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लछमी ठुल बौज्यू

गाँव में रहने वाले लछमी ठुल बौज्यू उर्फ लक्ष्मण सिंह ने अपनी गुजर बसर के लिये खेती की जगह, फलों के पेड पौधे लगायें, ओर उनमें उगने वाले फलों को बेच कर घर का खर्चा चलाते थे।

लछमी ठुल बौज्यू ने इस काम के लिये अपने गाँव के घर को छोड़ कर, गाड ( नदी ) किनारे वाली जमीन को बागान बना दिया  ओर वहीं काफी सारे फलों के पेड लगायें, ओर वो वहीं छोटा सा मकान बनाकर रहने लग गये थे, गाँव में तो वो सिर्फ फल बेचने के लिये आते, रोजाना ताजे फलों को रिंगाल से बने एक डाल्ल ( टोकरी ) में भर कर, गाँव गाँव जाते ओर शाम पड़े फिर गाड किनारे वाली कुड़ी पर लौट जाते।
लछमी ठुल बौज्यू कभी आम, कभी अमरूद तो कभी पपीते,तो कभी अलग अलग प्रकार के फल  डाल्ल ( टोकरी ) में लाते,उनके प्राकृतिक रूप से पके फल बेहद स्वादिष्ट होते थे।
उनका दिन का भोजन हमारे घर पर हुआ करता, हमारे घर आने पर वो हमारी आमा ( दादी ) को  
ठुलईज बोलते हुये कहते 

काँ छ ठुलईज मैं आ गई, ( कहाँ है बड़ी माँ, मैं आ गया ) क्याई बच्चो तो खव्वा दे भूख लाग रे (कुछ बचा है तो खिला दे भूख लग रही है)।

ये बोल कर लछमी ठुल बौज्यू अपने डाल्ल ( टोकरी ) को साइड में रखते ओर उसमें जितने भी फल बचे होते ,उन्हें आमा को देते हुये कहते ,ले खा लिये सेहत भल रोल तेरी ( ले खा लेना इन्हे, सेहत अच्छी रहेगी तेरी ) एक तरह से लछमी ठुल बौज्यू अपने रोज के खाने का मोल चुका जाते।
जब भी हम गाँव जाते हमने उन्हें दिन का भोजन ,हमारे घर में ही करते देखा था, कोई दिन ऐसा ना जाता, जब लछमी ठुल बौज्यू घर ना आते, ओर कोई ऐसा दिन नही होता जब हम उनके दिये गये फल ना खाते,खाना खाने के बाद लछमी ठुल बौज्यू एक बीड़ी सुलगाते ओर उसे पीने के बाद , चटाई में लेट कर कम से कम एक दो घन्टा सोते।
शाम के चार बजे हमारी आमा चाय बनाकर लाती ,ओर फिर उन्हें उठाते हुये बोलती, उठ रे लछमी चाहा पी ले, ( उठ लछमी चाय पी ले ) फिर घर ले जाले ( फिर घर को भी तो जायेगा )।

लछमी ठुल बौज्यू उठ कर एक स्टील का गिलास चाय हड़काते ( पीते ) ,फिर एक बीड़ी ओर जलाकर पीते हुये गाड ( नदी ) वाली कुड़ी ( मकान ) की तरफ रवाना हो लेते, उन्हें वहाँ तक पहुँचने में एक घन्टा तो लगाता होगा कम से कम।

लछमी ठुल बौज्यू का ये रोजाना का नियम था, बरसों से वो यूँ ही रोजाना आते ओर शाम पड़े लौट जाते, एक बार की बात है की लछमी ठुल बौज्यू आमा को बोले ठुल ईजा मेर च्यौल कें गों ( गाँव ) आ बेर ( ठुल ईजा मेरे लड़के को गाँव आ कर ) शहरेक हो लाग गे, ( शहर की हवा लग गई ) कौनो की मैं नौकरी करने दगडियों दगड शहर जोन, ( कह रहा है की अपने साथियों के साथ शहर जाऊँगा ), कतु समझोनी न मानने ( कितना समझा रहा हूँ मान नही रहा)।

एक दिन लछमी ठुल बौज्यू आये ओर आमा को बोले ठुलईज, एक्क च्यौल छ लौंड मोड़ों दगड कस्ये भेज दयों, जयपुर वाव भाई आ रो उ थें को ली जा दे ख़डियोंनहान कें अपण दगड़, कम से कम पत्त तो रोल की ठीक ठाक छ, नौकरी करोल तो ठीक, न करोल तो कम से कम भेज तो दयोल वापिस उके गों वापस।

आमा ने कहा बात कर छू, कोई नौकरी होली तो ली जाल अपण दिगड, जब न मानने तो एक बारी जाण दे, उके ले पत्त लाग जाल की भ्यार जाण कस हूँ।

रात में आमा ने पापा से बात की के लछमी परेशान हो रहा है, उसका लड़का गाँव में नही रहना चाहता, कहता है की बाहर जाकर काम करूँगा, इसलिए कोई नौकरी का जुगाड़ हो सके तो साथ ले जाना लछमी के लड़के को।

पापा ने आमा को कहा तू बोलती है तो ले जाऊँगा, पर शहर में नौकरी करना असान नही ,सौ लड़के आते हैं ओर दो चार टिकते हैं, इन्ही दो चार को देख कर, गाँव के लड़के सोचते हैं की क्या ठाठ बाट हैं इनके, हम भी जायेंगे तो हमारे भी ठाठ हो जायेंगे।

