महान सख्शियत टिंचरी माई
जिस समय में उत्तराखंड में अधिकांश युवा पीढ़ी शराब और अनेक प्रकार के नशे में डूब रहे थे ,उस समय एक महिला ने ,इस नशे के खिलाफ संघर्ष छेड़ दिया था ,ओर इसे खत्म करने की पुरजोर कोशिश की थी, इनका वास्तविक नाम दीपा देवी था, संन्यास लेने के बाद इच्छागिरी माई के नाम से जानी गई ।
इन्होने सामाजिक कुरीतियों तथा धार्मिक अंधविश्वासों का डटकर सामना किया, 50 - 60 के दशक में गढ़वाल क्षेत्र में आयुर्वेद दवाई के नाम पर बिकने वाली शराब ( टिंचरी ) की दुकानों को बंद कराने तथा बच्चों की शिक्षा विशेषकर बालिकाओं की शिक्षा के लिए स्कूलों का निर्माण कराने में इनका बहुत महत्वपूर्ण योगदान रहा,ओर तबसे ये टिंचरीमाई के नाम से प्रसिद्ध हो गई।
टिंचरीमाई ने तब गढ़वाल क्षेत्र में शराब विरोधी व शिक्षा के क्षेत्र में किये गये आंदोलनों में प्रमुख भूमिका निभाई
दुर्गम तथा घने जंगलों से घिरे हुए दूधातोली क्षेत्र के मज्यूर गाँव में टिंचरी माई का जन्म हुआ था, जब वो दो वर्ष की थीं तो माँ का साया छिन गया था ओर पाँच वर्ष के होते-होते पिता का साया भी सर से उठ गया।
उन्हें रिश्ते के चाचा ने पाला ,वह इस भार को ज्यादा नहीं ढोना चाहते थे , इसलिए सात साल की होते ही ,उनकी शादी उनसे उम्र में सत्रह साल बड़े ,फौजी गणेश राम से कर दी गई।
सात वर्षीय टिंचर माई के लिए उसका विवाह एक महत्वपूर्ण घटना थी. इसलिए नहीं कि वह एक नये जीवन में प्रवेश कर रही थी या नई जिम्मेदारी को उठाने वाली थी बल्कि इसलिए कि उसे पहली बार छककर गरम-गरम पूरियाँ, कद्दू की सब्जी, रायता तथा सूजी खाने को मिली थी।
ढोल व बीनबाजे की आवाज पर तबकी नन्हीं टिंचर माई , हम उम्र बच्चों के साथ दौड़ कर बाहर आ गई थी बारात देखने, बड़ी मुश्किल से उसे अन्दर लाया गया था।
सुबह नयी धोती में बंडल की तरह लिपटी टिंचर माई ,तब दौड़ कर डोली में बैठ गई ताकि डोली की सवारी के मजे ले सके।
ससुराल में पूरे पाँच जेठ थे, उन्हें छूना मत की सीख दी गई थी तब टिंचर माई को, पर वो तो उन्हीं की गोदी में खेलने लग गई थी।
रात हुई तो जिठानियों के साथ चिपक कर सो गई, जिस दिन , उनके हवलदार पति को रावलपिण्डी जाना था तो बछिया सी पीछे चली दी।
पति के साथ उन्होनें बारह साल गुजारे ,शुरू शुरू के दिनों में नहाने के लिए ,जब माई आनाकानी करती तो, उनके पति उससे कहते थे की ,नहायेगी तो गौरी मेम बन जायेगी ,ये सुनते ही माई नहाने को मान जाती, चुटिया भी पति ही बनाते थे।
एक युद्ध के दौरान हवलदार गणेश राम जब लड़ाई में गये तो लौट कर नहीं आये ,तब उन्नीस वर्षीय माई रावलपिण्डी में अकेली रह गई. पति की नौकरी के हिसाब-किताब के बाद उसे एक अंग्रेज ऑफिसर लैन्सडाउन छोड़ आया।
अब कहाँ जाये माई , माँ-बाप तो बचपन में ही छोड़ गये थे. ससुराल वालों जवान विधवा की जिम्मेदारी लेना नही चाहते थे, ये सोच कर की कौन ले, जाने क्या-मुसीबत ओर लाये, तब माई का भविष्य अंधकार सा हो गया।
विधवाओं को हाशिये पर डालने वाले समाज से माई को वितृष्णा हो गई थी. सम्मान से जीने के लिए तात्कालिक समाज ने विधवाओं के लिए एक ही रास्ता छोड़ा था- सन्यास।
तो घर त्याग कर माई भटकती हुई लाहौर पहुँची, सौभाग्य से उसे वहाँ विदुषी माई मिल गई. उनसे दीक्षा ली ओर बन गई इच्छागिरी माई।
माई ने सन्यास ले तो लिया था, परन्तु जिस समाज से वह आई थी , उससे मुँह नहीं मोड़ पायी थी, विधवाओं के दुख, गरीबों के कष्ट ,तथा ताकतवरों के ढोंग उसे सालते रहे।
