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यादेँ पहले सांस्कृतिक कार्यक्रम की - Remember the first cultural program

1960 के आसपास की होगी, तब जयपुर राजस्थान में प्रवासी उत्तराखंडियों के दो समाज बन चुके थे , पर उसमें युवा वर्ग का कोई प्रतिनिधित्व नही था ,ओर इसकी वजह से हम जैसे प्रवासी युवा जो, यहाँ पैदा हुये थे,, अपनी संस्कृति से पूरी तरह जुड़ नही पा रहे थे, क्योकिं हम युवाओं के पास खुद कुछ करने के लिए तब था ही नही कुछ भी।

ना ही हमें अपनी बोली बोलनी आने वाली ठहरी ,ना ही हमारे कोई लोक गीत व संगीत समझ में आने वाले ठहरे, एक तरह से हम लोग अपने पहाड़ की संस्कृति सभ्यता से अलग थलक से थे, सिर्फ नाम के उत्तराखंडी, जो सिर्फ बोली तो समझ जाता था आधी अधूरी, पर बोल नही पाता था, तब मन में विचार आया की, क्यों ना ऐसा एक संगठन बनाया जाए, जिसमें सिर्फ युवा हो।

बस यही सोच कर कुछ उत्तराखंडी युवा मित्रों को अपना विचार बतलाया ओर वो भी इसके लिए राजी हो गए ओर इस तरह स्थापना हुई उत्तराखंड़ युवा विकास परिषद की।

एक संचालन समिति का गठन किया गया, जिसमें अध्यक्ष पद पर प्रकाश पांडेय जो की आजकल उत्तराखंड में जाने माने ठेकेदार हैं विराजित हुऐ ओर मुझे प्रथम महासचिव पद का दायित्व दिया गया, उपाध्य्क्ष पद पर डा.सूरज सिह जी नेगी सुशोभित हुऐ, जो आजकल आर ए एस हैं ओर साथ में प्रसिद्ध साहित्यकार भी हैं,संगठन सचिव पद पर भाई राजेंद्र तडागी पदस्थापित हुऐ जो बाद में इस संगठन के अध्यक्ष भी बने ओर प्रथम सांस्कृतिक सचिव बने शमशेर सिह फर्तियाल, इसके अतिरिक्त सलिला जोशी जी, भुवन चंद जोशी जी, भाई राजेंद्र सिह भंडारी जी, रूपा बिष्ट जो आज ख्यातिनाम दूरदर्शन आर्टिस्ट हैं, निधि पंत, भाई चंद्रपाल सिह बिष्ट, बबीता भारद्वाज ,विजय पांडे, नवल जोशी, कुलदीप रावत, जयसिंह रावत, पदमा रावत, गोविंद भंडारी ,, सहित अनेकों युवाओं का योगदान मिला।
संगठन बनते ही हमारे उत्तराखंड प्रेम को बल मिल गया ठहरा ओर इसी के चलते हम सब युवाओं ने एक सांस्कृतिक कार्यक्रम करने का इरादा करा ओर तन मन धन से जुट गए ठहरे , उस कार्यक्रम को सफल बनाने में, दिन रात एक कर दिया था हम लोगो ने ।

तब ना हमारे पास कोई गाडियाँ थी ,ना ही कोई मोबाईल, तब साइकिलों पर घूम घूम कर ,तब के पूरे जयपुर को नाप दिया था, ओर घर घर जाकर लोगों को कार्यक्रम के बारे में बतलाया गया, कार्यक्रम की तैयारी के लिए, तत्कालीन पर्वतीय समाज के अध्यक्ष स्व श्री चंद्र सिह ऐठानी जी की घर की छत का उपयोग किया गया।

वहाँ भाई शमशेर सिह जी, सलिला दी ओर भुवन चंद जोशी जी के सानिध्य में झोडे, गीत, नृत्य, ना जाने कितने उत्तराखंडी कार्यक्रम तैयार कर दिए ठहरे।
हमारा पहला प्रयास था ओर अनुभव भी नही था, फिर भी हम जी जान से जुटे हुऐ थे की, कैसे भी हमारा ये सांस्कृतिक कार्यक्रम सफल हो जाए ओर हमारी लगन ओर मेहनत रंग ला रही थी, रिहर्लसल में भाग लेने वाले हमारे युवा साथी मन लगा कर सीख रहे थे, सलिला दी, शमशेर सिह व भुवन चंद जोशी जी अपने आपको को पूरी तरह झोंके हुऐ थे, ताकि कैसे भी ये कार्यक्रम सफल हो सके।

