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काफल वाला लड़का


वो काफल बेचने सड़क पर बैठा था , छोटी सी छबरी में ताजे ताजे काफल लेकर , बारह तेरह साल के आसपास का होगा। 
आसपास बस्ती भी नही थी , पूछा तो दूर दिख रहे गाँव की तरफ इशारा करके बताया की वो है मेरा गाँव , इतनी दूर से काफल बेचने वो सड़क पर बैठा था अकेला , आती जाती गाड़ियों को हसरत भरी निगाहों से ताकता हुआ की , कोई गाड़ी रुक कर शायद काफल खरीद ले। 
मैं भी मोटरसाइकिल चला कर थक गया था , इसलिये रुक गया उसे देख कर की , चलो जंगल में कोई तो दिखा चाहे बच्चा ही सही। 
मेरे रुकते ही उसका चेहरा खिल उठा , शायद ये सोच कर की शायद उसके कुछ काफल बिक जाएंगे , मैंनें भी थोड़े काफल खाने के लिये खरीद लिये।

अकेला क्यों हैं पूछने पर वो बोला , बोज्यू  (पिता ) नही हैं इसलिये घर में कमाने वाला नही है कोई , खेतीबाड़ी भी कम ही है , दो चार पेड आड़ू , खुमानी ओर पुलम के हैं ओर थोडा ये काफल से सहारा हैं बस ,इसलिये यहाँ आ जाता हूँ।  
कितना बेच देते हो पूछने पर जवाब मिला , कभी 100 रुपये का तो कभी 200 - 300 रुपये तक के , इतने से पैसों के लिये वो छोटा सा बालक जंगल के बीच रोड पर बैठा रहता है , ये देख कर दिल द्रवित हो उठा। 

ये ही मात्र अकेला बच्चा नही है ,जो यहाँ बैठा मिला था , पहाड़ों में ऐसे कई बच्चे बैठे मिल जाएंगे।  

स्कूल जाते हो पूछने पर जवाब मिला , जाता हूँ पर जब सीजन होता है तब नही जा पाता हूँ , क्योंकि स्कूल गया तो यहाँ नही आ पाऊँगा ना। 

इस छोटी सी उम्र में इतना काम , सोच कर ही दिल भरा जा रहा था , फिर तय किया की मेरी हैसियत के अनुसार उसकी कुछ सहायता कर लूँ , पर उसे खाली पैसे देने का दिल गंवारा नही कर रहा था  , क्योंकि शायद उसकी खुद्दारी का अपमान होता , तो उससे सारे काफल के भाव पूछे की कितने में दोगे , उसने कहा पूरे के 200 रुपये के होंगें वैसे तो बल , आप कम भी दे दो चलेगा , थोडा घर जल्दी चला जाऊँगा।  
मैंनें उससे सारे काफल खरीद लिये ओर पाँच सौ का नोट उसे दिया , उसने कहा मेरे पास इसके टूटे ( खुल्ले ) नही हैं अभी , आप ही टूटे ( खुल्ले ) दे दो , मैंनें कहा टूटे ( खुल्ले ) तो मेरे पास भी नही है , उसने कहा अगर थोड़ा रुको तो , गाँव की दुकान से टूटे करा लाता हूँ , ओर मैं जानता था अगर मैं उसे भेजता तो वो टूटे जरूर करवा के लायेगा। 

पर मैं उससे टूटे वापस नही लेना चाहता था तो इसलिये मैने उससे कहा , तुम इसे रख लो , जब मैं वापस आऊँगा तो पुलम , खुमानी ले लूँगा तुमसे , मैं जानता था ऐसे ही रख लो कहने पर , उसकी खुद्दारी को ठेस लग सकती थी , जो कतई ठीक नही रहता ओर वो सहायता भी नही रह पाती , भीख सी लगती ओर उस मेहनत कश बच्चे को मैं , ये अहसास नही दिलाना चाहता था , इसलिये काफल बाँध कर फिर लौटने का वादा करके , मैं निकल लिया आगे के सफर पर। 

आप भी कभी सफर पर निकले तो , रुक कर ऐसों  से कुछ ना कुछ खरीदे जरूर , यकीन मानिये यात्रा करने में अलग ही सुकून की अनुभूति होगी! 

स्वरचित यात्रा वृतांत 
सर्वाधिकार सुरक्षित

English version 

He was sitting on the road selling kaphal, carrying fresh fresh kaphal in small chabbara, would be around twelve thirteen years.


 There was not even a neighborhood nearby, when asked, I pointed to the village looking far away and said that it is my village, so far from selling kaphal, he was sitting on the road, lonely, looking at the vehicles, looking at the car, stopped any car.  Buy a tax fruit.


 I too was tired of driving a motorcycle, so I stopped looking at him, let us show someone in the forest, even if the child is right.


 His face blossomed as soon as he stopped, perhaps thinking that some fruit would be sold, I also bought a little fruit to eat, he said on asking why he is alone, he is not a booze, so no one is earning, farming is also less  , There are two four peaches, peanuts and pulses, and this is a support with a little fruit, so I come here only.

 Asked how much you sell, you got the answer, sometimes for 100 rupees, sometimes up to 200 - 300 rupees, for that much money, that small child sits on the road in the middle of the forest, seeing that the heart was moved.


 This is not the only child who was found sitting here, many such children will be found sitting in the mountains.


 When I go to school, I get an answer, but I am unable to go when the season is, because if I go to school I will not be able to come here.


 At this young age, so much work was being done, thinking and filling my heart, then decided to help her according to my status, but I was not losing my heart to give her free money, because maybe insulting her self  If it were, then ask him the price of all the fruits, how much will he give, he said that the whole will be 200 rupees, but the force, you will also give less, will go home a little sooner.


 I bought all the fruits from him and gave him a five hundred note, he said, I do not have any broken (Khulle) right now, give me the broken (Khulle), I said I do not have the broken (Khulle), he also has  Said, if you wait a little, I will get the broken shop from the village shop, and I knew that if I sent it, it would surely get it broken.


 But I did not want to take her back from broken, so I told her, you keep it, when I come back, I will take the plum, it is beautiful, I knew you should keep it like that, it could hurt her self,  That which is not well at all and that help is not possible, I feel like begging and I did not want to make the child feel that hard, so by promising to return again by binding the fruit, I set out on the journey ahead.


 If you ever go out on a journey, stop and buy something like this, believe it will be a different feeling to travel!

Recorded travelogue

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