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यात्रा अनदेखी जगहों की

यात्रा अनदेखी जगहों की 
उत्तम दा बरसों के बाद गाँव आए थे, दो चार दिन ही रुके थे की बोले ,भाई इस बार एक जगह नहीं रुकना, इस बार जितना देख सकता हूँ ,उतना देख लेता हूँ अपने पहाड़ को, फिर पता नहीं कब आना हो , तू चलता है तो चल साथ।

मैनें कहा दद्दा ( भाई ) चल तो लेंगे पर रहेंगे कहाँ, हर जगह ठहरने की व्यवस्था तो मिलेगी नहीं, तब उत्तम दा बोले, एक फोल्डिंग टेंट लाया हूँ दो जने ठहर सकते हैं उसमें, और इस तरह हम निकल पड़े मोटरसाईकल लेकर भ्रमण पर।

अगले दिन शुरू हो लिया हमारा सफर, उत्तम दा का जहाँ को दिल किया उस रोड पर मोड़ दी मोटरसाइकिल ओर निकल लिए हम उन अनजानी जगहों की ओर।

इम्रर्जेँसी में खाने के लिए कुछ ड्राई फ्रूट्स और मैगी रख ली ,ताकि कहीं भोजन उपलब्ध ना हो सके तो ,दिक्कत ना हो ओर भोजन पका कर खा लिया जाए।

गाँव से निकलने के बाद, सफर के पहले पड़ाव पर ,एक कच्ची रोड ऊपर को जाती दिखी, पूछने पर पता लगा की ,आगे के दस गाँवो से होती हुई , ये सड़क देवीधुरा रोड पर मिल जाती है ,और हम निकल पड़े उस ओर, नया अनुभव था इसलिये इस तरह के सफर मजा भी आ रहा ठहरा,नई जगह नये लोग नया रास्ता।


कुछ देर का सफर करने के बाद एक गाँव में पहुँचे, वहाँ रोड किनारे एक चाय पानी की दुकान पर रुके, शाम के 4 बज चुके थे,वहाँ चाय नाश्ता किया, ओर बातचीत के दौरान ही वहीं रुकने का इँतजाम हो गया, रात के भोजन की व्यवस्था भी दुकानदार के वहाँ से हो गई, गरमी के दिन थे तो दुकान की छत में सोने का इंतजाम हो गया,यों सफर का पहला दिन मजेदार रहा।
रात को दुकानदार के हाथों से बने स्वादिष्ट भोजन कर, रात्रि विश्राम हेतु स्लीपिंग बैग में घुस कर सो लिए, बात करते करते कब नींद आई पता ही नहीं चला, सुबह चाय पीने के लिए दुकानदार ने जगाया, तब नींद खुली, सुबह नाश्ता करा।

हल्की गुलाबी ठंड में आगे के सफर के लिए , फिर एक बार से निकल पड़े, जाना कहाँ था ये हमको भी पता नहीं था, हमें तो बस इतना पता था की, कोई सड़क गाँवो की ओर जाए तो हम उस ओर निकल पड़े।

घन्टो के सफर के दौरान कई गाँवो से होते हुऐ, रुकते रूकाते हम देवीधुरा वाली रोड कि ओर बढ़ चले ,मोरनौला के आसपास जंगल के बीच बने एक पैट्रोल पंप से पैट्रोल भरवाया ओर तब निकल पड़े ,तब तक देवीधुरा रोड आ गई, बाई तरफ कीओर देवीधुरा पड़ता था ओर दाई ओर कि सड़क शहरफाटक होते हुऐ हल्द्वानी को जा रही थी, हम देवीधुरा की ओर जाने वाली सड़क पर चल पड़े।

देवीधुरा छोटा सा कस्बा है, देवदार व बाँज के जंगल होने से ठंडक वाली जगह थी, यही माँ वाराही देवी का प्रसिद्ध मंदिर है, जो पत्थरों कि बग्वाल के लिए प्रसिद्ध है, यहाँ कुछ देर रुक कर मंदिर आदि गए,ओर फिर निकल पड़े पाटी ब्लाक की ओर।

पाटी पहुँचते ही एक सड़क पटनगाँव कि तरफ जाती दिखी ओर हम पाटी ब्लॉक में भोजन करने के पश्चात निकल लिए इस गाँव की ओर ,रात्रि विश्राम यही हुआ वो भी टेंट में, एक खेत में टेंट लगाया, रात्रि में मैगी बनाई ओर पूरे घुमक्कड़ बन रात्रि काटी।
दूसरे दिन सुबह वहाँ से रवाना होकर कानीकोट होते हुऐ फिर से जैती वाली रोड से होते हुऐ वापस गाँव पहुँचे।

एक अलग अनुभव था इस यात्रा का ,अनजानी जगहों की यात्रा के दौरान भी, अनजाने लोगों का अपनापन था ,यही तो मेरे उत्तराखंड कि खासियत है।

English Version 

Journey of unknown places

Uttam Da came to the village after many years and stayed for two or four days saying that brother, this time do not stop at one place, this time I can see as much as I can see my mountain, then I do not know when to come, you walk  with.

 I said that Dadda (brother) will take a walk but will stay where, if there is no arrangement for lodging everywhere, then Uttam da said, I have brought a folding tent, two people can stay in it, and thus we went out on a tour with a motorcycle.

 Our journey started the next day, we took out on the road where Uttam Da's heart was made.

 Put some dry fruits and maggi to eat in the emergency so that if there is no food available, then there is no problem and the food should be cooked and eaten.

 At the first stop of the journey, a raw road was seen going up, on inquiring, it was found that through the next ten villages, we got on the Devidhura road and we got out on that side, it was a new experience to do such a journey, so it was fun.  Also stopped coming, new people, unknown way.


 Arrived in a village after traveling for a while, stopped at a tea water shop on the road side, it was past 4 in the evening, we had tea breakfast there, and it was arranged to stop there during the conversation, dinner.  Arrangement was also made, thus the first day of the journey was fine.

 Enjoyed the delicious food made by the shopkeeper's hands at night, and entered the sleeping bag for the rest of the night, did not know when to sleep, the shopkeeper woke up to drink tea in the morning.  After breakfast, then left for the journey ahead.

 We once again set out for the journey ahead in the light pink cold, we did not even know where to go, all we knew was that if we go towards a road, then we left.

 During the journey of Ghanto through many villages, we stopped, we continued towards the road leading to Devidhura, filled the petrol around Mornaula and till then Devidhura road came, on the left side was Keor Devidhura and on the right side the road was going to Haldwani.  Was going, we walked on the road leading to Devidhura.

 Devidhura is a small town, it was a cool place due to the forest of cedar and banj, this is the famous temple of Mother Varahi Devi, which is famous for the Bagwal of stones, stopped here for some time, went to the temple etc.  Towards the block.

 As soon as we reached Pati, a road was seen going towards Patangaon and after we had dinner, we left for that night. That is what happened in the tent, he also put a tent in the field, made maggi in the night and cut the whole stroller in the night.

 Departing from Kanikot on the next morning in the morning and coming back to the village via Jaiti Wali Road, it was a different experience, this journey was familiar to unknown places, it is the specialty of my Uttarakhand.

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