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सुन्नपट - Silence

सुन्नपट - Silence

धनुली आमा अपने घर के कोने में बिल्कुल अकेली बैठी दिखी तो, मैं उनके हालचाल जानने उनके पास चल दिया, काफी सालों बाद मिलना हुआ, अब काफी बूढ़ी हो चली थी।
आमा से आसल कुशल पूछी तो आमा बोली पोथिया अब की आसल कुशल हूँ हम बूड़ा की, बस दिन काटीनी जस्ये तैस्ये।

आमा का काफी बड़ा मकान था, या ये कहो की गाँव का सबसे बड़ा मकान धनुली आमा लोगों का था, बड़ा सा मकान, भरा पूरा परिवार था, बरसों बाद आज देखा तो उजाड़ सा हो चुका था, अब इस घर में आदमी के नाम पर ,कोई था तो वो थी बस आमा।

आमा के परिवार के सदस्य एक एक करके पलायन कर चुके थे, बड़ा बेटा जयपुर तो छोटा बेटा दिल्ली में अपने परिवार सहित बस चुके थे, नही गई तो बस आमा,क्यों नही गई पूछने पर आमा ने जवाब दिया की, सारि उमर याँ काट राखी, मरण बखत जाबेर की करूँ, ओर उस्ये ले मेर मन न लागुन वाँ, क्याप जस लागु पोथिया, मेर लीजी तो याँई भल भै।

आमा का ये जवाब उत्तराखण्ड के अधिकाँश बुजुर्गो का होता है, उनका अपनी जन्मभूमि, अपनी विरासत, अपनी संस्कृति व अपने लोगों से लगाव ,उन्हें अपनी जमीन से दूर नही होने देते।

आमा लाख परेशानी के बावजूद भी यहाँ से नही जाना चाहती थी, उनके लिये अपने गाँव, अपना घर ओर अपने लोगों से बढ़कर कुछ नही था, शायद यही सब उन्हें यहाँ रहने को प्रेरित करता था।

आमा अकेले में आपका मन कैसे लग जाता है, ये पूछने पर आमा बोली, पोथिया ऐक्ली काँ छू, मेर जस कतुक बुड़ बाडी छ्न याँ,उनर दगड दिन कस्ये काटि जाँ पत्त न लागण।
आमा बोलते बोलते अचानक चुप हो गईं,कुछ देर बाद अचानक बोली, पोथिया जब मैं ब्याह कर बेर पैल बार याँ आई ,तब यो घर यौस नहा छी, मेरि जिठानि छी, उनर नानतिन ले याँई रों छी, सास सोर ले छी, अगल बगलक कुडियों में ले लोग रों छी,सबोलि गाड भिड कमा राख छी, खूब खेति हूँ छी, खूब धिनाई पाणी देखि भै मैंण, पर अब देखो कस उजाड है गो, लोगों क कुड़ी उधर गी, गाड भिड बंजर है गी, कस दिन आ गई, हमुली तो कैभे यैस सोचो ले न की, यैस ले दिन देखण पडल।
आमा बोली पोथिया मैनी उ दिन लै देखि जब सब लोग गों में ही रों छी, सब मिलजुल बेर काम करछयाँ, मैं मेरि जिठानी दगड खेतों में काम करणे जाँ छयाँ, अब देखो सुन्नपट्ट है गे, मनखी देखण आँख तरस गी, हमर बाद की हॉल होल, शाद गों उजड़ जाल भैली कें, बोलते बोलते आमा की आवाज भर्रा गई ओर आँखें डबडबा गई।
आमा ने जो भी कहा एक दम सही कहा, आज पहाड़ से इतना पलायन हो रहा है की, गाँव के गाँव खाली होते जा रहे हैं, वो दिन दूर नही जब आमा के कहे अनुसार मनखी ( लोग ) तक नही दिखेंगे ओर गाँवो में सुन्नपट ( सन्नाटा ) छा जायेगा।

स्वरचित लघु कथा 

सर्वाधिकार सुरक्षित

हिंदी अनुवाद 

सुनापन- Silence
धनुली आमा अपने घर के कोने में बिल्कुल अकेली बैठी दिखी तो, मैं उनके हालचाल जानने उनके पास चल दिया, काफी सालों बाद मिलना हुआ, अब काफी बूढ़ी हो चली थी।

आमा से हालचाल पूछे तो ,आमा बोली बेटा अब क्या हाल होते हैं हम बूढ़ों के, बस जिंदगी के बचे दिन कट रहे हैं।

आमा का काफी बड़ा मकान था, या ये कहो की गाँव का सबसे बड़ा मकान धनुली आमा का था, बड़ा सा मकान, भरा पूरा परिवार था, बरसों बाद आज देखा तो उजाड़ सा हो चुका था, अब इस घर में आदमी के नाम पर ,कोई था तो वो थी बस आमा।