कुछ दिन रुकने के बाद हम लोग शहर को वापस लौटे तो, लछमी ठुल बौज्यू के लड़के को भी साथ ले आये, एक आद हफ्ते बाद पापा ने उसको एक पनीर कम्पनी में नौकरी लगवा दिया, काम कुछ आता नही था तो, वहाँ हैल्पर का काम करने लगा, वहीं रहना ओर खाना पीना था, इससे बढ़िया क्या शुरुआत हो सकती थी किसी नये व्यक्ति की शहर में, क्योकिं इन दोनों चीजों की ही तो दिक्कत होती है शहर में।

कुछ दिन बाद पापा जब लछमी ठुल बौज्यू के लड़के का हाल चाल जानने उसकी कम्पनी पहुँचे तो, लछमी ठुल बौज्यू का लड़का रोने लगा, बोला चचा मेरे से नही हो पा रहा यहाँ काम, दिन रात काम करने से हालत खराब हो गई है, इससे तो अच्छा गाँव में बौज्यू का काम है, मेरी मति मारी गई थी जो मैनें बौज्यू का कहना नही माना, आप मुझे गाँव भिजवा दो बस, वहीं बौज्यू के काम में हाथ बटाऊँगा, इससे ज्यादा तो वहीं कमा लूँगा।

ये सुनकर पापा ने गाँव जा रहे एक व्यक्ति के साथ उसे गाँव भिजवा दिया, आज लछमी ठुल बौज्यू का वही लड़का, अपने बागान को सम्भालता है, ओर लछमी ठुल बोज्यू की तरह डाल में फल लेकर गाँव गाँव में बेचता है।

स्वरचित लघु कथा 

सर्वाधिकार सुरक्षित

English Version

Lachmi tauji
 Lachmi Tauji alias Laxman Singh, who lived in the village, planted fruit trees, planted fruit trees, and used to run the household expenses by selling the fruits growing in them.

 Lachmi Tauji left his village house for this work, made the land on the banks of the river a garden and planted a lot of fruit trees there, and he started living there by building a small house, in the village he used only fruits.  Coming to sell, filling fresh fruits daily in a basket made of ringal, going from village to village in the evening and then returning to the house on the river bank.
 Lachmi Tauji sometimes brought mangoes, sometimes guava and sometimes papayas, sometimes different types of fruits were brought in the basket, their naturally ripe fruits were very tasty.
 His day's food used to be at our house, when he came to our house, he would give it to our grandmother.
 Speaking while saying

 Where is Taiji, I have come, if there is anything left then feed me, I am feeling hungry.

 Saying this, Lachmi Tauji would keep his basket on the side and give whatever fruits were left in it to the grandmother, saying, eat them, your health will be good, in a way, Lachmi Tauji would have paid for his daily food.
 Whenever we went to the village, we saw him eating the food of the day in our house itself, not a day goes by when Laxmi Tauji does not come home, and there is no day when we do not eat the fruits given by him.

 After eating food, Laxmi Tauji would light a beedi and after drinking it, lie down on the mat and sleep for at least a couple of hours.

 At four o'clock in the evening, our grandmother used to make tea, and then while picking them up, she used to say, get up, drink Lachmi tea, then she will go home.

 Laxmi Tauji would wake up and drink a glass of steel filled with tea, then after burning a beedi and drinking Gad would leave for the river house, it would have taken them at least an hour to reach there.

 This was the daily rule of Laxmi Tauji, for years, he used to come daily and return in the evening, it is a matter of once that Laxmi Tauji said to the grandmother, my son came to the village, the wind felt to go to the city, saying  Is that I will go to the city with my friends, I can't believe how much I am explaining.

 One day Lachmi Tauji came and told Ama Tai, there is only one boy, how can I send the boys to the city, the brother from Jaipur has come, tell him to take him with you, at least he will keep on checking that it is okay.  It is okay, if you do a job, it will be fine, if you do not, then at least send it back to the village.

 Grandmother said, I talk, if there is a job, I will take it with you, when you are not agreeing, then let it go for one turn, he will also know what it is like to go out and do a job.

 In the night, Dadi talks to Papa that Lachmi is getting upset, her son does not want to live in the village, says that he will go out and work, so if there is a job, then take Lachmi's boy with you.

 Papa said to grandmother, if you speak, I will take it, but it is not easy to get a job in the city, a hundred boys come and two or four stay, seeing these two four, the boys of the village think that what is the beauty of them, we  Even if you go, we too will become chic.

 After staying for a few days, when we returned to the city, Lachmi also brought Tauji's boy along, after a week or so, Papa got him a job in a cheese company, if there was no work, he worked there as a helper.  It felt, had to stay there and drink, what better start than this for a new person in the city, because only these two things are the problem in the city.

 After a few days when Papa reached Lachmi Tauji's son to know his condition, Lachmi Tauji's boy started crying, said uncle, I am unable to work here, working day and night has worsened the condition, better than this.  There is a father's work in the village, my mother was killed, which I did not obey the father's words, just send me to the village, I will help my father's work, I will earn more than that there.

 Hearing this, Papa sent him to the village after two or four days with a person going to the village, today the same boy of Lachmi Tauji, takes care of his garden, and like Lachmi Tauji sells fruits in the village.

 composed short story

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