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आस्था - Faith

आस्था - Faith

गाँव के मंदिर में हर साल की तरह इस बार भी सामूहिक पूजा होनी थी,जिसमें गाँव के सारे लोगों को अपनी तरफ से सहयोग करना जरूरी था,क्योकिं तभी सामूहिक पूजा संपूर्ण मानी जाती थी,ये परम्परा सदियों से चली आ रही थी।

ईश्वर पर अत्यधिक आस्था रखने वाली, सरुली आमा इस बार असमंजस थी के वो अपनी तरफ से क्या सहयोग दे,क्योकिं वो गाँव में अकेली रहती थी, बाल बच्चें थे नही ओर बुढ़ापे के कारण व बूबू के जाने के बाद ,खेती पाती भी छूट गई।

वृद्धा पेँसन से गुजारा चल रहा था वो ही इस बार अब तक मिली नही थीं।

वो इस उधेड़बुन में थी के वो आखिर कैसे अपना हिस्सा दे पायेगी,उसे समझ नही आ रहा था की आखिर ईश्वर उसकी ये क्या परीक्षा ले रहा है।

उसकी समस्या ये नही थी की वो क्या दे, बल्कि उसकी समस्या ये थी उसकी वजह से गाँव की वो सदियों पुरानी परम्परा ना टूट जायें जो सदियों से चली आ रही थी।

सरुली आमा का मन उदास हो गया था ओर ज्यों ज्यों पूजा का दिन नजदीक आता गया उसका मन ओर उदास होता चला गया,वो कुल देवता से प्रार्थना करने लगी।

हे नारायणा ( हे प्रभु ) कैस मुश्किल में ( कैसी मुश्किल में ) खित दे तैवेल ( डाल दिया तूने ) तेर थान में पूज छ ( तेरे मंदिर में पूजा है ) ओर मेर पास दिने क्या नहा ( ओर मेरे पास देने के लिये कुछ भी नही है ) अब कस्ये होली तेर थान में पूज ( अब कैसे होगी तेरे मंदिर में पूजा ) यो पापक भागीदार ( इस पाप का भागीदार ) तैवेल मैं कें क्याही बना ( तूने मुझे क्यों बनाया ) मैं तो दिन रात ,तेर नाम जप छू ( तेरा नाम जपती हूँ )।

ये सोचते सोचते सरुली आमा को कब नींद आ गई उसे पता ही नही चला।

अगले दिन सुबह उसकी नींद अचानक माई भिक्षा देहि की आवाज सुनकर खुली ,वो हड़बड़ा कर उठी ओर बाहर निकल कर देखा तो एक साधु उसके दरवाजे के बाहर खड़ा था।

सरुली आमा के पास देने को तो कुछ था नही, इसलिए उसने साधु को कहा ,दिने तो क्या नहा (  देने के लिये तो कुछ भी नही है ) पर चाहा बनोनी उ पी बेर जाला ( पर चाय बना रही हूँ वो पी कर जाना )।
उसने साधु को आदर पूर्वक बिठाया ओर चाय बनाने में लग गई, घर में दूध नही था ,बिन दूध की चाय कैसे पिलाये ये सोचा ही था की, बाहर बैठे साधु की आवाज आई, माई चाय बिन दूध की पिऊँगा, बस गुड की एक डली ले आना,ये सुनकर सरुली आमा को थोडा़ इस बात का संतोष हुआ के , साधु के सामने उसकी इज्जत बनी रही।

सरुली आमा ने चाय का गिलास साधु को दिया, ओर साधु ने पहला घूट पीते ही बोला, माई ऐसी चाय के लिये ,मैं पता नही कब से तरस रहा था, आज तेरी चाय ने आत्मा तृप्त कर दी,जा तेरे सारे कष्ट आज के बाद दूर हो जाएंगे, ये एक चीज दे रहा हूँ, इसे लेजा कर अपने इष्ट के थान में दे आना, तेरी परेशानी का अंत हो जायेगा।
ये कह कर साधु ने अपनी झोली से एक बड़ा सारा डिब्बा निकाला ,जिसमें खूब सारा घी था, वो उसने सरुली आमा को दिया, सरुली आमा मना करने लगी की, जोगी कें तो दिनी ( साधु को तो दिया जाता है ), उन्होंथें ली थोड़ी न जाँ ( उनसे लिया थोड़ी ना जाता है ) , तुम तो बस आशीर्वाद दी दियो (आपको देना हो तो बस आशीर्वाद दे दो) , एक चाहा गिलास बदव (एक चाय के गिलास के बदले ) यो डाब्ब दी बेर पापक भागीदार न बनाव (ये डिब्बा देकर पाप का भागीदार मत बनाओ )।