इधर पाकिस्तान बनने के बाद लाहौर में ,हिन्दू मुस्लिम संघर्ष शुरु हुआ तो उनके एक गुरु भाई ने उन्हें जबरदस्ती हरिद्वार भेज दिया ये कहते हुये की इसी में तेरा हित है।
इसी दौरान वह किसी के साथ ,कोटद्वार के समीप सिगड्डी आई ,वहाँ की महिलाओं को पीने के पानी के लिए दर-दर भटकते हुए देखा ,ओर वह पानी की माँग करते स्थानीय अफसर तक पहुँची, पर वहाँ माई की बात नही सुनी गई।
तब वह सीधे दिल्ली पहुँची ओर तीन मूर्ति भवन के गेट पर डेरा डाल दिया ,ओर जब प्रधानमँत्री जवाहर लाल नेहरू की कार ,जैसे ही गेट के बाहर निकली तो लपक कर गाड़ी के आगे खड़ी हो गई, तब नेहरू ने नीचे उतर कर गुस्सैल सन्यासिनी से कारण पूछा तो ,माई ने कहा रे जवाहर तेरे राज में सिगड्डी की बहू-बेटियों को पानी के लिए कितना परेशान होना पड़ रहा है तुझे मालूम है, और उन्होनें नेहरू का हाथ थाम लिया, नेहरू ने माई की बात सुनी तथा बुखार से तपती माई को अस्पताल भिजवाने के लिए कहा. पर माई तो पहले जवाब चाहती थी कि “बोल पानी देगा नहीं.नेहरू के हाँ कहने पर ही वह अस्पताल गई. नेहरू ने भी माई का ध्यान रखा – सिगड्डी में भी पानी आ गया।
पर माई सिगड्डी में भी ज्यादा नहीं रह पाई. जिस सिगड्डी के पानी के लिए लड़ने के लिए दिल्ली गई थी, वहीं के किसी प्रभावशाली ने उसकी कुटिया को पटवारी से मिलकर अपने नाम करवा दी, तब दूसरों के अधिकारों के लड़ने वाली माई चुपचाप वहाँ से आ गई ,क्योकिं उनका कहना था की, संन्यासी का अपना क्या होता है , भला जमीन के टुकड़े से मोह कैसा, हाँ दूसरे की जमीन होती तो पटवारी का मुँह नोच लेती ,ऐसी सन्यासिनी थी माई।
मतलबी दुनिया के लिये अपना स्वभाव नहीं बदला माई ने, मोटाढ़ाक में एक अध्यापक मोहनसिंह के संपर्क में आई- मोटाढ़ाक में स्कूल नहीं था तो, घर-घर जाकर माई ने स्कूल के लिए रुपया जमा किया और तीन महीने में स्कूल की इमारत खड़ी कर दी।
भाई ने रिश्ते नाते तोड़ दिए थे . पर कहीं हृदय में उस पति के लिए कोई कोना स्पंदित था जिसने उसे एक अभिभावक की तरह स्नेह दिया था. उसने स्कूल के लिए किए गये अपने कार्यों के एवज में अपने पति के नाम का एक पत्थर स्कूल में लगाना चाहा तो कुछ लोगों ने विरोध कर दिया।
स्कूल में नाम का पत्थर तो लग गया परन्तु लोगों के व्यवहार के पत्थर की चोट जो हृदय पर लगी उससे दुखी होकर माई बदरीनाथ चली गई-पूरे नौ साल वहाँ रही
माई के हिस्से अभी बहुत महत्वपूर्ण कार्य थे. वह शान्ति से बदरीनाथ भी कैसे रह सकती थी।
एक बार एक भक्त को प्रसाद देने डाकखाने गई – फिर बाहर बरामदे में सुस्ताने लगी ,तभी उसने देखा कि सामने ही शराब की दुकान से एक शराबी आती-जाती महिलाओं को, जो घास-लकड़ी लेकर वहाँ से गुजर रही थी, ताने कस रहा था ओर माई इसे मूक दर्शक की तरह सह नही सकती थी, तो वो सीधे कंडोलिया में डी. एम. के निवास पहुँची,और बरस पड़ी : “तू यहाँ बैठा है . देख तेरे इलाके में क्या हो रहा है” और उसका हाथ खींचकर शराब की दुकान की ओर ले गई।
वहाँ पहुँच कर डी .एम. को बोलीं अभी बंद कर इस दुकान को ,डी. एम. ने सरकारी कर्मचारी की तर्ज पर ही कहा कि दुकान लाइसेंसधारी की है, इसलिए इसे बंद करने में समय लगेगा।
पर माई कहाँ सुनने वाली थी ,वो डी. एम. से बोली बहुत साहब बनता है- एक दुकान बंद नहीं कर सकता, तो सुन दुकान अभी बंद नहीं हुई तो आग लगा दूँगी फिर चाहे मुझे जेल भेज देना!
