सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

परुली आमा

परुली आमा के गाँव के ग्राम प्रधान द्वारा, गाँव में कोई विकास नही करवाने से, गाँव काफी पिछड़ गया था, ओर लोग गाँव छोड़ छोड़ कर जा रहे थे,ये देखकर परुली आमा दुखी भी थी ओर गुस्से में भी थी।

गाँवों के विकास के लिये सरकार द्वारा गाँवों को काफी पैसा मिलता है ,पर ग्राम प्रधान पता नही क्या करते हैं उन पैसों का ,के गाँव जस के तस दिखते हैं, ओर विकास कार्यो के लिये आई धनराशि खत्म हो जाती है,अगर गाँव में किसी का विकास होता दिखता है तो ,वो है ग्राम प्रधान ,उसके अलावा तो सब जैसे थे, वैसे ही नजर आते हैं।

परुली आमा भी ये सब बरसों से देखती आ रही थी, उन्हें गाँव में विकास नाम की चीज भी दिखाई नही देती थी, ऊपर से जैसे ही चुनाव आया तो ,वर्तमान प्रधान ने अपनी पत्नी को चुनाव में खडा करने की घोषणा कर डाली।

बस फिर क्या था ये सुनते ही परुली आमा का गुस्सा फूट पड़ा,ओर वो ग्राम प्रधान के घर जाकर बोली, जब तू प्रधान छे, तब तो त्वैल क्या न कर, ओर चुनाव आते ही, अब तू अपण स्याणी कें ठाड़ करण छ, थोड़ा शरम छ की नहा,या बस पैंस कमौण छ,आमा गुस्से में प्रधान को बोली, देख रे किशन भौत है गो, यौ बार कोई ओर बनौल प्रधान, ये लीजी कौणी अपण स्याण कें ठाड़ जण करिए ओर अगर करले तो हम ले कईं कें ठाड़ करुन।

आमा की इस बात को सुनकर दोनों में बहस हो गई ओर ग्राम प्रधान तैंस में आकर बोला,आमा अब तो चुनाव मेरि स्याणी लड़ेलि , तू जैं कें ठाड़ करण चाँ छे ,ठाड़ कर ले देखि जाल।

परुली आमा को भी प्रधान की बात सुनकर बड़ा गुस्सा आया ओर वो बोली, ठीक छ पें, तू अपण मनेक कर ओर मैं अपण मनेक करून।

आमा प्रधान को बोल तो आई, पर उसके सामने ये समस्या आ गई के, अब वो क्या करे ओर कैसे करे, आखिरकार आमा ने निश्चय किया की, वो गाँव की महिलाओं से बात करेगी ओर किसी ओर को प्रधान का चुनाव लडवायेगी, आमा ने लोगों से इस बारे में चर्चा करना शुरू कर दिया।
आमा खेतों की ओर जाती तो, वहाँ लोगों को समझाने लगती की इस बार नया प्रधान खडा करेंगे ताकि वो काम करे ओर गाँव का विकास हो।

इस दौरान आमा ने काफी लोगों से बात की, वो जहाँ जाती वहीं लोगों को समझाने बैठ जाती, जंगल से लकड़ियों को बटोरने के दौरान गाँव की काफी बुजुर्ग महिलाएं मिली तो उनसे ही चुनाव को लेकर बात करने लगी।
आमा को जो जहाँ मिलता उससे वहीं बात करनी शुरू कर दी, अब तो गाँव की महिलाएं भी हर जगह इसी बात की चर्चा करने लग गई थी।
आमा ने अब पूरी तरह वर्तमान प्रधान के खिलाफ अपना अभियान शुरू कर दिया था, गाँव के लोग भी दुखी थे ओर गाँव की महिलाओं ने तो, आमा के अभियान में अपनी भागीदारी निभाना शुरू भी कर दिया था।
इस तरह आमा के द्वारा चलाये गये अभियान से पूरे गाँव में वर्तमान प्रधान के खिलाफ माहौल बन गया था, गाँव व विशेषकर गाँव की महिलाएं इस बात पर सहमत थी की, इस बार कोई नया प्रधान बनाया जाये , इसके चलते एक दिन गाँव की महिलाओं ने मीटिंग बुलाई ,ओर उसमें तय हुआ की, गाँव के विकास के लिये ओर इस अभियान की सफलता के लिये किसी को प्रधान का चुनाव लडवाया जाये, अंत में सबने ये निर्णय लिया की, इस अभियान को परुली आमा ने शुरू किया था, इसलिए उन्हें ही उम्मीदवार बनाया जाये, ओर इस तरह आमा सबकी सहमति से ग्राम प्रधान पद की उम्मीदवार घोषित हो गई।
आखिरकार चुनाव का दिन भी आ गया, लोगों ने मतदान में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया ,खासकर महिलाओं ने, जब गिनती हुईं तो परुली आमा की बंपर वोटों से जीत हुईं, ओर वो प्रधान बन गई।
स्वरचित लघु कथा 

