सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

आमा ओर कऊल दी

जसुली आमा ( दादी ) को लेने उनका बेटा शहर से आया था, ओर आमा तब से ही दुखी थी,उसने साफ कह दिया था की वो शहर नही जायेगी।

बेटा अपनी जिद में अड़ा था की चलना होगा, क्योकिं यहाँ उसकी देखभाल करने वाला कोई नही है ओर अवस्था हो चली है, इसके अतिरिक्त लोग बातें बना रहे हैं की माँ को गाँव में छोड़ रखा है, एक प्राणी को नही पाल सकता।

दोनों ही धर्म संकट में थे, बेटा अपनी जगह सही था, ओर माँ अपनी जगह।

आमा ( दादी ) पुरखों की जमीन, अपने गाँव व यहाँ के लोगों को छोड़ना नही चाहती थी। 

जसुली आमा ( दादी ) ने बेटे से कहा सारि जिंदगी याँई काट राखे ( सारी जिंदगी यही काटी है ) अब मरण बखत वाँ की करुण (अब अंतिम समय वहाँ क्या करूँगी) याँ अपण लोग छ्न (यहाँ अपने लोग हैं ) याँई रौन दे मैं कें ( यही रहने दे मुझे )।

अंत में थक हार कर बेटा मान गया ओर जसुली आमा ( दादी ) से बोला ठीक है यही रह, ये फोन भी रख ले, रोज बात करना ताकि तेरी चिंता ना रहे, इस तरह आमा (दादी ) शहर जाने से बच गई।

जसुली आमा ( दादी ) के गाँव में ही रुक जाने से गाँव वालों के अलावा तब सबसे ज्यादा किसी को खुशी हुई तो वो थी आमा की हमउम्र कऊल दी ( दीदी ) को।

वैसे तो कऊल दी का नाम भागीरथी था,पर पहाड़ में अधिकाँश लोग गोरे होते हैं,ओर भागीरथी दी थोडा़ साँवली थी तो, उनका बोलता नाम कऊल रख दिया गया था, लोग अब उन्हें इसी नाम से ही जानते थे।

आमा ओर कऊल दी का बड़ा साथ  था, आमा का जहाँ ये गाँव ससुराल था, वहीं कऊल दी का ये मायका था, कऊल दी का कोई भाई ना होने के कारण उनके बौज्यू ( पिता ) ने कऊल दी के पति को घर जंवाई बना लिया था, इसी के कारण कऊल दी को सारा गाँव दीदी बोलता था।

आमा ( दादी ) ओर कऊल दी शुरू से ही साथ रहे, दोनों हमउम्र थे, दोनों के मकान व जमीनें भी साथ साथ ही थी, इसलिए दोनों शुरू से ही साथ साथ ही काम किया करते थे, पूरे गाँव में दोनों की जोड़ी प्रसिद्ध थी, ओर ये साथ आजा भी कायम था, आमा ( दादी ) को कऊल दी के होने से कभी अकेलेपन का अहसास नही होता था, दोनों साथ ही रहते, साथ ही खाते थे।

आमा ( दादी ) शायद कऊल दी के कारण ही गाँव छोड़ कर नही जाना चाहती थी।

वैसे आमा ( दादी ) व कऊल दी  को पूरा गाँव ही अच्छा मानता था, क्योकिं दोनों ही अपनी हैसियत के अनुसार गाँव के लोगों की मदद किया करते थे।

आमा ( दादी ) तो बेटे द्वारा भेजे गये खर्चे को गाँव के जरूरतमंद लोगों की सहायता में खर्च कर दिया करती थी, यही हाल कऊल दी का था,इस कारण गाँव के लोग उनकी बहुत इज्जत भी किया करते थे।

गाँव में किसी घर में कोई शादी या कोई मांगलिक काम होते तो दोनों को सबसे पहले बुलाया जाता, उनसे राय ली जाती थी।

गाँव में किसी घर में दुख तकलीफ़ होती तो, दोनों सबसे पहले वहाँ पहुँच जाती थी, उनका यही व्यवहार उनको गाँव में खास बनायें हुये था, अब भला कौन ऐसे व्यक्ति के गाँव छोड़ कर जाने में दुखी नही होता।

स्वरचित लघु कथा 
सर्वाधिकार सुरक्षित

English version

Grandmother and Kaul di 
 Ama ( grandmother ) son came from the city to pick up Jasuli Ama (grandmother), and Ama was unhappy since then, she had clearly said that she will not go to the city.