इधर डी. एम. गया उधर माई ने मिट्टी तेल छिड़क कर दुकान में आग लगा दी और सीधे डी. एम. के घर पहुँच कर बोली - मैंने दुकान पर आग लगा दी है- गिरफ्तार कर मुझे,” और वहाँ बैठ गई।
डी . एम . ने दिन भर तो अपने पास रखा और रात होते ही जीप में बिठा कर लैंसडाउन भेज दिया, इस घटना के बाद माई को टिंचरीमाई नाम से पुकारा जाने लगा।
उन दिनों शराब के नशे कारण गढ़वाल की महिलाओं में आतंक था, बाहर निकले तो शराबी परेशान करें, घर में पति, भाई, बेटा शराबी है तो चैन नहीं।
इस घटना के बाद से गढवाल की महिलाओं को ,नशे के खिलाफ जवाब के रूप में टिंचरी माई मिल गई ,ओर वो बन गई ,महिलाओं के लिये संघर्ष का प्रतीक।
गाँव-गाँव से महिलाएँ टिंचरी माई से मिलने आती , टिंचरी माई जगह-जगह अवैध-वैध दुकान बंद कराने निकल पड़ती-दुकानों के आगे धरने देती, जहाँ टिंचरी माई के पहुँचने की खबर होती, शराबी या शराब बेचने वाले दुकान बंद कर भाग लेते।
टिंचरी माई के आन्दोलन ने शराबखोरों व शराब बेचने वालों के हौसले पस्त कर दिए, माई नंगे पैर महिलाओं को साथ लेकर संघर्षरत रहती ,टिंचरी माई आन्दोलन के साथ-साथ समाज में ,महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने, उनमें आत्मविश्वास भरने के लिए वे उन्हें पढ़ने-लिखने, सिलाई-कढ़ाई सीखने के लिए प्रेरित करती उन्हें दहेज के खिलाफ तैयार करती रही।
बढ़ती उम्र, संघर्ष ने माई को शरीर से जर्जर कर दिया तो वह गूलर झाला के जंगल में कुटिया बनाकर अकेली रहने लगी ओर जून 1993 में माई ने अपना शरीर त्याग दिया।
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English version
Legend personality tinchare Mai
At the time when most of the younger generation in Uttarakhand was drowning in alcohol and many types of intoxicants, at that time a woman, had started a struggle against this drug, and tried hard to end it, her real name was Deepa Devi. After retiring, she was known as Ichhagiri Mai.
She faced social evils and religious superstitions, closing liquor (tincture) shops sold in the name of Ayurveda medicine in the Garhwal region in the 50s and 60s and building schools for the education of children, especially girls. She had a very important contribution in the, and since then it has become famous as Tincharimai.
Tincharimai then played a major role in the anti-liquor and education movements in the Garhwal region.
Tinchari Mai was born in Majur village of Dudhatoli area surrounded by inaccessible and dense forests, when she was two years old, her mother's shadow was snatched away and by the time she was five years old, her father's shadow also rose from her head.
She was brought up by the uncle of the relationship, she did not want to carry much of this load, so as soon as she was seven years old, she was married to Fauji Ganesh Ram, seventeen years older than him.
Her wedding was an important event for seven-year-old Tincher Mai. Not because she was entering a new life or about to take on a new responsibility, but because she got to eat hot puris, pumpkin curry, raita and semolina for the first time.
The little tincture Mai, on the sound of the drum and the harp, we had come out running with the children to see the procession, she was brought in with great difficulty.
In the morning tincture Mai, wrapped like a bundle in a new dhoti, then ran and sat in the doli so that she could enjoy the ride of the doli.
There were five whole brothers in the in-laws' house, they were taught not to touch, then tincture Mai, but she started playing in her lap.
When night came, she slept with the jithanis, on the day when her havaldar husband was to go to Rawalpindi, she followed him like a heifer.
She spent twelve years with her husband, in the early days to take a bath, when Mai refused, her husband used to tell her that if she takes a bath, Gauri will become a meme, on hearing this, Mai will accept bathing, Chutiya is also made by her husband.