सर्वाधिकार सुरक्षित

हिंदी रूपांतरण

परुली आमा
परुली आमा के गाँव के ग्राम प्रधान द्वारा, गाँव में कोई विकास नही करवाने से, गाँव काफी पिछड़ गया था, ओर लोग गाँव छोड़ छोड़ कर जा रहे थे,ये देखकर परुली आमा दुखी भी थी ओर गुस्से में भी थी।

गाँवों के विकास के लिये सरकार द्वारा गाँवों को काफी पैसा मिलता है ,पर ग्राम प्रधान पता नही क्या करते हैं उन पैसों का ,के गाँव जस के तस दिखते हैं, ओर विकास कार्यो के लिये आई धनराशि खत्म हो जाती है,अगर गाँव में किसी का विकास होता दिखता है तो ,वो है ग्राम प्रधान ,उसके अलावा तो सब जैसे थे, वैसे ही नजर आते हैं।

परुली आमा भी ये सब बरसों से देखती आ रही थी, उन्हें गाँव में विकास नाम की चीज भी दिखाई नही देती थी, ऊपर से जैसे ही चुनाव आया तो ,वर्तमान प्रधान ने अपनी पत्नी को चुनाव में खडा करने की घोषणा कर डाली।

बस फिर क्या था ये सुनते ही परुली आमा का गुस्सा फूट पड़ा,ओर वो ग्राम प्रधान के घर जाकर बोली, जब तू प्रधान था, तब तो तूने कुछ नही किया क्या, ओर चुनाव आते ही, अब तू अपनी पत्नी को खडा कर रहा है, थोड़ा शर्म है की नही,या बस पैंसे कमाने हैं,आमा गुस्से में प्रधान को बोली, देख रे किशन बहुत हो गया, इस बार कोई ओर बनेगा प्रधान, इसलिए कह रही हूँ, अपनी पत्नी को खडा मत करना, ओर अगर करेगा तो हम भी किसी को खडा करेंगे।

आमा की इस बात को सुनकर दोनों में बहस हो गई ओर ग्राम प्रधान तैंस में आकर बोला,आमा अब तो चुनाव मेरी पत्नी ही लड़ेगी, तू जिसे खडा करना चाहती है, खडा कर के देख ले।

परुली आमा को भी प्रधान की बात सुनकर बड़ा गुस्सा आया ओर वो बोली ,ठीक है, तू अपनी मन की कर ओर मैं अपने  मन की करती हूँ।

आमा प्रधान को बोल तो आई, पर उसके सामने ये समस्या आ गई के, अब वो क्या करे ओर कैसे करे, आखिरकार आमा ने निश्चय किया की, वो गाँव की महिलाओं से बात करेगी ओर किसी ओर को प्रधान का चुनाव लडवायेगी, आमा ने लोगों से इस बारे में चर्चा करना शुरू कर दिया।

आमा खेतों की ओर जाती तो, वहाँ लोगों को समझाने लगती की इस बार नया प्रधान खडा करेंगे ताकि वो काम करे ओर गाँव का विकास हो।

इस दौरान आमा ने काफी लोगों से बात की, वो जहाँ जाती वहीं लोगों को समझाने बैठ जाती, जंगल से लकड़ियों को बटोरने के दौरान गाँव की काफी बुजुर्ग महिलाएं मिली तो उनसे ही चुनाव को लेकर बात करने लगी।

आमा को जो जहाँ मिलता उससे वहीं बात करनी शुरू कर दी, अब तो गाँव की महिलाएं भी हर जगह इसी बात की चर्चा करने लग गई थी।

आमा ने अब पूरी तरह वर्तमान प्रधान के खिलाफ अपना अभियान शुरू कर दिया था, गाँव के लोग भी दुखी थे ओर गाँव की महिलाओं ने तो, आमा के अभियान में अपनी भागीदारी निभाना शुरू भी कर दिया था।

