ओ बच्ची का कहाँ को भाग दौड़ हो रही है रत्ती ब्यान (सुबह सुबह ) ,बच्च दा को टोकते हुये गोपाल दा बोले, सुनते ही बच्ची का पलटे ओर बोले फाव मारने (मरने ) जा रहा हूँ , चलेगा क्या। गोपाल दा खितखित हँसते हुये बोले, वहाँ तुम ही जाओ, पर चाय पीकर जाना आ जाओ। फटा जूता, सिर पर टोपी, ढीली सी पतलून ओर ऊपर फटी सी स्वेटर पहने बच्ची का ,चाय का नाम सुनते ही बड़ी ठसक से खुट में खुट (पाँव में पाँव ) रखकर आँगन में आकर बैठ गये, ओर जोर की आवाज लगा कर बोले , ओ ठुल ईजा (ताई ) गुड जरा ठुल ठुल लाये (गुड जरा बड़ा बड़ा लेकर आना ) , कम मिठ में पी जस न लागीन (कम मीठे में चाय पी जैसी नही लगती ), अक्रिम (अजीब )स्वाद हो जाता है चाय का। बच्ची का गाँव के हर घर को अपना घर सा ही मानते थे, इसके चलते ही वो इस तरह की बात अधिकारपूर्ण बोल जाते थे। बच्ची का जवाब देने में बड़े हाजिर थे, लोग मजाक करते तो बच्ची का ऐसा जवाब देते की सामने वाला खिसिया कर रह जाता, वैसे बच्ची का थे सीधे व सरल इंसान । गाँव में बस उनकी टूटा फूटा मकान था, बाकि जमीन जायदाद तो उनके रिश्तेदार खा गये थे,जब वो बहुत छोटे थे, उनके पिता का देहांत...
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