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आमा के स्वेटर

अपने हुनर के माध्यम से, गाँवो से  पलायन करने वाले लोगों के लिये एक उदाहरण थी आमा।
आमा ने गाँव में रहकर ही, ना केवल खुद के लिये ही रोजगार का सृजन किया था ,अपितु गाँव के अन्य लोगों को भी रोजगार प्रदान कर रही थी।

आमा से बातचीत के दौरान उनके इस हुनर की कहानी पता लगी, जो काफी रोचक है।

आमा शुरू से ही हुनरमंद महिला थी, जैसा की आमा ने बताया, उन्होनें कहा बचपन में उन्हें स्वेटर बुनना उनकी आमा ( दादी ) ने सिखाया ओर उसे ओर उसमें निखार लाई थी उनकी ईजा ( माँ )। 

आमा ने बताया मेरी ईजा ( माँ ) सुँदर स्वेटर बुना करती थी, गजब के डिजाइन होते थे उनके बुने स्वेटरों में , लोग खूब खरीद कर ले जाते थे , आमा ( दादी ) ओर ईजा ( माँ ) तो दिन भर स्वेटर ही बुनती थी, फिर भी लोगों का पूरा नही हो पाता था।

जब मैं थोडा़ बड़ी ओर समझदार हुई तो मुझे भी सीखा कर इसी काम में लगा दिया, मेरी आमा ( दादी ) कहती थी, ये तेरे काम आयेगा, कभी भूखे नही रहेगी, अगर इसे सीख लिया तो।

मेरी शादी के बाद मेरा ये हुनर ही मेरे बहुत काम आया, जमीन कम होने से खेती सिर्फ खाने लायक ही हो पाती थी ऐसे में इस हुनर से ही, बाल बच्चों को लिखाया पढ़ाया, उनकी शादियाँ की।

तब आमा ( दादी ) की कही वो बात सच महसूस होती जिसमें आमा ( दादी ) ने कहा था की इस हुनर से तू कभी भूखी नही रहेगी ओर सच में मुझे इसने कभी भूखा नही रखा, जो भी माल पूरे साल बनाती वो सर्दियाँ आते आते सब बिक जाता।

ऊन के लिये भेड़ भी पाल रखी थी, जिन्हें चराने का काम बूबू ( दादा ) का होता, ओर मैं ओर मेरी सास उस ऊन को साफ व रंग करके उससे स्वेटर बुनते।
बच्चें पढ़ लिख कर नौकरी कर रहें हैं ओर मैं अब भी स्वेटर, टोपी, मौजे व दस्ताने बुन रही हूँ।

दोनों बहुएँ मेरे बनाया माल शहरों में रहकर बेच देती हैं, ऑनलाइन काम करके बल, मुझे नही पता ये क्या होता है, पर सुना है घर बैठे सामान बिकता है इसमें।

मेरा भी सही हो रहा है, खाली बैठना नही पड़ रहा ओर ना ही बच्चों से खर्चे के लिये कुछ माँगना पड़ रहा है, उल्टे मैं ही दे देती हूँ उनको ,जब भी जरूरत पड़ती है बल।

आमा ( दादी ) के बनायें सामानों की ना केवल क्वालिटी बढ़िया थी, अपितु डिजाइन भी शानदार थे, देखते ही खरीदने को मन कर रहा था।
शुद्ध ऊन से बने आमा ( दादी ) के प्रोडेक्ट वास्तव में लाजवाब थे।

काम बढ़ने से आमा ( दादी ) ने गाँव की कई महिलाओं को काम सीखा कर अपने यहाँ काम पर रख लिया था।
बूबू ( दादा ) ने भी अब भेड़ चराने के लिये एक नेपाली परिवार को रख लिया था, जो अब भेड़ों की देखभाल करते थे।
पर बूबू ( दादा ) अब भी खाली नही बैठते थे, उन्होनें अब ऊन रंगने का काम पकड़ लिया था, वनस्पतिक रंगों का उपयोग कर बूबू ( दादा ) ऊन की सुँदर ढँग से रंगाई करते हैं, ओर फिर उसको कात कर, बुनाई लायक बना कर आमा तक पहुँचा दिया जाता।
आमा का काम बढ़ने से कई लोगों को रोजगार भी मिल गया था, पर आमा के बनायें सामान की कमी बनी ही रहती, क्योकिं उनके सामान की डिमांड बहुत थी।

