सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

रम दा

 रम दा अक्सर दिन में दुकानों के बाहर बैठा रहता था। वहीं गप्पे हांकने ओर सुनने के अलावा बिशन दा दुकानदार के घर से , दाल , भात टपकी मिल जाता था।  ओर दिन भर में चार पांच गिलास गुड की चाय भी। आगे पीछे कोई नही था , कौन था कहाँ से आया था ये भी किसी को नही मालूम।  पर सबका रम दा था वो।

ये नाम भी उसे किसने दिया था , ये भी किसी को नही मालूम था । पर रम दा के बिना दुकानों की रौनक भी नही थी , ये लोगों को तब महसूस होती थी। जब रम दा गाँव के किसी न्यौते में चला जाता था।

रम दा किसी का कुछ ना लगने के बावजूद 
रम दा को न्योता देना कोई नही भूलता था। ये रम दा का सम्मान था।

रम दा भी वहाँ सुबह ही पहुँच जाता , ओर काम के बारे में सटीक सलाह देता। लोग उसे मानते भी थे , रम दा एक तरह का सलाहकार भी था।

देवी मंदिर उसका रात का ठिकाना हुआ करता था , सुबह होते ही रम दा नहा धो कर , जोर जोर की आवाज में पता नही क्या क्या मंत्र पढ़ता था ,ओर लोग उसकी आवाज सुन कर अपनी दिनचर्या प्रारम्भ कर देते थे।

रम दा अक्सर दिन में दुकानों के बाहर बैठा रहता था। वहीं गप्पे हांकने ओर सुनने के अलावा बिशन दा दुकानदार के घर से , दाल , भात टपकी मिल जाता था।  ओर दिन भर में चार पांच गिलास गुड की चाय भी।

उसके आगे पीछे कोई नही था , कौन था कहाँ से आया था ये भी किसी को नही मालूम।  पर सबका रम दा था वो , ये नाम भी उसे किसने दिया था , ये भी किसी को नही मालूम था । पर रम दा के बिना दुकानों की रौनक भी नही थी , ये लोगों को तब महसूस होती थी। जब रम दा गाँव के किसी न्यौते में चला जाता था।

रम दा किसी का कुछ ना लगने के बावजूद रम दा को , न्योता देना कोई नही भूलता था। ये रम दा का सम्मान था , ओर रम दा भी  वहाँ सुबह ही पहुँच जाता , ओर काम के बारे में सटीक सलाह देता। लोग उसे मानते भी थे , रम दा एक तरह का सलाहकार भी था।

देवी मंदिर उसका रात का ठिकाना हुआ करता था , सुबह होते ही रम दा नहा धो कर , जोर जोर की आवाज में पता नही क्या क्या मंत्र पढ़ता था । ओर लोग उसकी आवाज सुन कर अपनी दिनचर्या प्रारम्भ कर देते थे।

रम दा गाँव की जरूरत सा बन गया था ।  किसी से कोई रिश्ता नही होने के बावजूद सबका खास था रम दा । रम दा भी बीड़ी फूँकता , ओर चाय सुडकाता हुआ ऐसी ऐसी सलाह दे जाता था की , लोग दंग रह जाते थे।  शादी व अन्य मौकों पर रम दा ही भोजन चख कर भोजन का स्वाद बताता , क्या मजाल उसका बताया स्वाद आज तक गलत निकला हो। 

पर रम दा था कौन कहाँ से आया ये कोई नही जानता था ,ओर जिसने भी ये सवाल पूछ लिया , समझो उसकी आफत आ गई।

रम दा बडे बू बू की तरह उखड़ जाता , ओर ग़ुस्से में बोलता कितने की चाय पिलाई रे तूने ओर कितने का खाना खिला दिया तूने , आज सब हिसाब बता देना रनकरा , तेरा सब हिसाब चुका दूँगा , लकड़ी काट कर तेरे घर में डाल जाऊँगा कल तक , ओर आज के बाद अपना मुँह मत दिखाना मुझे तू । अपनों  से ऐसा पूछने वालों का मुख कौन देखने वाला ठहरा । 

