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भोटिया समुदाय

जब भी मैं पहाड़ जाता ओर नैनीताल व भवाली में एक विशेष समुदाय के लोगों पर नजर पड़ती, तो वो समुदाय मुझे बड़ा आकर्षित करता था वो थे भोटिया।

इन लोगों का पहनावा ओर खानपान मुझे विशेष रूप से आकर्षित करता था, ये लोग अधिकतर व्यापार करते हुये दिखते थे, उनके प्रति जिज्ञासा ने मुझे उनके बारे में ओर ज्यादा जानकारी लेने के लिये प्रेरित किया।
ओर इसी के चलते मेरे एक लोकल मित्र क्वीरा जी ने मेरी मदद की, उन्होनें अपने एक भोटिया मित्र से मुझे मिलवाया ओर उसने मुझे जो जो बतलाया, उसमें से कुछ जानकारियाँ, भोटिया जनजाति के बारे में दे रहा हूँ।


भोटिया जनजाति एक ऐसा  समुदाय है, जो हिमालय की कठितम परिस्थितियों भी अपना अस्तित्व को बनाए हुये है।
 इस जनजाति ने आज भी, अपने गौरवमयी अतीत की सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित किया हुआ है,  इस समुदाय की इसी जीवटता ने इसे समृद्ध बना रखा है। 

उत्तराखंड में भोटिया रं, शौका, जाड़, तोल्छा और मारछा के नाम से जाने जाते हैं, उत्तराखंड की किसी अन्य जनजाति में इतनी आन्तरिक विविधता व भौगोलिक विस्तार नहीं पाया जाता है,जितना इस जनजाति में है।
 भोटिया समुदाय भारत की जनजातियों में सर्वाधिक विकसित है, इनकी भाषा से तिब्बतियों के अधिक करीब है और शारीरिक गठन के लिहाज से यह मँगोलियन लगते हैं। 

भोटिया समुदाय में भी राजपूतों जैसी जाति रावत, राणा, कुंवर और चौहान नाम मिलते हैं।

प्रवास करने वाले भोटिया लोग स्वयं को रंग्पा कहलाना पसंद करते हैं,इस जनजाति के दो वर्ग तोलछा व मारछा नाम से जाने जाते हैं।
भोटिया स्वयं को हिन्दू राजपूत मानते हैं, हिन्दू तीर्थ बद्रीनाथ के कपाट जब शीतकाल के लिए बंद होते हैं तब भगवान विष्णु की पद्मासन वाली पाषाण प्रतिमा को छह माह के लिए माणा गाँव की कुंवारी मारछा कन्याओं द्वारा बुनी गई कम्बल में लपेट कर गर्भगृह में रखा जाता है।
भोटिया शब्द की उत्पत्ति भोट शब्द से हुई है ,इसका अर्थ तिब्बत से लगाया जाता है और इसी भोट शब्द ने भोटिया शब्द को जन्म दिया , ये  समाज पितृ सत्तात्मक समाज है। इनके परिवार व समाज में पिता या परिवार का बुर्जुग व्यक्ति ही संरक्षक माना जाता है।

भोटिया जनजाति में दो वर्ण सवर्ण व असवर्ण मौजूद हैं।परिवार में वयोवृद्ध महिलाओं का महत्वपूर्ण स्थान है। वृद्ध पुरुष व महिलाओं को उनकी टोलियों में विशेष स्थान प्रदान किया जाता है।

यहाँ के पुरुष खेती , पशुपालन व व्यापार का काम संभालते हैं तो, महिलाएं कृषि, भोजन व ऊनी उद्योग को संभालती हैं। 

भोटिया समाज में जन्मोत्सव, सोलापाणी अर्थात नामकरण संस्कार, अन्नप्राशन, कर्णभेदन, जवांण (मुण्डन), कमरताण, विवाह संस्कार, सैदा पिठाई, दिन पट्टा, वस्त्र व्यूंतण, दण पुजै, मंगल स्नान, बट्टा सामंव, पैंता, कल्यार, विदाई आदि शुभकार्यां से जुड़े संस्कार नियमपूर्वक किये  जाते हैं। 

जिस प्रकार शुभकार्य से जुड़े संस्कारों का पालन भोटिया लोग नियमपूर्वक करते हैं उसी प्रकार मृत्यु से जुड़े कुछ संस्कार भी यहां प्रचलित हैं। जिनमें मरण छाको, सुल्टा, श्राद्ध आदि संस्कार व प्रथायें हैं। 

ये समुदाय घुमन्तु और व्यापारिक समूह रहा है। भारत और तिब्बत के बीच व्यापार करते हुए उन्होंने एक विलक्षण सांकेतिक भाषा का भी विकास किया। जिसे केवल दोनों क्षेत्रों के व्यापारी ही समझते थे, इनके बीच व्यापार संकेतों और इशारों से भी होता था। 

