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पहाड़ की नारी सब पर भारी

उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्र भौगोलिक दृष्टि से अत्यंत विषम होते हैं,ओर इन्ही क्षेत्रों में पहाड़ की नारी अत्यंत सहजता से सभी कार्य कर लेती है।

इसलिए कहा भी जाता है की पहाड़ की नारी सब पर भारी ओर ये गलत भी नही है, जिस तरह से यहाँ की नारी अपना दायित्व निभाती है, उनपर ये कहावत सटीक बैठती है।
जंगल से घास ,लकड़ियाँ लाने से लेकर, खेत खलिहान में काम करना ओर घर के चौके चूल्हे से लेकर अनेकों कार्य जिस तरह से करती है वो काबिलेतारीफ है।

हम जब भी गाँव जाते तब यही सब देखने को मिलता, हमारी आमा से लेकर ठुलईजा व आसपास की अन्य महिलाएं ऐसे ही थी।
हम जिस वक़्त अपना बिस्तर नही छोड़ पाते ,तब वो नहा धो कर चूल्हे पर दूध गरम कर चाय चढ़ा चुकी होती थी, पीस्स्यु ( आटा ) गूंध कर रोटी बनाने की तैयारी हों चुकी होती थी, एक चूल्हे में सब्जी अधपकी हों चुकी होती थी।

पता नही वो चैन से सोती भी थी के नही, क्योकिं इतना काम करने के बाद कोई शहरी नारी यों इतनी सुबह तो पहले तो उठ नही पाए ओर अगर उठ जाए तो इतना काम ना करे, पर पहाड़ की नारी के लिए तो ये रोजमर्रा की सी बात होती है।

उस पर भी विशेष बात ये की, इतना परिश्रम करने के बाद भी, चेहरे पर मुस्कान लिए वो निश्छल भाव से काम में जुटी दिखती हैं,ऐसी जीवटता कहाँ देखने को मिलती है।
उम्र कोई भी हों सब दैनिक कार्यौ में जुटी दिखती थी, पहाड़ इन्ही को लेकर गतिमान दिखाई देता है।

खेतों में काम करना, घर सम्भालना, जानवरों की देखभाल शायद ही कोई ऐसा कार्य हों जहाँ इनकी भूमिका ना हो।

पहाड़ के जीवन का मेरुदन्ड अगर बोला जाया इन आमाओं,ठुलईजाओं,काखीयों ओर बैनियों ( बहिनों ) को तो कोई अतिशयोक्ति नही होगी।

स्वरचित संस्मरण 
सर्वाधिकार सुरक्षित

English Version 

Hill woman heavy on everything

 The mountainous regions of Uttarakhand are geographically extremely uneven, and in these areas the lady of the mountain does all the work with utmost ease.

 That is why it is said that the woman of the mountain is heavy on everyone and it is not wrong either, the way the woman here fulfills her obligation, this saying fits her well.

 From bringing grass, wood from the forest, working in the farm barn and from the four stove of the house, the way he performs many tasks is worth it.

 Whenever we used to go to the village, we would see all this, from our mother to Thulaija and other women around.

 At the time when we could not leave our bed, she would have washed her bath and heated the milk on the stove and offered tea, preparations were made to make bread by kneading peasu (flour), the vegetables were cooked in a stove.

 I do not know whether she slept in peace, because after working so much, an urban woman could not get up so early in the morning and if she wakes up, do not do so much work, but for the woman of the mountain then it is everyday.  It happens.

 She also spoke about that, even after working so hard, she seems to be working with a smile on her face, where is such a living.

 No matter the age, everyone used to be engaged in daily work, the mountain seems to be moving with them.

 Working in fields, housekeeping, caring for animals are hardly any tasks where they have no role.

 If the souls of the life of the mountain were spoken, these souls, thulijas, kakhis and banis would have no exaggeration.

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