रम दा बस बोलता चला जाता , चाय व खाना पीना बंद कर देता ।  ये बात उसे इस कदर कचोटती , पूछने वाला भी शर्म से पानी पानी हो जाता।  पूरे दिन मनाने के बाद कहीं जाकर , रात तक रम दा बडी मुश्किलों से मान पाता।  ओर पूछने वाले को कहता , जा आज माफ कर रहा हूँ पर दंड देना पड़ेगा जा ब्वारी के हाथ की रोटी ओर सिल में पिसी नून लेकर आ , ओर उस रोटी को हलक में उतारते उतारते , रम दा दिन भर का ग़ुस्से भी पी लेता । ओर पूछने वाले को माफ कर देता , ऐसा था रम दा।  जो पूरे गाँव को अपना माँनता था।  

उसके साथ बैठने भर से ऊर्जा का संचार तन मन में हो जाता था । गाँव का पावर हाउस सा था रम दा।  रम दा का कहने को तो कोई नही था पर सारा गाँव उसका था , यही उसकी पूँजी थी ओर इसी के साथ वो खुश भी था !
 स्वरचित लघु कथा 
सर्वाधिकार सुरक्षित

English Version 

Ram da 

 Rum da was often sitting outside the shops during the day.  At the same time, apart from the chatter and listening, Bishan da shopkeeper's house used to get lentils and rice drip.  And four to five glasses of good tea throughout the day.  No one was back and forth, no one knew who had come from where.  But everyone had a rum da, who also gave this name to him, no one even knew.  But without the rum da, the shops were not even attractive, this was felt by the people then.  When Rum Da used to go to any invitation of the village, Rum da did not forget to invite Rum da, in spite of none of it.  It was an honor for Rum Da, and Rum Da would reach there in the morning, and give accurate advice about work.  People believed him, Rum da was also a kind of advisor, Devi temple used to be his night hideout, Rum da took a bath after dawn, in a loud voice, don't know what mantra was read.  And people used to start their day by listening to his voice.  Rum da village became a necessity.  Despite having no relation with anyone, everyone was special.  Rum da also used to give beedi, and while giving tea, such advice was given that people were stunned.  On the occasion of marriage and other occasions, Rama da tasted the taste of the food, did Majal tell that the taste had turned out to be wrong till today.  But no one knew who came from where Rama da was, and whoever asked this question, understand that his mishap had come, Rum da would crumble like a big boo boo, and he would say in anger how much tea he was drinking and how many  You have fed me with food, today I will tell you all accounts, I will pay all my accounts, I will cut wood and put it in your house till tomorrow, and after today do not show your face to me.  Who is going to see the face of those who ask such people.  Rum da would just go on talking, stop drinking tea and food.  Such a thing would hurt him, even the asker would become water in shame.  After celebrating the whole day, by going somewhere, Rum da would be able to accept with great difficulty by night.  And he would say to the person asking, "Forgive me today, but you will have to be punished. Bring the bread of the bawari's hand and the grilled noon in the stool, and while removing that bread in circles, Rum da would also drink for a day's anger."  He would forgive the one who asked, it was Rum da.  Who used to take the whole village as his own.  By sitting with him, the energy was communicated in the mind.  The power house of the village was like Rama da.  Rum da had no one to say but the whole village belonged to him, this was his capital and he was happy with this as well!

 Scripted short story

 All rights reserved


टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें

Please give your compliments in comment box

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

पीड ( दर्द ) Pain

बहुत दिनों से देखने में आ रहा था की कुँवरी का अनमने से दिख रहे थे ,खुद में खोये हुये ,खुद से बातें करते हुये ,जबकि उनका स्वभाव वैसा बिल्कुल नही था ,हँसमुख ओर मिलनसार थे वो ,पता नही अचानक उनके अंदर ऐसा बदलाव कैसे आ गया था, समझ नही आ रहा था के आखिर हुआ क्या।  कुंवरी का किस कदर जिंदादिल थे ये किसी से छुपा नही ठहरा ,उदास वो किसी को देख नही सकते थे ,कोई उदास या परेशान दिखा नही के कुंवरी का उसके पास पहुँचे नही ,जब तक जाते ,जब तक सामने वाला परेशानी से उबर नही जाता था ,अब ऐसे जिंदादिल इंसान को जब उदास परेशान होते देखा तो ,सबका परेशान होना लाजमी था ,पर कुँवरी का थे के ,किसी को कुछ बता नही रहे थे ,बस क्या नहा क्या नहा कह कर कारण से बचने की कोशिश कर रहे थे ,अब तो सुबह ही घर से बकरियों को लेकर जंगल की तरफ निकल पड़ते ओर साँझ ढलने पर ही लौटते ,ताकि कोई उनसे कुछ ना पूछ पाये ,पता नही क्या हो गया था उन्हें ,गाँव में भी उनका किसी से झगड़ा नही हुआ था ,ओर घर में कोई लड़ने वाला हुआ नही ,काखी के जाने के बाद अकेले ही रह गये थे ,एक बेटा था बस ,जो शहर में नौकरी करता था ,उसके बच्चे भी उसी के साथ रहते थ