During a war, when Havildar Ganesh Ram went to fight, he did not return, then nineteen-year-old Mai was left alone in Rawalpindi. After accounting for her husband's job, an English officer left her in Lansdowne.
Where should I go now, my parents had left me in my childhood. The in-laws did not want to take the responsibility of the young widow, thinking that who would take it, knowing what other troubles they would bring, then Mai's future turned dark.
Mai was disgusted by the society which marginalized the widows. To live with dignity, the immediate society had left only one way for the widows – Sanyas.
So leaving home, Mai wandered to Lahore, fortunately she found Vidushi Mai there. She took initiation from him and became Ichhagiri Mai.
Mai had taken sanyas, but she could not turn her back on the society from which she had come, the miseries of the widows, the sufferings of the poor, and the pretense of the powerful kept haunting her.
Here after the formation of Pakistan, Hindu Muslim struggle started in Lahore, then one of his Guru Bhai forcibly sent him to Haridwar, saying that it is in your interest.
In the meantime, she came with someone to Sigddi near Kotdwar, saw the women there wandering from door to door for drinking water, and she reached the local officer asking for water, but there Mai was not listened to.
Then she went straight to Delhi and camped at the gate of Teen Murti Bhavan, and when Prime Minister Jawaharlal Nehru's car, as soon as it came out of the gate, it caught up and parked in front of the car, then Nehru got down from the angry hermit. When asked the reason, Mai said, you know how much the daughters-in-law of Sigddi are having to suffer for water in Jawahar Tere Raj, and they took Nehru's hand, Nehru listened to Mai and Mai was burning with fever. asked to be sent to the hospital. But Mai wanted the first answer that "Bol pani dega nahi." She went to the hospital only after Nehru said yes. Nehru also took care of Mai – water also came in Sigddi.
But I could not stay in Sigddi too much. The Sigddi who had gone to Delhi to fight for the water, someone of the same influential got her hut made after meeting the patwari, then Mai, who fought for the rights of others, quietly came from there, because she said that, Sanyasi What happens to one's own, how is the attachment to a piece of land, yes, if someone else had land, then she would have scratched the face of the patwari, she was such a sanyasi.
Mai did not change her nature for the mean world, came in contact with Mohan Singh, a teacher in Motadak - there was no school in Motadak, so Mai went from house to house, deposited money for the school and erected the school building in three months .
Brother had broken ties. But somewhere in the heart a corner was pulsating for the husband who had given her affection like a guardian. She wanted to put a stone in her husband's name in the school in return for her work done for the school, some people protested.
The name stone was installed in the school, but due to the stone's injury to the people's behavior, due to the hurt on the heart, Mai went to Badrinath - stayed there for the whole nine years.
Mai's parts were still very important work. How could she live in peace in Badrinath too?
Once she went to the post office to give prasad to a devotee - then she started relaxing in the verandah outside, only then she saw a drunken woman coming and going from the liquor shop in front, who was passing by with grass and wood, was taunting And Mai could not bear it like a mute spectator, so she went straight to DM's residence in Kandoliya, and it rained: “You are sitting here. See what is happening in your area” and dragged her hand towards the liquor store.
After reaching there, D.M. Told to close this shop now, D. M. said on the lines of a government employee that the shop belongs to a licensee, so it will take time to close it.
But where was the mother going to listen, she said to the D.M. A lot is made sir - If a shop cannot be closed, then if the shop is not closed yet, I will set it on fire, even if send me to jail!
Here DM went there, Mai sprinkled kerosene and set the shop on fire and went straight to DM's house and said – I have set the shop on fire – arrested me,” and sat there.
D. M . He kept it with him for the whole day and sent it to Lansdowne in a jeep as soon as night fell, after this incident Mai came to be called as Tincherimai.
In those days, there was panic among the women of Garhwal due to the intoxication of alcohol, if they go out, the drunkards harass them, if husband, brother, son are drunk in the house then there is no peace.
After this incident, the women of Garhwal got Tincheri Mai as an answer against drug addiction, and she became a symbol of struggle for women.
Women would come from village to village to meet Tinchri Mai, Tinchery Mai would go out from place to place to close the illegal shops - would sit in front of the shops, where there was news of Tinchri Mai's arrival, alcoholics or liquor sellers would close the shop and run away. .
The movement of Tinchari Mai has broken the spirits of the drinkers and liquor sellers, Mai struggles with barefoot women, along with the Tinchari Mai movement, in the society, to make women self-reliant, to instill confidence in them, they read them- Inspiring them to learn writing, sewing-embroidery, kept preparing them against dowry.
Growing age, struggle made Mai shabby from the body, so she started living alone by making a hut in the forest of Gular Jhala and in June 1993 Mai left her body.
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