सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

जग दा कुड़ी - जग दा का मकान

शहरफाटक से जब भी थोडा सा आगे निकलता तो , एक कुड़ी ( मकान ) मुझे बड़ा आकर्षित करती थी, सुनसान जगह , आसपास कोई मकान नही , रोड किनारे बनी इस कुड़ी ( मकान ) में पता नही क्या खास बात थी के , मैं बाईक को रोक कर ,आते जाते हमेशा एकटक ,निहारता जरूर था कुछ देर के लिये। 

देख कर बड़ा अच्छा लगता था , पर कभी कोई बड़ा व्यक्ति दिखाई नही देता था वहाँ , कुछ बच्चे अवश्य खेलते हुये दिखाई दे जाते थे , वो भी कभी कभार। 

बड़ा मन होता था की , कभी कोई बड़ा दिखे तो बात कर लूँ  , इसी बहाने कुड़ी ( घर ) को नजदीक से देखने का मौका भी मिल जाये। 

एक दिन ऐसा मौका मिल ही गया , आँगन में एक व्यक्ति बैठा नजर आ गया , मैंनें बाईक रोकी ओर  रामा श्यामा करी तो , बैठे हुये व्यक्ति ने जवाब देते हुये कहा , आ जाओ हो पाणी पी बेर जाला ( आ जाईये पानी पी कर जाना ) , मैं तो चाहता ही ये था , तुरंत से बाईक खड़ी कर ,चल दिया उस कुड़ी ( घर ) की तरफ।

पूछने पर पता चला की उनका नाम जगत सिंह पडियार है , उनका गाँव वैसे तो नीचे है , पर रोड पर मकान लगा दिया सात आठ साल से। 

बोले मन लगा रहता है बल यहाँ , इधर से चारों तरफ दिखने वाला भी ठहरा , बढ़िया भ्यूं ( व्यू ) ठहरा , किसी जमाने में बूबू ने ,दस नाली जमीन ली थी घास के लिये , तब कुछ नही था यहाँ, बस जंगल सा था यहाँ, घास खूब होती थी बस, अब तो रोड आने से सेंटर हो गया है, खेती पाती आज भी नीचे गाँव में ही है ,यहाँ तो बस गाय , भैंस ओर बकरियाँ हैं , ऊपर जंगल की ओर चरने भेज देते हैं।  

बातचीत के दौरान ही पानी ओर चाय भी आ गई , चाय सुडकाते हुये , मैंनें पूछा जग दा , ये कुड़ी ( मकान ) जोर की बनवाई आपने , मुझे बडी अच्छी लगती है , मैं तो जब भी आता जाता हूँ यहाँ से, रुक कर जरूर देखता हूँ एकबार, जग दा बोले मैंनें खुद ही बना ली टैम ( टाइम ) बहुत लग गया पर अब बन गई।  

गजब की बनावट थी जग दा के कुड़ी ( मकान ) की, पहाड़ी इलाके व हरियाली के बीच, मोती की तरह दमकती हुई दिखती थी, किसी प्रोफेशनल कारीगर की तरह, करीने से कटे पत्थर, सटीक चिनाई , जग दा ने खुद ही बना ली थी विश्वास नही हो रहा था। 

दो मंजिला मकान , हवा आने जाने के लिये खिड़कियाँ , ढलवां छत, सच में गजब लग रही थी , प्योर पहाड़ी कुड़ी ( मकान ) थी ,जग दा की बनाई हुई  पहाड़ी कुड़ी!

स्वरचित यात्रा वृतांत 
सर्वाधिकार सुरक्षित

English Version 

 Jag da ki kudi


 Whenever I walked a little further from the Shaharphatak, a kudi (house) attracted me a lot.


 Deserted place, no house nearby, but in this road-side kudi (house), I do not know what was special about it, I was sure to stop by the bike and stare for a while.


 It was very nice to see, but no big person was seen there, some children were definitely seen playing, that too sometimes force.


 I used to have a big mind, that if someone ever looks big, it should happen, on the same pretext, you should get a chance to see the house closely.


 One day I got such an opportunity, a person appeared in the courtyard, I stopped the bike and Rama Shyama curry, the person sitting there replied, "Come on, you can drink water."  This was it, parked the bike with fire.


 On asking, it was found out that his name is Jagat Singh Padiyar, the village is way below, but has put up a house on the road, for seven to eight years now.


 The mind keeps on saying that the force is here, it can be seen here as well, once upon a time, Bubu had taken ten drain land for grass, then there was a forest, now the center has come from the arrival of the road, the agricultural land is down there  Here, there are only cows, buffaloes and goats, they send them to graze in the forest above.


 During the conversation, water and tea also came, while stirring the tea, I asked Jag Da, you made this kudi jor ki, I like it a lot, Jag Da said, I made it myself but it was very much but now it has become.


 The design was amazing, like a professional artisan, neatly cut stones, precise masonry force, Jag Da himself had created it, could not believe it.