आमा के परिवार के सदस्य एक एक करके पलायन कर चुके थे, बड़ा बेटा जयपुर तो छोटा बेटा दिल्ली में अपने परिवार सहित बस चुके थे, नही गई तो बस आमा,क्यों नही गई पूछने पर आमा ने जवाब दिया की, सारी  उम्र यहाँ बीता दी, अब अंतिम दिनों में वहाँ जाकर क्या करना, वैसे भी वहाँ मेरा मन वहाँ नही लगता,वहाँ अजीब सा लगता है, मेरे लिये यही अच्छा है।

आमा का ये जवाब उत्तराखण्ड के अधिकाँश बुजुर्गो का होता है, उनका अपनी जन्मभूमि, अपनी विरासत, अपनी संस्कृति व अपने लोगों से लगाव ,उन्हें अपनी जमीन से दूर नही होने देते।

आमा लाख परेशानी के बावजूद भी यहाँ से नही जाना चाहती थी, उनके लिये अपने गाँव, अपना घर ओर अपने लोगों से बढ़कर कुछ नही था, शायद यही सब उन्हें यहाँ रहने को प्रेरित करता था।

आमा अकेले में आपका मन कैसे लग जाता है, ये पूछने पर आमा बोली, बेटा अकेली कहाँ हूँ,मेरे जैसे कितने बूढ़े लोग हैं यहाँ,उनके साथ दिन कैसे बीत जाता है पता ही नही लगता।

आमा बोलते बोलते अचानक चुप हो गईं,कुछ देर बाद अचानक बोली, बेटा जब मैं शादी कर के पहली बार यहाँ आई ,तब ये घर ऐसा नहा था, पूरा परिवार यही रहता था,अगल बगल के मकानों में भी लोग रहा करते थे,सब लोग खेती करते थे खूब खेती होती थी, खूब धी दूध देखा है मैनें, पर अब देखो कैसा उजाड हो गया है, लोगों के मकान टूट गये हैं, खेत बंजर हो गये हैं, कैसे दिन आ गये, हमने ऐसा कभी सोचा ही नही था की, ऐसे दिन भी देखने पड़ेंगे।

आमा बोली बेटा मैनें वो दिन भी देखे ,जब सब लोग गाँव में ही रहते थे , सब मिलजुल के काम करते थे, हम खेतों में काम करने जाते थे,अब देखो सुनापन हो गया, वो चहलपहल देखने को आँख तरस गई है , हमारे बाद क्या होगा, शायद गाँव ही उजड़ जायेगा, ये बोलते बोलते आमा की आवाज भर्रा गई ओर आँखें डबडबा गई।

आमा ने जो भी कहा एक दम सही कहा, आज पहाड़ से इतना पलायन हो रहा है की, गाँव के गाँव खाली होते जा रहे हैं, वो दिन दूर नही जब आमा के कहे अनुसार लोग तक नही दिखेंगे ओर गाँवो में सन्नाटा छा जायेगा।

स्वरचित लघु कथा 

सर्वाधिकार सुरक्षित

English Version

Silence
 Dhanuli Ama was seen sitting all alone in the corner of her house, so I went to her to know her well being, met after many years, now she was very old.

 If you ask Ama about her well being, Ama said son, what is the condition of us old people, just the remaining days of life are spent.

 Ama had a very big house, or say that the biggest house in the village belonged to Dhanuli Ama, a big house, a full family, after years, today I saw it had become desolate, now in the name of a man in this house,  If there was anyone, it was just Ama.

 The members of Ama's family had migrated one by one, the elder son had settled in Jaipur and the younger son along with his family had settled in Delhi, if not, then Ama, when asked why did not go, Ama replied that the whole life has been spent here.  Now, what to do after going there in the last days, anyway I don't feel like there, I feel strange there, this is good for me.

 Most of the elders of Uttarakhand have this answer, their love for their native land, their heritage, their culture and their people, does not allow them to be away from their land.

 Ama did not want to go from here in spite of lakhs of troubles, there was nothing for her more than her village, her home and her people, perhaps all this inspired her to stay here.

 Ama asked how you feel alone, Ama said, son where am I alone, how many old people like me are here, how the day passes with them, I do not know.
 Ama suddenly became silent while speaking, after a while suddenly she said, son, when I came here for the first time after getting married, then this house was like this, the whole family used to live here, people used to live in the adjacent houses too.  People used to do farming, there was a lot of farming, I have seen milk very slowly, but now look how desolate it has become, people's houses have been broken, fields have become barren, how the days have come, we never thought like this  That, such days will also have to be seen.

 Ama said son, I have also seen those days, when everyone used to live in the village, all used to work together, we used to go to work in the fields, now look, there has been a silence, that eye has longed to see the hustle and bustle, after us  What will happen, maybe the village itself will be destroyed, while speaking this, Ama's voice was filled with tears and eyes twitched.
 Whatever Ama said is absolutely right, today there is so much migration from the mountain that the villages of the village are getting empty, the day is not far when people will not even be seen as told by Ama and there will be silence in the villages.
 composed short story

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