 The son was determined to walk in her stubbornness, because there is no one to take care of him here and the situation has gone on, in addition people are making talks that he has left his mother in the village, cannot raise a creature.

 Both religions were in trouble, the son was right in his place, and the mother was in her place.

 Ama (grandmother) did not want to leave her ancestral land, her village and people here.

 Jasuli Aama (grandmother) said to her son, "Sari zindagi yani kat rakhe (this is the whole life cut)" now, "I will do my last time here"  (Let me stay the same).

 Finally, after giving up tired son agreed and Jasuli said to Ama (grandmother), stay the same, keep this phone too, talk daily so that you are not worried, thus Ama (grandmother) escaped from going to the city.

 Jasuli Ama (grandmother) stayed in the village, but the villagers were the happiest, apart from the villagers, that was another hand Kaul Di (Didi) also happiest.

 Although Kaul Di's name was Bhagirathi, but most people in the mountain are white, and Bhagirathi Di was a little darker, so his name was called Kaul, people now knew him by this name.

 Ama and Kaul Di had a big support, Ama's village was in-law, while Kaul Di's mother was there, Kaul Di had no brother, his boujue (father) made Kaul Di's husband live  , This is why the whole village was called Didi to Kaul Di.

 Ama (grandmother) and Kaul Di were together from the beginning, both of us were of the same age, both had houses and land together, so both worked together from the beginning, both of them were famous in the whole village,  And this was also with Aaja, Ama (grandmother) never felt lonely due to being a Kaul Di, both lived and ate together.

 Ama (grandmother) probably did not want to leave the village because of Kaul Di.

 By the way, the whole village considered Ama (grandmother) and Kaul Di as good, because both of them used to help the people of the village according to their status.

 Ama (grandmother) used to spend the expenses sent by the son to help the needy people of the village, this was the same condition of Kaul Di, due to this the people of the village used to respect him a lot.

 If there was any marriage or any manic work in a house in the village, then both were called first, they were consulted.

 If there was any problem in a house in the village, both of them would have reached there first, their behavior was making them special in the village, now who would not be sad to leave such a village.

 Scripted short story
 All rights reserved

टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें

Please give your compliments in comment box

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

पहाडी चिडिया - Mountain Bird

रेबा ,गाँव में उसे सब इसी नाम से पुकारते थे, वैसे उसका नाम ठहरा रेवती। किशन दा की चैली रेबा को पहाड़ से बड़ा लगाव था,जब उसके साथ की लड़कियाँ हल्द्वानी शहर की खूबियों का बखान करती तो, रेबा बोल उठती, छी कतुक भीड़ भाड़ छ वाँ, नान नान मकान छ्न, गरम देखो ओरी बात, मैं कें तो बिल्कुल भल न लागण वाँ,मैं कें तो पहाड भल लागु, ठंडी हौ, ठंडो पाणी, न गाडियों क ध्वा, ना शोर शराब ,पत्त न की भल लागु तुमुके हल्द्वानी, मैं कें तो प्लेन्स बिल्कुल भल न लागण। रेबा पहाड़ की वो चिडिया थी, जिसकी जान पहाड़ में बसती थी, उसके लिये पहाड़ से अच्छी जगह कोई नही थी, रेबा सुबह जल्दी उठ कर ,सबके लिये चाय बनाती फिर स्कूल जाती, वहाँ से आकर घर का छोटा मोटा काम निपटाती, ओर फिर पढ़ने बैठ जाती,ये रेबा की दिनचर्या का हिस्सा था। रेबा अब इन्टर कर चुकी थी, किसन दा अब उसके लिये लड़का ढूँढने लग गये थे, ताकि समय पर उसके हाथ पीले हो सके।पर रेबा चाहती थी की उसकी शादी पहाड़ में ही कहीं हो, उसने अपनी ईजा को भी बोल दिया था की ,तू बाबू थें कै दिये मेर ब्या पहाड़ में ही करिया, भ्यार जण दिया। इधर किसन दा रेबा के लिये...