 The two-storey house, the windows for the wind, the molded roof, looked really amazing, the pure hill clod was the hill clove made by Jag Da


 Recorded travelogue

 All rights reserved

टिप्पणियाँ

  1. कमाल का लिखते हैं भाई साहब आप की कहानी से पहाड़ की याद ताजी हो जाती हैं।।

    जवाब देंहटाएं
  2. आप की कहानियां लाजवाब है, दिल को छू जाती है, शुभकामनाए

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

Please give your compliments in comment box

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

पीड ( दर्द ) Pain

बहुत दिनों से देखने में आ रहा था की कुँवरी का अनमने से दिख रहे थे ,खुद में खोये हुये ,खुद से बातें करते हुये ,जबकि उनका स्वभाव वैसा बिल्कुल नही था ,हँसमुख ओर मिलनसार थे वो ,पता नही अचानक उनके अंदर ऐसा बदलाव कैसे आ गया था, समझ नही आ रहा था के आखिर हुआ क्या।  कुंवरी का किस कदर जिंदादिल थे ये किसी से छुपा नही ठहरा ,उदास वो किसी को देख नही सकते थे ,कोई उदास या परेशान दिखा नही के कुंवरी का उसके पास पहुँचे नही ,जब तक जाते ,जब तक सामने वाला परेशानी से उबर नही जाता था ,अब ऐसे जिंदादिल इंसान को जब उदास परेशान होते देखा तो ,सबका परेशान होना लाजमी था ,पर कुँवरी का थे के ,किसी को कुछ बता नही रहे थे ,बस क्या नहा क्या नहा कह कर कारण से बचने की कोशिश कर रहे थे ,अब तो सुबह ही घर से बकरियों को लेकर जंगल की तरफ निकल पड़ते ओर साँझ ढलने पर ही लौटते ,ताकि कोई उनसे कुछ ना पूछ पाये ,पता नही क्या हो गया था उन्हें ,गाँव में भी उनका किसी से झगड़ा नही हुआ था ,ओर घर में कोई लड़ने वाला हुआ नही ,काखी के जाने के बाद अकेले ही रह गये थे ,एक बेटा था बस ,जो शहर में नौकरी करता था ,उसके बच्चे भी उसी के साथ रहते थ

बसंती दी

बसन्ती दी जब 15 साल की थी ,तब उनका ब्या कर दिया गया ,ससुराल गई ओर 8 साल बाद एक दिन उनके ससुर उन्हें उनके मायके में छोड़ गये ,ओर फिर कोई उन्हें लेने नही आया ,बसन्ती दी के बौज्यू कई बार उनके ससुराल गये ,पर हर बार उनके ससुराल वालों ने उन्हें वापस लेने से ये कहकर  इंकार कर दिया की ,बसन्ती बाँझ है ओर  ये हमें वारिस नही दे सकती तब से बसन्ती दी अपने पीहर ही रही।  बाँझ होने का दँश झेलते हुये बसन्ती दी की उम्र अब 55 के लगभग हो चुकी थी ,उनके बौज्यू ने समझदारी दिखाते हुये 10 नाली जमीन ओर एक कुड़ी उनके नाम कर दी थी ,ताकि बाद में उनको किसी भी प्रकार से परेशानी ना हो ,ओर वो अपने बल पर अपनी जिंदगी जी सके। बसन्ती दी ने उस जमीन के कुछ हिस्से में फलों के पेड़ लगा दिये ओर बाकि की जमीन में सब्जियाँ इत्यादि लगाना शुरू किया ,अकेली प्राणी ठहरी तो गुजारा आराम से चलने लगा ,भाई बहिनों की शादियाँ हो गई ,भाई लोग बाहर नौकरी करने लगे ,वक़्त बीतता चला गया। बसन्ती दी शुरू से ही मिलनसार रही थी ,इसके चलते गाँव के लोग उनका सम्मान करते थे ,ओर खुद बसन्ती दी भी ,लोगों की अपनी हैसियत अनुसार सहायता भी कर

देवता का न्याय

थोकदार परिवारों के ना घर में ही नही ,अपितु पूरे गाँव में दहशत छाई हुई थी ,कुछ दिनों से थोकदार खानदान के सारे घरों में ,घर के सदस्यों को पागलपन के जैसे लक्षण देखने को मिल रहे थे ,यहाँ तक की गाय भैंसों ने भी दूध देना बंद कर दिया था ,किसी को समझ नही आ रहा था की आखिर ये हो क्या रहा है। पहाड़ में अगर ऐसा होना लगे तो ,लोग देवी देवताओं का प्रकोप मानने लगते हैं ,ओर उनका अंतिम सहारा होता है लोक देवताओं का आवाहन ,इसलिये थोकदार परिवारों ने भी जागर की शरण ली। खूब जागा लगाई काफी जतन किये ,पर कौन था किसके कारण ये सब हो रहा था ,पता नही लग पा रहा था ,जिसके भी आँग ( शरीर ) में अवतरित हो रहा था ,वो सिर्फ गुस्से में उबलता दिखाई दे रहा था ,पर बोल कुछ नही रहा था ,लाख जतन कर लिये थे ,पर समस्या ज्यों की त्यों थी ,गाँव वाले समझ नही पा रहे थे की आखिर थोकदार परिवार को इस तरह परेशान कौन कर रहा है ,ओर तो ओर जगरिये उससे कुछ बुलवा नही पा रहे हैं ,अंत में गाँव में आया हुआ एक मेहमान बोला मेरे गाँव में एक नौताड़ ( नया ) अवतरित हुआ है ,उसे बुला कर देखो क्या पता वो कुछ कर सके ,थोकदार परिवार ने दूसर