भोटिया अन्य जनजातियों की भाँति वन व कृषि पर आधारित समुदाय नहीं रहा है। व्यापार ही इस समुदाय का मुख्य व्यवसाय था,जो 1962 के पूर्व नीती घाटी से होकर होता था,पर चीन युद्ध के बाद यह व्यापार पूरी तरह से बंद हो गया। 
भोटिया समुदाय तिब्बत से भेड़-बकरी, घोड़े, हुण्डेरे, च्यालपू, चंवर पूंछ, पशमीना, तिब्बती कालीन, चमड़ा, सुहागा, रांगा, तिब्बती नमक, मूंगा, हींग, लालजड़ी, जहरमोरा, और वनककड़ी आदि का व्यापार करते थे व ऊनी वस्त्रों में थुलमा, गुदमा, दन्न, चौपट्टा, पट्टू, लावा, आंगड़ा, कालीन, पंखी एवं शटन तथा रांछ पर ऊनी वस्त्र तथा कई बहुमूल्य वस्तुओं, धातुओं तथा वनौषधियों का व्यापार होता था,जो सात समुद्र पार तक फैला हुआ करता था। 

भोटिया जनजाति के खान-पान, रहन-सहन और जीवनशैली पर जलवायु का गहरा प्रभाव है,भोटिया समुदाय के गाँव छोटे और दूर-दूर होते हैं।

गाँव  की संरचना बहुत ही साधारण होती है तथा घरों में जाने के लिए बहुत ही तंग रास्ते होते हैं, ताकि घरों के अंदर बर्फानी हवाओं का असर कम हो। 
भोटिया जनजाति द्वारा उपयोग किए जाने वाले अधिकांश वस्त्रों का रंग काला या सफेद होता है। यह ऊनी या सूती वस्त्रों का ही मुख्यतः प्रयोग करते हैं। 

ये समुदाय अपने उत्सव व त्यौहारों को बड़े ही धूमधाम से मनाते हैं। सीमान्त क्षेत्र में रहने के कारण भोटिया समुदाय पर तिब्बत की परम्पराओं का प्रभाव है। हिन्दु धर्म के देवी-देवताओं के साथ ही भोटिया लोग तिब्बती देवता ‘फैला’ की पूजा भी करते हैं। 

भोटिया लोग पंचनाग, भूमियाल, क्षेत्रपाल, फैला, पितृ देवताओं के साथ-साथ शिव, नन्दा के रूप में पार्वती, कृष्ण, विष्णु की भी मुख्य रूप से पूजा करते हैं। हिन्दू पर्व और त्यौहारों को भी भोटिया लोग उसी प्रकार मनाते हैं जिस प्रकार पूरा देश मनाता है। 

स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस, रक्षाबंधन, होली, दशहरा, दीपावली, धनतेरस, भैंल्लो, मकर संक्रांति, घ्यू संक्रांति' बसन्त पंचमी, बिखोती व श्राद्ध के पर्व व त्यौहार धूमधाम से मनाते हैं। 

भोटिया समुदाय द्वारा तैयार किए गए लव्वा, पंखी, पट्टू, दन, चुटका, थुलमा, टोपी, मफलर, शॉल के साथ अन्य तिब्बती उत्पादों को पर्वतीय अंचलों में खूब पसंद किया जाता है।

भोटिया समुदाय में बच्चों का भी एक उत्सव होता है जिसे कल्यौ मंगणी या अम्बे नाम से जाना जाता है,यह युवाओं और बच्चों का सामाजिक उत्सव है,इस उत्सव में सभी बच्चे अपने घरों से कच्चा अनाज एकत्र करते हैं और फिर अनेक व्यंजन बनाकर मिल-बांटकर खाते हैं। 

इस प्रकार बेहद विपरीत व कठिन भौगोलिक परिस्थितियों में जीवन निर्वाह करने वाले भोटिया समाज का योगदान हमारे देश, प्रदेश व समाज के लिए भी कम नहीं हैं।

English Version

Bhotia Community
 Whenever I went to the mountain and looked at the people of a particular community in Nainital and Bhawali, that community used to attract me a lot. They were Bhotias.

 The dress and food of these people particularly attracted me, these people were mostly seen doing business, their curiosity inspired me to learn more about them.

 And because of this, a local friend of mine, Quira ji helped me, he introduced me to a Bhotia friend and I am giving some information about the Bhotia tribe from what he told me.


 The Bhotia tribe is a community that maintains its existence even under the harshest conditions of the Himalayas.