बसंती दी

बसन्ती दी जब 15 साल की थी ,तब उनका ब्या कर दिया गया ,ससुराल गई ओर 8 साल बाद एक दिन उनके ससुर उन्हें उनके मायके में छोड़ गये ,ओर फिर कोई उन्हें लेने नही आया ,बसन्ती दी के बौज्यू कई बार उनके ससुराल गये ,पर हर बार उनके ससुराल वालों ने उन्हें वापस लेने से ये कहकर  इंकार कर दिया की ,बसन्ती बाँझ है ओर  ये हमें वारिस नही दे सकती तब से बसन्ती दी अपने पीहर ही रही।  बाँझ होने का दँश झेलते हुये बसन्ती दी की उम्र अब 55 के लगभग हो चुकी थी ,उनके बौज्यू ने समझदारी दिखाते हुये 10 नाली जमीन ओर एक कुड़ी उनके नाम कर दी थी ,ताकि बाद में उनको किसी भी प्रकार से परेशानी ना हो ,ओर वो अपने बल पर अपनी जिंदगी जी सके। बसन्ती दी ने उस जमीन के कुछ हिस्से में फलों के पेड़ लगा दिये ओर बाकि की जमीन में सब्जियाँ इत्यादि लगाना शुरू किया ,अकेली प्राणी ठहरी तो गुजारा आराम से चलने लगा ,भाई बहिनों की शादियाँ हो गई ,भाई लोग बाहर नौकरी करने लगे ,वक़्त बीतता चला गया। बसन्ती दी शुरू से ही मिलनसार रही थी ,इसके चलते गाँव के लोग उनका सम्मान करते थे ,ओर खुद बसन्ती दी भी ,लोगों की अपनी हैसियत अनुसार सहायता भी कर

देवता का न्याय

थोकदार परिवारों के ना घर में ही नही ,अपितु पूरे गाँव में दहशत छाई हुई थी ,कुछ दिनों से थोकदार खानदान के सारे घरों में ,घर के सदस्यों को पागलपन के जैसे लक्षण देखने को मिल रहे थे ,यहाँ तक की गाय भैंसों ने भी दूध देना बंद कर दिया था ,किसी को समझ नही आ रहा था की आखिर ये हो क्या रहा है। पहाड़ में अगर ऐसा होना लगे तो ,लोग देवी देवताओं का प्रकोप मानने लगते हैं ,ओर उनका अंतिम सहारा होता है लोक देवताओं का आवाहन ,इसलिये थोकदार परिवारों ने भी जागर की शरण ली। खूब जागा लगाई काफी जतन किये ,पर कौन था किसके कारण ये सब हो रहा था ,पता नही लग पा रहा था ,जिसके भी आँग ( शरीर ) में अवतरित हो रहा था ,वो सिर्फ गुस्से में उबलता दिखाई दे रहा था ,पर बोल कुछ नही रहा था ,लाख जतन कर लिये थे ,पर समस्या ज्यों की त्यों थी ,गाँव वाले समझ नही पा रहे थे की आखिर थोकदार परिवार को इस तरह परेशान कौन कर रहा है ,ओर तो ओर जगरिये उससे कुछ बुलवा नही पा रहे हैं ,अंत में गाँव में आया हुआ एक मेहमान बोला मेरे गाँव में एक नौताड़ ( नया ) अवतरित हुआ है ,उसे बुला कर देखो क्या पता वो कुछ कर सके ,थोकदार परिवार ने दूसर