आखिर हम सबकी मेहनत रंग लाई ओर रिहर्सल कामयाब रही, फाइनल रिहर्सल में सबने अच्छा परफॉर्म किया।
अब बारी थी कार्यक्रम को स्टेज में उतारने की, जिसके लिए जयपुर का प्रसिद्ध रंगमंच रविंद्र मँच बुक कराया गया,मँच की साज सज्जा को हमारे अग्रज स्व श्री कैप्टन मोहन सिह जी ने सम्भाला, जिन्होने सफेद पर्दों के माध्यम से हिमालय की आकृति का निर्माण किया।
अब बारी थी लोगों के सामने प्रस्तुतिकरण की ओर लोगों ने इसे खूब सराहा,हमारी मेहनत सफल रही, ना केवल कार्यक्रम से, अपितु लोगों का आकर कार्यक्रम देखने से भी, सभागार खचाखच भरा हुआ था, लोग खड़े होकर भी कार्यक्रम देखने का आनंद ले रहे थे।
इस सफलता की ही बदौलत ,हमारा मनोबल इतना बढ़ा की, आज हम ना केवल अपनी बोली बोल पाते हैं, अपितु अपनी सभ्यता, संस्कृति को अच्छी तरह समझ पाते हैं, मेरे लिए तो ये किसी वरदान से कम नही हुई, इसी कार्यक्रम की बदौलत मैं आज आप लोगों के लिए उत्तराखंड की पृष्ठभूमि पर आधारित कथाओं की रचना कर पाता हूँ।
स्वरचित संस्मरण 
सर्वाधिकार सुरक्षित

English Version 

Memories of the first cultural show
 
Around 1960, there were two societies in Jaipur, but there is no representation of the youth in it and because of this we were not able to fully connect with our culture, because we young people had something to do ourselves.  Not only.

 Neither we were able to speak our speech nor any of our folk songs could be understood by music, in a way, we were different from our mountain culture civilization.

 Then the idea came in mind, why not create such an organization, which has only youth.

 Some Uttarakhandi youths were told their views and they too agreed to it and thus Uttarakhand Youth Council was established.

 A Steering Committee was formed, in which Prakash Pandey, who is now a well-known contractor in Uttarakhand, was entrusted with the post of Chairman and I was given the responsibility of the first Secretary General, Dr. Suraj Singh Ji Negi on the post of Vice President, who is RAS at presents and  also a renowned litterateur, brother Rajendra Tadagi has been posted as organization secretary, who later became the president of this organization and Shamsher Singh Firtiyal became the first cultural secretary, Salila Joshi ji, Bhuvan Chand Joshi ji, brother  Rajendra Singh Bhandari ji, Roopa Bisht who is a renowned Doordarshan Artist today, Nidhi Pant, Bhai Chandrapal Singh Bisht, Babita Bhardwaj, many youths were contributed.

 As soon as the organization was formed, our Uttarakhand love got strengthened and due to this, all of us youths made an intention to have a cultural program and were busy with body, mind and money to make that program a success, one day and night.

 Then neither we had any trains nor any mobiles, roaming around on bicycles and going all over Jaipur to inform our people about the program.

 For the preparation of the program, the roof of the house of the then hill society president Shri Sri Chandra Singh Athanji was used.

 There were many songs, songs, dances, not knowing how many Uttarakhandi programs were prepared under the guidance of Bhai Shamsher Singh Ji, Salila Di and Bhuvan Chand Joshi Ji.

 It was our first attempt and did not have any experience, yet we were busy with our life, whenever our cultural program becomes successful and our hard work and hard work was paying off, our young fellow participating in rehearsal felt like  We were learning taxes, Salila Di, Shamsher Singh and Bhuvan Chand Joshi ji had thrown themselves completely so that this program could be successful.

 After all we all worked hard and the rehearsal was successful, everyone performed well in the final rehearsal.

 Now it was the turn to stage the program, for which the famous theater of Jaipur Ravindra Manch was booked, the decoration of the stage was handled by our forefather Mr. Captain Mohan Singh, who created the Himalayan figure through white curtains.  .

 Now it was the turn towards the presentation in front of the people, people appreciated it a lot, our hard work was successful, not only from the program, but also from the people coming and watching the program, the auditorium was packed, people were standing and enjoying watching the program  Were.

 Due to this success, today we are able to not only speak our language, but also understand our civilization, culture very well, for me it was not less than a boon, due to this program, I am going to Uttarakhand for you today.  I can write stories based on the background of.
 Composed memoirs
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टिप्पणियाँ

  1. संस्मरण बहुत ही सुन्दर लिखा है। उस समय ऐसा ही था।संसाधनों का अभाव आर्थिक तंगी लेकिन जोश भरपूर कार्यक्रम सफल

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    1. जी हाँ, बिल्कुल सही कहा आपने, उस वक़्त संसाधनों का अभाव था, पर जोश व जुनून इतना हुआ करता था की, संसाधनों का अभाव खला नही करता था।

      हटाएं
  2. उत्तराखंड समाज की संस्कृति को बनाए व बचाएं रखने व बढ़ावा देने का प्रयास व पर्वतीय समाज को जागृत करने का प्रयास बहुत ही सराहनीय था 👌👌🙏🙏

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  3. तत्कालिक स्थिति परिस्थिति का बहुत ही सुन्दर वर्णन किया गया है। सीमित संसाधनो में बहुत ही सुन्दर प्रयास किया। हमारी संस्कृति को बढ़ाने के मार्ग प्रशस्त करने में यह प्रयास मील का पत्थर साबित हुआ।

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  4. जो भी पहला सांस्कृतिक कार्यक्रम करता है, विश्वास नही होता सफल होगा, पर लोग उसे सफलता की सीढ़ी चढ़ा देते है।तब मन आनंद से सरोबार हो जाता है।

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