इस तरह आमा के द्वारा चलाये गये अभियान से पूरे गाँव में वर्तमान प्रधान के खिलाफ माहौल बन गया था, गाँव व विशेषकर गाँव की महिलाएं इस बात पर सहमत थी की, इस बार कोई नया प्रधान बनाया जाये , इसके चलते एक दिन गाँव की महिलाओं ने मीटिंग बुलाई ,ओर उसमें तय हुआ की, गाँव के विकास के लिये ओर इस अभियान की सफलता के लिये किसी को प्रधान का चुनाव लडवाया जाये, अंत में सबने ये निर्णय लिया की, इस अभियान को परुली आमा ने शुरू किया था, इसलिए उन्हें ही उम्मीदवार बनाया जाये, ओर इस तरह आमा सबकी सहमति से ग्राम प्रधान पद की उम्मीदवार घोषित हो गई।

आखिरकार चुनाव का दिन भी आ गया, लोगों ने मतदान में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया ,खासकर महिलाओं ने, जब गिनती हुईं तो परुली आमा की बंपर वोटों से जीत हुईं, ओर वो प्रधान बन गई।

स्वरचित लघु कथा 

सर्वाधिकार सुरक्षित

English conversion

 paruli ama
 Paruli Ama was very sad and angry after seeing that the village headman of Paruli Ama's village had not done any development in the village, and people were leaving the village and leaving the village.

 For the development of the villages, the villages get a lot of money from the government, but the village head does not know what to do with that money, the villages look as they are, and the money for development works gets exhausted, if someone in the village  If development is seen, then he is the village head, apart from him, all are seen as they were.

 Paruli Ama had also been watching all this for years, she did not even see a thing called development in the village, as soon as the election came from above, the current head announced that his wife would be fielded in the election.

 Paruli Ama's anger erupted just after hearing this, and she went to the village head's house and said, when you were the head, then did you do nothing, and as soon as the election came, now you are raising your wife.  , you have a little shame or not, or just want to earn money, Ama said in anger to the chief, see, Kishan is enough, this time someone else will become the head, that's why I am saying, don't make your wife stand, and if you do, then  We will also raise someone.

 Hearing this, both of them got into an argument and the village head came in a tizzy and said, Ama, now my wife will contest the election, stand and see whomever you want to stand.

 Paruli Ama also got very angry after listening to the head and she said, okay, you do your mind and I do my mind.

 Ama came to speak to the head, but this problem came in front of him, now what should he do and how to do it, finally Ama decided that, she will talk to the women of the village and will get someone else to contest the election of the head, Ama asked the people  started discussing about it.

 If Ama would go towards the fields, she would start convincing the people that this time a new head would be raised so that he would work and develop the village.

 During this, Ama talked to many people, wherever she went, she would sit to explain to the people, when she met many elderly women of the village while collecting wood from the forest, she started talking to them about the election.

 Wherever Ama got, she started talking to her there, now even the women of the village started talking about the same thing everywhere.

 Ama had now completely started her campaign against the present Pradhan, the people of the village were also unhappy and the women of the village had even started playing their part in Ama's campaign.

 In this way, due to the campaign launched by Aama, an atmosphere was created in the whole village against the current head, the women of the village and especially the village women agreed that this time a new head should be made, due to this one day the women of the village  A meeting was called, and it was decided in that, for the development of the village and for the success of this campaign, someone should be made to contest the election of the head, in the end everyone decided that this campaign was started by Paruli Ama, so he only  The candidate should be made, and in this way Aama was declared the candidate for the post of village head with the consent of all.

 Finally the day of election also arrived, people took part in the voting enthusiastically, especially women, when the counting was done, Paruli Ama won with bumper votes, and she became the head.