पीड ( दर्द ) Pain

बहुत दिनों से देखने में आ रहा था की कुँवरी का अनमने से दिख रहे थे ,खुद में खोये हुये ,खुद से बातें करते हुये ,जबकि उनका स्वभाव वैसा बिल्कुल नही था ,हँसमुख ओर मिलनसार थे वो ,पता नही अचानक उनके अंदर ऐसा बदलाव कैसे आ गया था, समझ नही आ रहा था के आखिर हुआ क्या।  कुंवरी का किस कदर जिंदादिल थे ये किसी से छुपा नही ठहरा ,उदास वो किसी को देख नही सकते थे ,कोई उदास या परेशान दिखा नही के कुंवरी का उसके पास पहुँचे नही ,जब तक जाते ,जब तक सामने वाला परेशानी से उबर नही जाता था ,अब ऐसे जिंदादिल इंसान को जब उदास परेशान होते देखा तो ,सबका परेशान होना लाजमी था ,पर कुँवरी का थे के ,किसी को कुछ बता नही रहे थे ,बस क्या नहा क्या नहा कह कर कारण से बचने की कोशिश कर रहे थे ,अब तो सुबह ही घर से बकरियों को लेकर जंगल की तरफ निकल पड़ते ओर साँझ ढलने पर ही लौटते ,ताकि कोई उनसे कुछ ना पूछ पाये ,पता नही क्या हो गया था उन्हें ,गाँव में भी उनका किसी से झगड़ा नही हुआ था ,ओर घर में कोई लड़ने वाला हुआ नही ,काखी के जाने के बाद अकेले ही रह गये थे ,एक बेटा था बस ,जो शहर में नौकरी करता था ,उसके बच्चे भी उसी के साथ रह...

थान

थान - मंदिर प्रवीण के पिता को अपना गाँव ढूँढने में बडी मशक्कत लगी, क्योकिं वो खुद बचपन में एक बार अपने पिता के साथ ही आ पाये थे, उसके बाद उनका भी आ पाना संभव नही हुआ। प्रवीण के बूबू ( दादा ) को किसी जमाने में कोई अंग्रेज अपने साथ साउथ अफ्रीका ले गया था, शायद वो अंग्रेज तब इन पहाड़ों में अधिकारी रहा होगा, फिर वहाँ से साउथ अफ्रीका चल दिया होगा, तब से प्रवीण का पूरा परिवार वहीं रहा। वही पर रच बस गया था प्रवीण का परिवार, प्रवीण के पिता का जन्म भी वहीं हुआ था ओर प्रवीण तीसरी पीढ़ी का सदस्य था, जो की वहीं जन्मा,दादा शायद नौकरी करते थे, ओर पिता ने पढ़ लिख कर खुद का काम शुरू किया, कुल मिलाकर अच्छा खासा संपन्न परिवार था उन लोगों का। पर कहते हैं ना की जन्मभूमि बुलाती जरूर है, खासकर पहाड़ की तो, ऐसा ही कुछ प्रवीण के परिवार के साथ भी हुआ, ओर उन्हें भी बरसों बाद पहाड़ आना पड़ा। हुआ ये की प्रवीण के परिवार में अचानक विपत्ति आ गई, उसके पिताजी की तबीयत ना जाने क्या खराब हुईं की, लाख ईलाज करवा लिया पर बीमारी समझ नही आई डाक्टरों को, सब हताश हो गये, प्रवीण के पिता की दशा निरंतर बिगड़ती चली जा रही थी।...