  Even today, this tribe has preserved the cultural heritage of its glorious past, this liveliness of this community has kept it rich.

 In Uttarakhand, known as Bhotia Ran, Shauka, Jad, Tolchha and Marcha, no other tribe of Uttarakhand has as much internal diversity and geographical spread as this tribe has.

  The Bhotia community is the most developed among the tribes of India, their language is much closer to that of the Tibetans and they seem to be Mangolian in terms of physical formation.

 Rajputs like caste Rawat, Rana, Kunwar and Chauhan are also found in Bhotia community.

 The Bhotia people who migrate prefer to call themselves Rangpa, two classes of this tribe are known as Tolchha and Marcha.

 Bhotias consider themselves Hindu Rajputs, when the shrines of the Hindu shrine Badrinath are closed for the winter, then a stone statue of Padmasana of Lord Vishnu is kept in a sanctum for six months in a blanket woven by the virgin Marcha girls of the village of Mana.  is.

 The word Bhotia originated from the word Bhot, it is derived from Tibet and this word Bhot gave rise to the word Bhotia, this society is a patriarchal society.  In their family and society, only the elderly person of the father or family is considered the guardian.

 There are two varna Savarnas and Asvarnas in the Bhotia tribe. Veteran women occupy an important place in the family.  Old men and women are given special place in their groups.

 Men here handle farming, animal husbandry and trade, while women handle agriculture, food and wool industry.

 Birthday celebrations in Bhotia society, Solapani naming ceremony, Annaprashan, Karnabandhan, Javana (Mundan), Kamartana, Marriage ceremony, Saida Pithai, Day patta, Clothing viewing, Dan Pujai, Mangal Snan, Batta Samavan, Panta, Kalyar, farewell etc.  The associated rites are performed by law.

 Just as Bhotia people follow the rituals associated with auspicious work, similarly some rites related to death are also prevalent here.  In which there are rites and rituals like death chhako, sulta, shradh etc.

 These communities have been nomadic and trading groups.  He also developed a unique sign language, doing business between India and Tibet.  Which was understood only by the traders of both the regions, trade between them was also done by signs and gestures.

 Bhotia is not a community based on forest and agriculture like other tribes.  Trade was the main occupation of this community, which ran through the Neeti Valley before 1962, but after the China War this trade was completely stopped.

 The Bhotia community traded sheep, goat, hundere, chialpu, chawar tail, pashmina, Tibetan carpets, leather, icing, ranga, Tibetan salt, coral, asafoetida, laljadi, jahmora, and vanakkad etc. from Tibet and in woolen garments  Thulma, gudma, danna, chaupatta, pattu, lava, angra, carpets, petals and shatan, and woolen textiles and many valuable commodities, metals and forest medicines were traded on the roof, which spread across the seven seas.

 Climate has a deep impact on the food, living and lifestyle of the Bhotia tribe, the villages of the Bhotia community are small and remote.

 The structure of the village is very simple and there are very tight ways to get into the houses, so that the effect of blizzard winds is reduced inside the houses.

 Most of the textiles used by the Bhotia tribe are colored black or white.  They mainly use woolen or cotton textiles.

 These communities celebrate their festivals and festivals with great pomp.  The Bhotia community is influenced by the traditions of Tibet due to being in the frontier region.  Along with the gods and goddesses of Hinduism, Bhotias also worship the Tibetan god 'Phala'.

 Bhotias mainly worship Panchnag, Bhumiyal, Kshetrapala, Fela, Pitru deities as well as Parvati, Krishna, Vishnu in the form of Shiva, Nanda.  Bhotia people celebrate Hindu festivals and festivals in the same way the whole country celebrates.

 Independence Day, Republic Day, Rakshabandhan, Holi, Dussehra, Deepavali, Dhanteras, Bhallano, Makar Sankranti, Ghu Sankranti celebrate the festivals and festivals of Basant Panchami, Khichoti and Shradh.

 Other Tibetan products made by the Bhotia community along with Lvwa, Phani, Pattu, Daan, Chutka, Thulma, Topi, Muffler, Shawl are well liked in the mountain regions.

 There is also a festival of children in the Bhotia community, known as Kaliyou Mangani or Ambe, it is a social festival of youth and children, in this festival all the children collect raw grains from their homes and then make several dishes to meet.  Divided and eat.

 In this way, the contribution of Bhotia society, which lives in very adverse and difficult geographical conditions, is not less for our country, state and society.

टिप्पणियाँ

  1. पर्वतीय क्षेत्रों में रहने वाले मानव समुदाय के भौगोलिक रहन सहन की जानकारी मिलती है आपकी कहानियों में। बहुत ही सुन्दर 👌👌🙏🙏

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