आमा द्वारा बचपन में सीखा गया हुनर अब बड़ा आकार ले चुका था , ओर इसके पीछे का मुख्य कारण था, उनकी मेहनत ओर सुँदर डिजाइन व शुद्धता।

जो लोग कहते हैं की गाँव में क्या रखा है, उन्हें आमा ने बता दिया था के, गाँव में रहकर भी , कैसे कमाया ओर खाया जा सकता है।

स्वरचित लघु कथा 
सर्वाधिकार सुरक्षित

English Version

Ama's sweater
 Through his talent, Ama was an example for people migrating from villages. 

 Ama had created employment by staying in the village, not only for herself, but was also providing employment to other people of the village.

 During the conversation with Ama, the story of this skill was found out, which is quite interesting.

 Ama was a skilled woman from the beginning, as told by Ama, she said that her Aama (grandmother) had taught her to knit sweaters in childhood and had brought her beauty and beauty to her.

 Ama told that my Eaja (mother) used to make beautiful sweaters, she had amazing designs in her woven sweaters, people used to buy a lot, Ama (grandmother) and Eaja (mother) used to knit sweaters all day, then  Even the people could not meet.

 When I became a little more intelligent, I also learned and engaged in this work, my mother (grandmother) used to say, this will work for you, will never be hungry, if you learn it.

 After my marriage, my skills were very useful to me, due to the lack of land, agriculture was only able to be eaten, in such a way, from this skill, the children were taught, taught and married.

 Then Ama (Dadi) said that what Ama (Dadi) said was true, you will never be hungry with this skill and in truth it never kept me hungry, all the goods that you make all year will come  Sold out

 Sheep were also kept for wool, which would be used for grazing by Bubu (grandfather), and I and my mother-in-law cleaned and colored the wool and weaved sweaters from it.
 The children are studying and writing and I am still knitting sweaters, hats, socks and gloves.

 Both daughters in law sell my goods manufactured in cities, working online, I do not know what this is, but I have heard that goods are sold at home.

 I am also getting right, I do not have to sit empty nor do I have to ask for anything from the children for expenses, on the contrary, I only give them, whenever the need is force.

 The quality of the goods made by Ama (grandmother) was not only good, but the designs were also great, I was looking to buy on sight.
 The products of Ama (grandmother) made of pure wool were truly wonderful.

 As the work progressed, Ama (grandmother) learned many women from the village and hired them.
 Bubu (Dada) had also kept a Nepali family to feed the sheep, who now took care of the sheep.
 But Bubu (Dada) still did not sit empty, he had now caught the work of dyeing wool, using botanical dyes, Bubu (Dada) dyes the beautiful color of wool, and then cutting it, making it wearable.  Ama would have been transported.
 Due to increasing work of Ama, many people also got employment, but the lack of goods made by Ama would remain, because there was a lot of demand for their goods.

 The skill learned by Ama in her childhood had now taken great shape, and the main reason behind it was her hard work and beautiful design and purity.

 Those who say what is kept in the village, Ama had told them that even after living in the village, how can they be earned and eaten.

 Scripted short story
 All rights reserved

टिप्पणियाँ

  1. Aise hi na jaane kitne hunarmand pahadi hai jo bas uchit mounko ki talaash mai hai sarkar ko vibhinn yojnao ke madhyam se inki pehchan karni chahiye aur laghu udhyog shuru karne chahiye jo ki na sirf aise hunarmando ko shashakt karega apitu pure Uttrakhand ko aarthik shashakt or palayan rahit banane mai kargar saabit hoga

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    1. जी सही कहा आपने, ऐसा हो जायें तो उत्तराखण्ड आत्म निर्भर बन सकता है।

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  2. I really appreciate this post, thanks for sharing this post.

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  3. बहुत सुंदर लिखा।पर्वतीय क्षेत्र में भी कार्य कौशल से जीविका अच्छे ढंग से चल सकती है।

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