माटसाहब ठहरे अपने जमाने के खुर्राट मास्टर , गणित के अध्यापक थे इसलिये थोडा ओर खुर्राट लगते थे छात्रों को।
भेकुव के सिकाड ( डंडी ) के साथ जब कक्षा में आते तो , पढ़ाई से मन चुराने वाले छात्र , मन ही मन ये प्रार्थना करने लग जाते की हे ईष्ट देबता आज बचा लिया , बस भोव बठी पक्क पढूँन ( हे ईश्वर आज बचा लेना , कल से पक्का पढ़ लेंगें), इतना खौफ था नैन सिंह माटसाहब का।
ओर हो भी क्यों ना , वो सिर्फ कक्षा में ही नही मारते थे , अपितु शाम को उद्दंडी छात्र घर जाकर, उसके पिता के सामने ओर सिकडा ( सटका ) देते थे , उनके इस खौफ के कारण कई छात्रो का भला भी हो गया ठहरा।
उनके पढ़ाए छात्र आज अच्छी अच्छी जगह नौकरियों में हैं , नैन सिंह माटसाहब केवल स्कूल से ड्यूटी शुरू नही करते थे , अपितु स्कूल जाते समय आसपास के छात्रों को सँग ले जाते थे।
पढ़ाने के साथ साथ स्कूल के प्रति गजब का समर्पण ठहरा उनका , ओर नौकरी पूरी करने के बाद भी शिक्षा से सरोकार नही टूटा उनका।
आज भी उसी स्कूल में बच्चों की एक्स्ट्रा क्लास लेने बिना नागा किये जाते हैं , साथ ही ऐसे बच्चों की मदद करते हैं जो फीस नही भर पाता या स्कूल की गणवेश या पुस्तकें नही खरीद पाता।
जब भी बडे बेटे के पास दिल्ली जाते तो , वहाँ से ढेरों स्कूल बैग , कापियाँ , पैन्सिले ले आते हैं , ताकि जरूरतमंदों की मदद कर पायें।
रिटायरमेंट के बाद उनकी वही स्कूली दिनचर्या चालू थी , जो पहले नौकरी के दौरान हुआ करती थी।
बस फर्क सिर्फ इतना सा आया था के , पहले सीधे स्कूल जाते थे , अब थोडा गाँव के बाजारों में उठते बैठते , लोगों की आसल कुशल पूछते पूछाते स्कूल जाते।
रिटायरमेंट के 20 साल हो जाने के बाद , अब थोडा बुड्ढे से लगने लग गये थे , तेज गति से चलने की बजाय अब सुस्ताते हुये सफर करते थे , पर पढ़ाने में आज भी वही खुर्राट माटसाहब हैं।
स्वरचित लघु कथा
सर्वाधिकार सुरक्षित
English Version
Matsahab ( Teacher ) stayed in his own time, the master of mathematics was a teacher of mathematics, so the students seemed to be a bit more interested.
When he came to class with the pedestal of bekuv, the students who were stealing from studies, started praying in their hearts that God is saved today. ).
There was so much fear of Nain Singh Matsahab, even if he did not just kill in the classroom, but in the evening he used to stare in front of the father of the ardent student, due to his fear, many were benefited.
His taught students are in very good place jobs. Today, Nain Singh Matsahab did not only start duty from school, but used to take the students around to school.
Apart from teaching, it was his dedication to the school, and even after completing his job, his concern with education was not broken.
Even today, in the same school, children are nagged without taking extra classes, as well as helping such children who do not pay fees or buy school uniforms.
Whenever the eldest son goes to Delhi, he brings many school bags, copies, and pencils from there to help the needy.
After retirement, he had the same schooling routine as he used to during his earlier job.
The only difference came was that earlier, he used to go to school directly, now he used to get up in the village markets a little, ask the skilled people around him to go to school in the last.
After 20 years of retirement, there was a difference in these things, now they started to get older, they used to travel at a brisk pace instead of walking at a fast pace, but today they are the same Khurrat matsahab in teaching.
Scripted short story
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बहुत बढ़िया सर आपके इतने अच्छे लेख को पढ़ने के बाद दिल खुशी से उभर उठता है.
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