ये सुनकर साधु बोला, माई ये तेरा ही है, अगर नही होता तो मेरे मुँह से ये शब्द नही निकलते ,ये तुझे मिलना था, इसलिए ही तो ये यहाँ तक आया, मेरी तो चाय थी, तभी तो मैं यहाँ तक आया,इसे रख ओर कल मंदिर में दे आना।

तुझे चिंता भी तो इसी बात की हो रही थी ना-के थान में क्या दूँगी, ये समझ ले नारायण ने तेरी चिंता दूर करने के लिये ये धी का डिब्बा देकर मुझे यहाँ भेजा है।

घी का डब्बा लेकर सरुली आमा के आँखों से गर गर आँसू बहने लगे ,ओर जब उसका मन थोडा़ हल्का हुआ तो उसने देखा की, उसे डिब्बा देने वाला साधु जा चुका है।

पहले तो उसे लगा की वो सपना देख रही थी शायद, पर डिब्बे की मौजूदगी बता रही थी की सच में साधु के भेष में आकर नारायण ने उसे मुसीबत से उबारा है, ओर उस दिन से उसकी आस्था ईश्वर के प्रति ओर प्रगाढ़ हो गई।

स्वरचित लघु कथा 
सर्वाधिकार सुरक्षित

English version

Faith - Faith
 
Like every year in the village temple, collective worship was to be held this time also, in which all the people of the village were required to cooperate on their behalf, because then the collective worship was considered complete, this tradition has been going on for centuries.

 Saruli Aama, a believer in God, was confused this time to support her side, because she lived alone in the village, had no children, and due to old age and after Booboo left, she also missed farming.  .

 The old lady who was going through Penson, she was not yet found this time.

 She was in a tizzy about how she would be able to give her share, she could not understand what God is testing her for.

 Her problem was not what she should give, but her problem was that she could not break the centuries old tradition of the village which had been going on for centuries.

 Saruli Aama's heart became depressed and as the day of worship drew near, her heart became depressed, she started praying to the deity.

 O Lord how are you fallen me  in trouble  Now in the Holy worship and i can't not provide any things, Now how will you be worshiped in your temple, why you make me partner of this sin.

 While thinking this Saruli Ama did not know when she fell asleep.

 The next morning, her sleep suddenly opened on hearing the voice of Mai Bhiksha Dehi, he woke up and looked out and saw a monk standing outside her door.

 Saruli Aama had nothing to give, so she told the monk, there is nothing to be given, But I am making tea to drink it .
 She made the monk sit respectfully and started making tea, 
There was no milk in the home, thought how to drink tea without milk, the voice of the monk sitting outside came, I will drink tea without milk, just a nugget of good  Bringing this, Saruli Ama was a little satisfied to hear that she was respected before the monk.
 
Saruli Aama gave a glass of tea to the monk, and the sadhu said after drinking the first sip, Mai for such good tea, I do not know how long I have been craving, today your tea has filled my soul, go after all your troubles today.  You will go away, I am giving this one thing, take it and give it to your favorite place, your troubles will end.
 Saying this, the monk took out a big box full of ghee from his bag and gave it to Saruli Ama, Saruli started to refuse Ama, the sadhu is given, little is taken from him, if you want to give, then just bless.

 Don't share this sin with a box of tea instead of a glass of tea.

 Hearing this, the monk said, this is yours, if it was not then these words would not come out of my mouth, it had to meet you, that is why it came here, it was my tea, then I came here, keep it  And come to the temple tomorrow.

 Even if you were worried about this, what should I give in the place, god has sent me here to give away this ghee box to remove your anxiety.

 With a ghee box, tears started flowing from Saruli Aama's eyes, and when her mind lightened slightly, she saw that the hermit who had given her a box has gone.

 At first she felt that she was dreaming, but the presence of the compartment was telling that in true disguise as a monk, god has overcome her from trouble, and from that day onwards her faith in God became stronger.

 Scripted short story
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