 composed short story

 All rights reserved

टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें

Please give your compliments in comment box

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

पहाडी चिडिया - Mountain Bird

रेबा ,गाँव में उसे सब इसी नाम से पुकारते थे, वैसे उसका नाम ठहरा रेवती। किशन दा की चैली रेबा को पहाड़ से बड़ा लगाव था,जब उसके साथ की लड़कियाँ हल्द्वानी शहर की खूबियों का बखान करती तो, रेबा बोल उठती, छी कतुक भीड़ भाड़ छ वाँ, नान नान मकान छ्न, गरम देखो ओरी बात, मैं कें तो बिल्कुल भल न लागण वाँ,मैं कें तो पहाड भल लागु, ठंडी हौ, ठंडो पाणी, न गाडियों क ध्वा, ना शोर शराब ,पत्त न की भल लागु तुमुके हल्द्वानी, मैं कें तो प्लेन्स बिल्कुल भल न लागण। रेबा पहाड़ की वो चिडिया थी, जिसकी जान पहाड़ में बसती थी, उसके लिये पहाड़ से अच्छी जगह कोई नही थी, रेबा सुबह जल्दी उठ कर ,सबके लिये चाय बनाती फिर स्कूल जाती, वहाँ से आकर घर का छोटा मोटा काम निपटाती, ओर फिर पढ़ने बैठ जाती,ये रेबा की दिनचर्या का हिस्सा था। रेबा अब इन्टर कर चुकी थी, किसन दा अब उसके लिये लड़का ढूँढने लग गये थे, ताकि समय पर उसके हाथ पीले हो सके।पर रेबा चाहती थी की उसकी शादी पहाड़ में ही कहीं हो, उसने अपनी ईजा को भी बोल दिया था की ,तू बाबू थें कै दिये मेर ब्या पहाड़ में ही करिया, भ्यार जण दिया। इधर किसन दा रेबा के लिये...

पीड ( दर्द ) Pain

बहुत दिनों से देखने में आ रहा था की कुँवरी का अनमने से दिख रहे थे ,खुद में खोये हुये ,खुद से बातें करते हुये ,जबकि उनका स्वभाव वैसा बिल्कुल नही था ,हँसमुख ओर मिलनसार थे वो ,पता नही अचानक उनके अंदर ऐसा बदलाव कैसे आ गया था, समझ नही आ रहा था के आखिर हुआ क्या।  कुंवरी का किस कदर जिंदादिल थे ये किसी से छुपा नही ठहरा ,उदास वो किसी को देख नही सकते थे ,कोई उदास या परेशान दिखा नही के कुंवरी का उसके पास पहुँचे नही ,जब तक जाते ,जब तक सामने वाला परेशानी से उबर नही जाता था ,अब ऐसे जिंदादिल इंसान को जब उदास परेशान होते देखा तो ,सबका परेशान होना लाजमी था ,पर कुँवरी का थे के ,किसी को कुछ बता नही रहे थे ,बस क्या नहा क्या नहा कह कर कारण से बचने की कोशिश कर रहे थे ,अब तो सुबह ही घर से बकरियों को लेकर जंगल की तरफ निकल पड़ते ओर साँझ ढलने पर ही लौटते ,ताकि कोई उनसे कुछ ना पूछ पाये ,पता नही क्या हो गया था उन्हें ,गाँव में भी उनका किसी से झगड़ा नही हुआ था ,ओर घर में कोई लड़ने वाला हुआ नही ,काखी के जाने के बाद अकेले ही रह गये थे ,एक बेटा था बस ,जो शहर में नौकरी करता था ,उसके बच्चे भी उसी के साथ रह...

थान

थान - मंदिर प्रवीण के पिता को अपना गाँव ढूँढने में बडी मशक्कत लगी, क्योकिं वो खुद बचपन में एक बार अपने पिता के साथ ही आ पाये थे, उसके बाद उनका भी आ पाना संभव नही हुआ। प्रवीण के बूबू ( दादा ) को किसी जमाने में कोई अंग्रेज अपने साथ साउथ अफ्रीका ले गया था, शायद वो अंग्रेज तब इन पहाड़ों में अधिकारी रहा होगा, फिर वहाँ से साउथ अफ्रीका चल दिया होगा, तब से प्रवीण का पूरा परिवार वहीं रहा। वही पर रच बस गया था प्रवीण का परिवार, प्रवीण के पिता का जन्म भी वहीं हुआ था ओर प्रवीण तीसरी पीढ़ी का सदस्य था, जो की वहीं जन्मा,दादा शायद नौकरी करते थे, ओर पिता ने पढ़ लिख कर खुद का काम शुरू किया, कुल मिलाकर अच्छा खासा संपन्न परिवार था उन लोगों का। पर कहते हैं ना की जन्मभूमि बुलाती जरूर है, खासकर पहाड़ की तो, ऐसा ही कुछ प्रवीण के परिवार के साथ भी हुआ, ओर उन्हें भी बरसों बाद पहाड़ आना पड़ा। हुआ ये की प्रवीण के परिवार में अचानक विपत्ति आ गई, उसके पिताजी की तबीयत ना जाने क्या खराब हुईं की, लाख ईलाज करवा लिया पर बीमारी समझ नही आई डाक्टरों को, सब हताश हो गये, प्रवीण के पिता की दशा निरंतर बिगड़ती चली जा रही थी।...