भी आ गये ,बिजली के बल्ब भी जलते नजर आ जाते हैं ,सड़क भी आ गईं ,पर नही आई ठहरी तो वो खुशी ,जो सालों पहले इस घर से चली गईं थी।

बूबू जैसे तैसे अब अपने दिन काट रहे थे ,पूरा दिन घर में ही बैठे दिखते थे ,ओर जायें भी तो जायें किसके पास ,साथ के कुछ लोग तो स्वर्ग सिधार गये ओर कुछ को उनके घर वाले अपने साथ शहरों को ले गये ,शायद बूबू भी शहर चले जाते ,अगर उनका बेटा लौट कर आता तो। 
वो तो थोडा गाँव का माहौल ठहरा इसलिये आसपास के लोग जरा ख्याल रख लेते थे बूबू का ,कोई पानी भर लाता था तो कोई कभी कभी धिनाली पानी दे जाता था ,पर इन सबसे होता क्या है ,ये अकेलापन जो ठहरा ना ,ये आदमी को अंदर ही अंदर खाने लगता है ,ओर बूबू को देखकर साफ लग रहा था की अकेलापन उन्हें खा रहा है।

स्वरचित लघु कथा 
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